पूर्णिमा श्रीवास्तव
गोरखपुर: सबका साथ सबका विकास का दावा करने वाली भाजपा अपने मुख्यमंत्री के गढ़ में ही ठाकुर और ब्राह्मण राजनीति के मकडज़ाल में फंसती दिख रही है। गोरखपुर-बस्ती मंडल की 9 में छह सीटों पर जहां ब्राह्मण फैक्टर प्रभावी नहीं है, वहां तो पार्टी ने अन्तरविरोध को दरकिनार कर चेहरों को घोषित कर दिया लेकिन तीन सीटों के ब्राह्मण समीकरण ने पार्टी के दिग्गजों को पसोपेश में रखा हुआ है। जिन 6 सीटों पर इकलौते ब्राह्मण उम्मीदवार का पत्ता काटा गया है, वहां पार्टी ने ब्राह्मण चेहरे को ही तरजीह दी है। ब्राह्मण-ठाकुर राजनीति का बैलेंस दुरूस्त करने के चक्कर में ही पार्टी को ब्राह्मण बाहुल्य गोरखपुर, देवरिया और संतकबीर नगर सीट पर मंथन दर मंथन करना पड़ रहा है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गढ़ गोरखपुर-बस्ती मंडल की 9 सीटों में से 3 पर 12 मई तो 6 सीटों पर 19 मई को अंतिम चरण में वोटिंग होनी है। प्रमुख राजनीतिक पार्टियों की तरफ से फूंक-फूंक कर कदम रखे जा रहे हैं। भाजपा, गठबंधन या फिर कांग्रेस, किसी भी राजनीतिक पार्टी के प्रत्याशियों को लेकर तस्वीर पूरी तरह साफ नहीं हो सकी है। योगी जहां एक तरफ दोनों मंडलों की सभी 9 सीटें जीतकर 2014 का करिश्मा दोहराना चाहते हैं, वहीं विरोधी उन्हें किसी कीमत पर वाकओवर देने को राजी नहीं है।
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तीन सीटों की तस्वीर साफ नहीं
भाजपा ने तमाम अटकलों को खारिज करते हुए 6 सीटों पर प्रत्याशी घोषित कर दिया, लेकिन योगी की पारम्परिक सीट गोरखपुर, जूता कांड के बाद चर्चित संतकबीर नगर और पुराने दिग्गज कलराज मिश्र की सीट देवरिया की तस्वीर अभी साफ नहीं हो सकी है। दरअसल, योगी आदित्यनाथ पर ठाकुरवादी होने का मुखर आरोप लगता रहा है। इसीलिए पार्टी ब्राह्मणों को खुश करने के लिए कई पैतरे पिछले लोकसभा चुनाव से ही चल रही है। 2014 के चुनाव में देवरिया से जहां कलराज मिश्रा को मैदान में उतारा गया तो वहीं विधानसभा चुनाव की तैयारियों के क्रम में योगी के कभी धुर विरोधी रहे शिवप्रताप शुक्ला को केन्द्रीय मंत्रीमंडल में जगह दी गई। विधानसभा चुनाव की बैतरणी तो भाजपा ने पार कर ली, लेकिन गोरखपुर उपचुनाव में योगी की पारम्परिक सीट पर ब्राह्मण प्रत्याशी उतारना भारी पड़ गया। उपेंद्र दत्त शुक्ला के पक्ष में योगी की तीन दर्जन से अधिक सभाएं भी पार्टी जीत नहीं दिला सकी।
जूता कांड के बाद तेज हुई राजनीति
पूर्वांचल के ब्राह्मण-ठाकुर राजनीति का उभार संतकबीर नगर के जूता कांड से भी हो गया जब योगी के करीबी मेहदावल विधायक राकेश सिंह बघेल और संतकबीर नगर सांसद शरद त्रिपाठी शिलापट्ट पर नाम को लेकर भिड़ गए। जिला योजना की बैठक में प्रभारी मंत्री के बगल में बैठकर सांसद ने योगी के करीबी विधायक पर ताबड़तोड़ जूतों की बारिश कर मोदी मैजिक के दौर में दबे हुए ब्राह्मण-ठाकुर राजनीति को बारूद बना दिया। गोरखपुर, संतकबीर नगर और देवरिया तीनों सीट पर ब्राह्मण फैक्टर हावी है। संतकबीर नगर में पार्टी शरद पर दांव लगाने में कतरा रही है, लेकिन टिकट कटने पर उसे बगावत का भय भी सता रहा है। इसीलिए कभी शरद या फिर उनके पिता डॉ.रमापति राम त्रिपाठी को टिकट देने पर चर्चाएं हो रही है। टिकट कटने की स्थिति में शरद को देवरिया भेजे जाने की भी चर्चाएं हैं।
गोरखपुर सीट पर भी उलझा मामला
वहीं योगी के पारम्परिक सीट गोरखपुर में भी ब्राह्मण फैक्टर पार्टी को परेशान किए हुए हैं। चुनाव के ऐन पहले निषाद बिरादरी में सेंधमारी को लेकर भाजपा ने पूर्व मंत्री जमुना निषाद की पत्नी राजमती निषाद और बेटे अमरेन्द्र निषाद को टिकट का भरोसा देकर पार्टी में शामिल करा लिया है। वहीं महापौर चुनाव में अंतिम क्षणों में टिकट की दौड़ में पिछड़े योगी के करीबी धर्मेन्द्र सिंह पर दांव लगाने की चर्चाएं हैं। टिकट अमरेन्द्र को मिले या फिर धर्मेन्द्र को, दोनों परिस्थितियों में पार्टी को ब्राह्मणों का गुस्सा झेलना होगा। इसी समीकरण को देखते हुए गोरखपुर सीट पर उम्मीदवार के नाम पर मंथन का दौर थमने का नाम नहीं ले रहा है।
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बीते 26 मार्च को गोरखपुर के नुमाइश ग्राउंड पर विजय संकल्प रैली के साथ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पूर्वांचल में चुनावी शंखनाद कर दिया, लेकिन मंच पर संभावित उम्मीवारों की भीड़ के बाद भी असमंजस की स्थिति बरकरार है। भाजपा उपचुनाव के प्रत्याशी उपेन्द्र दत्त शुक्ला पर सहमति नहीं बना सकी है। यही वजह है कि संकल्प रैली में योगी किसी विशेष नेता को तरजीह देने से बचते दिखे। कांग्रेस और गठबंधन को भी भाजपा के दांव का इंतजार है, इसीलिए अभी दोनों ने अपने पत्ते नहीं खोले हैं। गोरखपुर संसदीय सीट पर 1989 से पिछले साल हुए उपचुनाव तक भाजपा का एकछत्र कब्जा रहा है।
प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ 1998 से लगातार यहां से सांसद थे। उनके मुख्यमंत्री बनने के बाद खाली हुई सीट पर भाजपा ने तब क्षेत्रीय अध्यक्ष (वर्तमान में प्रदेश उपाध्यक्ष) उपेन्द्र शुक्ल को मैदान में उतारा था, लेकिन उपचुनाव में वह सपा उम्मीदवार प्रवीण निषाद (जिन्हें बसपा का भी समर्थन प्राप्त था) से हार गए। जूता कांड के बाद सोशल मीडिया में देश की सबसे चर्चित सीटों में शुमार संतकबीर नगर सीट पर भी भाजपा अपने प्रत्याशी को लेकर सहमति नहीं बना सकी है। पार्टी शरद त्रिपाठी या उनके पिता डॉ रमापति राम त्रिपाठी को चुनावी मैदान में उतारती है तो योगी समर्थक माने जाने वाले मेहदावल विधायक राकेश सिंह बघेल समर्थकों की तरफ से पुरजोर विरोध तय है। पार्टी में सपा के पूर्व सांसद भालचंद यादव का नाम भी तेजी से चल रहा है।
पांच सीटों पर पुराने धुरंधरों पर दांव
तमाम अटकलों के बाद भाजपा ने गोरखपुर-बस्ती मंडल की नौ में से छह सीटों पर असमंजस को दूर कर दिया। पांच सीटों पर पुराने धुरंधरों पर दांव लगाया गया है तो वहीं कुशीनगर में कांग्रेसी दिग्गज कुंवर आरपीएन सिंह के सामने युवा चेहरे और पूर्व विधायक विजय दूबे को मैदान में उतारा गया है। सियासी गलियारों में चर्चाएं हैं कि पार्टी सिर्फ मोदी के नाम और चेहरे पर चुनाव में जाना चाहती है, लेकिन बगावत की आशंका में उसे पुराने और खारिज चेहरों पर दांव लगाना पड़ा है।
बांसगांव से एक बार फिर कमलेश पासवान पर भरोसा किया गया है। जबकि उनके खिलाफ बरहज से लेकर बांसगांव तक सांसद लापता के पोस्टर लग चुके हैं। इतना ही नहीं मुख्यमंत्री योगी से उनके रिश्ते पहले जैसे मधुर भी नहीं है। जमीन हड़पने के मामलों पर मुकदमा दर्ज होने के चलते सांसद कमलेश पार्टी की फजीहत भी करा चुके हैं। बस्ती सीट से भाजपा ने एक बार फिर सांसद हरीश द्विवेदी पर दांव लगाया है। विधानसभा चुनाव में हार का ठप्पा लेकर चल रहे हरीश द्विवेदी पर 2014 में भाजपा ने दांव लगाया तो किसी को यकीन नहीं हुआ था। हरीश को बस्ती में गठबंधन उम्मीदवार से कड़ी टक्कर मिलने की संभावना है। महराजगंज से पार्टी ने अपने चिरपरिचित चेहरे पंकज चौधरी पर एक बार फिर दांव लगाया है। हालांकि सिसवा के भाजपा विधायक प्रेम सागर पटेल ने पिछले कई महीनों से खुद को उम्मीदवार बताते हुए चुनाव कार्यालय तक खोलने की तैयारी कर ली थी।
महराजगंज में फिर पंकज पर भरोसा
महराजगंज में शिवपाल यादव की पार्टी ने पूर्व मंत्री अमर मणि त्रिपाठी की बेटी तनुश्री त्रिपाठी को मैदान में उतारकर चौंकाया है। तनुश्री भाजपा और गठबंधन उम्मीदवार में से किसके वोट को अधिक काटेगी, इसे लेकर कयासबाजी तेज है।
गठबंधन की तरफ से अभी प्रत्याशी तय नहीं हुआ है। यहां से पूर्व सांसद कुंवर अखिलेश सिंह को गठबंधन का प्रबल दावेदार माना जा रहा है, लेकिन निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद खुद के यहां का उम्मीदवार होने का दावा कर रहे हैं। गठबंधन के असमंजस को देखते हुए ही कांग्रेस ने भी यहां से प्रत्याशी को घोषणा नहीं की है। देखना दिलचस्प होगा कि पांच बार के सांसद पंकज जीत का छक्का लगाने में सफल होते हैं या नहीं।
कुशीनगर में खेला नया दांव
कुशीनगर में जैसी अटकले थीं वैसा ही हुआ। भाजपा ने राजेश पांडेय का टिकट काट कर हिन्दू युवा वाहिनी के पुराने कार्यकर्ता और रेलवे के चर्चित ठेकेदार विजय दूबे को टिकट देकर नया दांव खेला है। हिन्दू युवा वाहिनी के बैनर पर सुर्खियां बटोरने वाले विजय दूबे को जीत कांग्रेस के टिकट पर मिली थी जब वह 2012 का विधानसभा चुनाव कांग्रेस के टिकट पर लड़े। पूर्व केन्द्रीय मंत्री कुंवर आरपीएन सिंह के आशीर्वाद से विधायक का सफर तय करने वाले विजय दूबे बदली परिस्थितियों में कुंवर को ही टक्कर देंगे। वहीं कुशवाहा बिरादरी के संख्या बल को देखते हुए सलेमपुर सीट से भाजपा ने एक बार फिर रविन्द्र कुशवाहा पर दांव लगाया है। चार बार सांसद रहे पिता हरिकेवल प्रसाद की राजनीतिक विरासत संभाल रहे रविंद्र कुशवाहा इंटरमीडिएट पास हैं।
डुमरियागंज में पाल को फिर टिकट
सर्वाधिक असमंजस की स्थिति डुमरियागंज सीट पर थी जहां दो बार के सांसद जगदम्बिका पाल को लेकर कई चर्चाए थीं। चर्चा थी कि वह गठबंधन से लेकर कांग्रेस के दर पर टिकट मांगने पहुंच गए थे। इतना ही नहीं यह सीट अपना दल के लिए भी छोड़े जाने की चर्चाएं थीं। अटकलों को विराम देते हुए पुराने दिग्गज पाल टिकट हासिल करने में कामयाब हुए हैं। यहां से बसपा ने आफताब आलम को उम्मीदवार घोषित कर रखा है।
देवरिया सीट को लेकर हाईकमान मुश्किल में
देवरिया में शीर्ष नेतृत्व के संकेतों के बाद दिग्गज कलराज मिश्रा खुद टिकट के दौड़ से बाहर हो गए। अब यहां टिकट की दावेदारी पत्रकारिता छोडक़र सियासी डोर थामने वाले शलभ मणि त्रिपाठी और पूर्व सांसद श्रीप्रकाश मणि त्रिपाठी के बेटे शंशाक मणि त्रिपाठी के बीच उलझी हुई है। सोशल मीडिया में कलराज मिश्र, पूर्व सांसद श्रीप्रकाश मणि त्रिपाठी और शलभ मणि त्रिपाठी के समर्थकों के बीच जिस प्रकार नोकझोंक हो रही है, उसे देखते हुए पार्टी हाईकमान मुश्किल में है। देवरिया में पार्टी को प्रभावशाली ब्राह्मण उम्मीदवार की तलाश है। हालांकि देवरिया में जिस तरह का समीकरण बना हुआ है उसे देखते भाजपा की राह आसान नहीं है। यहां से प्रत्याशी कोई भी घोषित हो, भाजपा में गुटबाजी, बगावत और अंतर्विरोध दिखना तय है।