उन्नाव लोकसभा सीट से भाजपा के दो नाम हैं चर्चा में, साक्षी भी लगाए हैं जोर

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ और औद्योगिक नगरी कानपुर के बीच में फंसी उन्नाव लोकसभा सीट इन दिनों चर्चा में है। सबसे पहले चर्चा में आया कि उन्नाव के सांसद साक्षी महाराज का टिकट कट रहा है और यह चर्चा इतनी तेज हुई कि साक्षी महाराज को धमकी भरे अंदाज में प्रदेश भाजपा अध्यक्ष को पत्र तक लिखना पड़ गया लेकिन चर्चा इसके बाद भी नहीं थमी।;

Update:2019-03-19 21:04 IST

रामकृष्ण वाजपेयी

लखनऊ: उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ और औद्योगिक नगरी कानपुर के बीच में फंसी उन्नाव लोकसभा सीट इन दिनों चर्चा में है। सबसे पहले चर्चा में आया कि उन्नाव के सांसद साक्षी महाराज का टिकट कट रहा है और यह चर्चा इतनी तेज हुई कि साक्षी महाराज को धमकी भरे अंदाज में प्रदेश भाजपा अध्यक्ष को पत्र तक लिखना पड़ गया लेकिन चर्चा इसके बाद भी नहीं थमी। चर्चा बदस्तूर जारी रही। अब एक बार फिर वहां से नए दावेदारों को लेकर यह सीट चर्चा में है। वह तो भाजपा नेता मनोहर पर्रिकर के निधन से भाजपा संसदीय बोर्ड की आज होने वाली बैठक टल गई वरना आज ही तय हो जाता कि उन्नाव संसदीय सीट का क्या हुआ।

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लेकिन लोग हैं कि मानते ही नहीं चर्चाओं में ही लोगों के भाव उठ रहे हैं और गिर रहे हैं। इन नामों में एक नाम उन्नाव के बुजुर्ग और कद्दावर नेता हृदय नारायण दीक्षित का भी है। इनके समर्थक जहां इन्हें मजबूत दावेदार बता रहे हैं वहीं विरोधी लॉबी को ये हजम नहीं हो रहा है। फिर भी एक बात तय कही जा रही है कि भाजपा उन्नाव सीट से इस बार किसी ब्राह्मण प्रत्याशी को उतारेगी। इसमें भाजपा के कद्दावर नेता ब्रजेश पाठक का नाम भी लिया जा रहा है।

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2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर में भारतीय जनता पार्टी साक्षी महाराज को उतारकर यहां से कमल खिलाने में कामयाब रही थी। उन्नाव एक समय में कांग्रेस का मजबूत दुर्ग हुआ करता था, लेकिन वक्त के साथ भाजपा की जड़ें जमती चली गई। 2014 में साक्षी महाराज भाजपा 5,18,834 मत प्राप्त कर जीते थे जबकि अरुण शंकर शुक्ल अन्ना शुक्ला सपा 2,08,661 मत प्राप्त कर दूसरे स्थान पर रहे थे जबकि बृजेश पाठक बसपा 2,01,076 मत प्राप्त कर तीसरे स्थान पर रहे थे। जबकि अन्नू टंडन कांग्रेस 1,97,098 मत प्राप्त कर चौथे स्थान पर रही थीं। इसलिए अब सभी की निगाहे उन्नाव की सीट पर है।

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आजादी के बाद से 2014 तक उन्नाव संसदीय सीट पर 16 बार आम चुनाव और एक बार उपचुनाव हुए हैं। इनमें से कांग्रेस 9 बार जीतने में सफल रही जबकि चार बार भाजपा जीती है। सपा, बसपा और जनता पार्टी एक-एक बार जीतने में सफल रही हैं। उन्नाव लोकसभा सीट पर पहली बार 1952 में चुनाव हुए जिसमें कांग्रेस के विश्वंभर दयाल त्रिपाठी जीतने में सफल रहे। कांग्रेस ने 1971 तक लगातार 6 बार जीतने के बाद 1977 में जनता पार्टी के हाथों मात खाई। जनता पार्टी के राघवेंद्र सिंह जीतकर संसद पहुंचे। हालांकि 1980 के चुनाव में कांग्रेस ने फिर वापसी की और 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए चुनाव में इस सीट पर कब्जा बनाए रखा।

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लेकिन 1989 के लोकसभा चुनाव में जनता दल ने अनवर अहमद को उतारकर कांग्रेस से यह सीट छीन ली। भाजपा 1991 में पहली बार इस सीट पर खाता खोलने में कामयाब रही यहां से देवीबक्श सिंह सांसद बने और इसके बाद वह लगातार 1996 और 1998 में भी चुनाव जीतने में सफल रहे। 1999 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने दीपक कुमार को उतारकर भाजपा के विजय रथ को रोका। इसके बाद 2004 में बहुजन समाज पार्टी ने बृजेश पाठक को उतारा और वो जीतने में सफल रहे। इसके बाद कांग्रेस ने 2009 में अनु टंडन के जरिए एक बार फिर वापसी की। लेकिन 2014 में मोदी लहर में भाजपा ने साक्षी महाराज को उतारकर जीत हासिल की।

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उन्नाव के जातीय समीकरण की बात करें तो उन्नाव लोकसभा सीट पर 2011 की जनगणना के मुताबिक कुल जनसंख्या 31,08,367 है। इसमें 82.9 फीसदी ग्रामीण और 17.1 फीसदी आबादी शहरी है। 2017 के हुए विधानसभा चुनाव के मुताबिक इस संसदीय सीट पर 21,71,025 मतदाता और 2,303 मतदान केंद्र हैं।

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अनुसूचित जाति की आबादी इस सीट पर 30.52 फीसदी हैं। अनुसूचित जनजाति की आबादी 0.09 फीसदी है। उन्नाव लोकसभा सीट के तहत छह विधानसभा सीटें आती हैं। इनमें मोहान, उन्नाव, बांगरमऊ, सफीपुर, भगवंतनगर और पुरवा विधानसभा सीटें आती हैं। सफीपुर और मोहान सीट विधानसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है।

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