यूपी में मुस्लिम वोट हड़पने का खेल चालू, कांग्रेस-बसपा में रुझान से सपा में बेचैनी

भाजपा का दूसरा टारगेट मुस्लिम वोट बैंक हैं जो हमेशा ही उसे हराने के लिए वोट करते हैं। जानकारों का आकलन है कि इस बार मुसलिम वोटरों में सपा के प्रति गहरी नाराजगी है। मुजफ्फरनगर व दादरी कांड में तत्परता न दिखाने जैसी वजहों से मुसलमान गुस्से में है‘। ऐसा पक्का आकलन है कि सपा से नाराज मुस्लिम वोटरों की नई पसंद बसपा व कांग्रेस हो सकती है।

Update:2016-08-21 21:06 IST

 

नई दिल्ली: विधानसभा चुनावों के मद्देनजर देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में 18 फीसदी मुस्लिम वोटों को बांटने और लुभाने की जोर आजमाइश शुरू हो गई है। उत्तर प्रदेश में पिछले डेढ़-दो दशक से मुस्लिम वोट बैंक का पूरा रूझान सपा, बसपा या कांग्रेस के उस उम्मीदवार के प्रति रहा है जो भाजपा उम्मीदवार को पराजित करने की स्थिति में हो। आगामी 2017 के विधानसभा चुनावों के पहले केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा ने इस मजबूत पैठ को तोड़ने की बड़ी रणनीति पर काम आरंभ कर दिया है। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह का दलितों की रसोई का भोजन करने के साथ ही दलितों को भाजपा व संघ परिवार के करीब लाने की अब तक की सबसे बड़ी कसरत हो रही है।

संघ का एजेंडा

संघ परिवार का बड़ा एजेंडा यह है कि एक तो हिंदू जातियों खास तौर पर गैर यादव ओबीसी और गैर जाटव दलितों में अपना जनाधार बढ़ाना और दूसरा चुनावों में मुस्लिम वोट बैंक में अधिक से अधिक बंटवारा करने की रणनीति पर काम करना। भाजपा के अंदरूनी सूत्रों का दावा है कि दोनों ही मोर्चों पर बड़ा काम हो रहा है तथा कमजोर दलित जातियों को भाजपा के करीब लाने की अहम प्रकिया चल रही है।

मुस्लिम वोटिॆंग पैटर्न

भाजपा का दूसरा टारगेट मुस्लिम वोट बैंक हैं जो हमेशा ही उसे हराने के लिए वोट करते हैं। यूपी में मुस्लिम मतों के पैटर्न को करीब से देखने वालों का आकलन है कि इस बार मुसलिम वोटरों में सपा के प्रति गहरी नाराजगी है। मुजफ्फरनगर व दादरी कांड में तत्परता न दिखाने जैसी वजहों से मुसलमान गुस्से में है‘। ऐसा पक्का आकलन है कि सपा से नाराज मुस्लिम वोटरों की नई पसंद बसपा व कांग्रेस हो सकती है। इसलिए बसपा प्रमुख मायावती पिछले कई महीनों से इसी मिशन पर काम करते हुए बसपा के बाहर मुस्लिम नेताओं व गुटों से खुला संवाद कर रही हैं।

बिहार चुनाव में कुछ पॅाकेटों में मुसलमानों के वोट बैंक के बंटने और आल इंडिया मजलिस-ए-इतेहाद उल मुसलमीन यानी एआईएमआईएम व सपा के सेकुलर मोर्चे से बाहर निकलकर चुनाव लड़ने से भाजपा गदगद थी। इस बार यूपी में इस पार्टी के रहनुमा असदुद्दीन औवेसी कई मुस्लिम बहुल सीटों पर उम्मीदवार उतारने का ऐलान कर चुके हैं। दूसरी ओर पिछले दशक में 2008 में बनी पीस पार्टी जिसे डा. अयूब और उनके साथियों ने गठित किया था, इस बार सभी मुस्लिम आबादी वाली सीटों पर चुनाव लड़ेगी। हालांकि मुस्लिम वोटों में विभाजन की संभावना से बाकी दलों से कहीं ज्यादा सपा में बेचैनी है।

सपा में बेचैनी

समाजवादी पार्टी के सांसद मुलायम सिंह यादव के भतीजे धर्मेंद यादव ने मुस्लिमों के वोट काटने के मकसद से चुनाव में उतरने का ऐलान करने वाली पार्टियों को भाजपा की बी टीम करार दिया है लेकिन सपा की मुसीबत यह है कि इस बार उसके कई प्रमुख मुस्लिम नेता और कार्यकर्ता सपा-भाजपा के बीच बिहार चुनाव के ऐन पहले हुए कथित गुप्त समझौते के कारणों का जवाब तलाशने से बेचैन हैं।

ऑल इंडिया मुस्लिम मजलिस मुशावरत के पूर्व अध्यक्ष डॉ. जफरुल इस्लाम खान कहते हैं कि मुसलमानों को महज वोट बैंक मानते हुए उनकी सुध चुनावों के वक्त ही ली जाती है। उनका रहनुमा बन कर उनकी समस्याएं भुला दी जाती हैं। समुदाय इसे समझ चुका है। वो बार बार छलावा क्यों बर्दाश्त करेंगे।

(फोटो साभार: फर्स्ट पोस्ट)

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