लोकसभा चुनाव 2019ः यूपी को कभी रास नहीं आया फिल्मी ग्लैमर
भोजपुरी स्टार निरहुआ इस चुनाव में भाजपा के टिकट पर आजमगढ़ से अखिलेश के खिलाफ किस्मत आजमा रहे हैं। उनकी राह बहुत कठिन है। देखना यह है कि पूर्व मुख्यमंत्री के खिलाफ अमिताभ की तरह चुनाव लड़ पाते हैं या खेत रहते हैं।
रामकृष्ण वाजपेयी
उत्तर प्रदेश राजनीतिक रूप से समृद्ध राज्य है। इस प्रदेश ने कई प्रधानमंत्री और राष्ट्रीय स्तर के नेता दिये हैं। लेकिन दक्षिण भारतीय राज्यों की तरह इस प्रदेश की राजनीति में फिल्मों की सितारों की चमक कभी हावी नहीं रही।
स्वाधीनता संग्राम की पृष्ठभूमि वाले इस प्रदेश की जनता राजनीति में फिल्मी सितारों को उतनी अहमियत नहीं देती है जितनी अपने बीच से निकले एक सामान्य नेता या कार्यकर्ता को। ऐसे तमाम फिल्मी सितारे हैं जिन्हें यहां की धरती चुनावी मैदान के लिए रास नहीं आयी और वह वापस लौट गए लेकिन कुछ ऐसे भी हैं जिनके भीतर नुमाइंदगी की क्षमता को पहचान कर जनता ने भरपूर प्यार देकर सिर आँखों पर बैठाया।
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यहां से सहस्राब्दि के महानायक अमिताभ बच्चन, संजय दत्त, हेमामालिनी, राजबब्बर, जयाप्रदा, जया बच्चन, जावेद जाफरी, निरहुआ, नगमा, मुजफ्फर अली, रविकिशन, मनोज तिवारी और स्मृति ईरानी आदि ने किस्मत आजमाई। इसमें जया बच्चन तो सिर्फ राज्यसभा तक सीमित रहीं वह चुनावी राजनीति में कभी नहीं उतरीं। वहीं हेमामालिनी ने राज्य सभा के बाद सक्रिय राजनीति में जौहर दिखाए। आइए डालते यूपी में सितारों की कुंडली पर एक नजर।
अमिताभ बच्चन
उत्तर प्रदेश के चुनावी परिदृश्य पर नजर डालें तो 1984 के दौर से शुरुआत करनी होगी जब अमिताभ बच्चन जैसे स्टार की एक अपील पर कई सियासी रिकॉर्ड धराशायी हो गए थे।
इस चुनाव में कला और साहित्य की धरती पर इलाहाबादियों ने रिकॉर्ड तोड़ मतदान कर अमिताभ को भारी मतों से जिताया था। नतीजतन इस चुनाव में कद्दावर नेता हेमवती नंदन बहुगुणा को करारी शिकस्त झेलनी पड़ी थी।
ये दौर अमिताभ बच्चन का था। फिल्म इंडस्ट्री में भी उनके सितारे बुलंदी पर थे। अमिताभ बच्चन अपने दोस्त राजीव गांधी की खातिर सियासी अखाड़े में कूदे थे।
लाल बहादुर शास्त्री, हेमवती नंदन बहुगुणा, विश्वनाथ प्रताप सिंह, डॉ. मुरली मनोहर जोशी आदि को लोकसभा पहुंचाने वाले इलाहाबाद के मतदाताओं ने पहली बार मतदान में इतना जबरदस्त उत्साह दिखाया था।
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लेकिन अमिताभ सियासत में ज्यादा दिन नहीं रह पाए।1987 आते-आते उन्होंने पद से यह कहते हुए इस्तीफा दे दिया कि वो राजनीति के लिए फिट नहीं हैं। बोफोर्स दलाली विवाद में अमिताभ और उनके भाई अजिताभ पर आरोप लगे। उसके बाद उन्होंने कांग्रेस और पॉलिटिक्स को अलविदा कह दिया।
राजबब्बर
1996 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने लखनऊ से अभिनेता राज बब्बर को भाजपा के दिग्गज नेता अटल बिहारी वाजपेयी के मुकाबले चुनाव मैदान में उतारा था। राज बब्बर की चुनावी सभाओं में जनता की भीड़ तो खूब उमड़ी लेकिन वह वाजपेयी से सवा लाख वोटों से हार गए। बाद में उनका समाजवादी पार्टी से मोहभंग हो गया। 2008 में उन्होंने कांग्रेस का दामन थाम लिया और 2009 में फिरोजाबाद लोकसभा सीट से अपने राजनीतिक गुरु मुलायम सिंह यादव की बहू डिम्पल को हराकर चर्चा में आ गए। हालांकि 2014 में गाजियाबाद से जनरल वीके सिंह ने राज बब्बर को हरा दिया। इस बार वह फतेहपुर सीकरी से चुनाव लड़ रहे हैं।
स्मृति ईरानी
मुख्यतः टीवी सीरियल अभिनेत्री स्मृति ईरानी पिछले लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी के खिलाफ अमेठी से चुनाव लड़ी थीं और बुरी तरह हारी थीं। लेकिन बाद में पार्टी ने उन्हे राज्यसभा भी भेजा और मंत्री पद भी दिया। इसी के साथ स्मृति ने अमेठी से नाता टूटने भी नहीं दिया। नतीजतन इस बार वह अमेठी में राहुल गांधी को मजबूती से चुनौती देती नजर आ रही हैं जिसके चलते राहुल गांधी को भी सुरक्षित सीट की तलाश में यूपी छोड़कर वायनाड भागना पड़ गया। इस सीट के मुकाबले पर सबकी नजर है।
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मुजफ्फर अली
इसके बाद 1998 में उमराव जान के निर्माता निर्देशक मुजफ्फर अली लखनऊ से सपा के टिकट पर अटल बिहारी वाजपेयी के खिलाफ चुनाव लड़ने उतरे। तब ‘इस शहर में हर शख्स परेशान सा क्यूं है’ वाले पोस्टर छा गए, इन के पक्ष में भी तमाम फिल्मी सितारे प्रचार करने आए लेकिन मुजफ्फर अली भी अटल के सामने नहीं टिक सके।
नफीसा अली
2009 में फिल्म अभिनेत्री और पूर्व मिस इंडिया नफीसा अली लखनऊ से बतौर सपा उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतरीं। उनकी सभाओं में भी भीड़ तो खूब उमड़ी, इसके बावजूद वह भाजपा प्रत्याशी लालजी टंडन से हार गईं। जनता ने लखनऊ के जाने समझे नेता पर भरोसा जताया।
जावेद जाफरी
इसके बाद आम आदमी पार्टी ने 2014 के लोकसभा चुनाव में मशहूर कॉमेडियन जगदीप के बेटे जावेद जाफरी को लखनऊ के रण में उतारा, लेकिन वह भाजपा प्रत्याशी राजनाथ सिंह के सामने कोई करिश्मा नहीं दिखा सके। और वापस लौट गए।
नगमा नहीं दिखा सकीं करिश्मा
कांग्रेस ने मशहूर अभिनेत्री नगमा को मेरठ से 2014 में मौका दिया, लेकिन वह वहां कोई करिश्मा नहीं दिखा पाईं। इसके बाद उनका राजनीतिक करियर भी खत्म हो गया।
मनोज तिवारी
कुछ ऐसा ही हाल भोजपुरी सुपर स्टार मनोज तिवारी का हुआ। मनोज तिवारी ने समाजवादी पार्टी से अपने राजनीतिक उड़ान की शुरुआत की। 2009 में गोरखपुर से वह चुनाव मैदान में उतरे लेकिन उन्हें योगी आदित्यनाथ के हाथों बुरी तरह हारने के बाद उन्होंने दिल्ली की उड़ान भर ली। दिल्ली में उन्हें सब कुछ मिला 2014 के लोकसभा चुनाव में मनोज पर भरोसा करते हुए उन्हें संसद भी पहुंचा दिया गया। इस बार भी वह दिल्ली से ही किस्मत आजमा रहे हैं।
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रविकिशन
भोजपुरी फिल्म स्टार रविकिशन ने पिछले चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर जौनपुर से किस्मत आजमाई लेकिन हार गए। अब वह गोरखपुर से भाजपा के टिकट पर किस्मत आजमा रहे हैं।
निरहुआ
भोजपुरी स्टार निरहुआ इस चुनाव में भाजपा के टिकट पर आजमगढ़ से अखिलेश के खिलाफ किस्मत आजमा रहे हैं। उनकी राह बहुत कठिन है। देखना यह है कि पूर्व मुख्यमंत्री के खिलाफ अमिताभ की तरह चुनाव लड़ पाते हैं या खेत रहते हैं।