Digvijay Singh: कांग्रेस अध्यक्ष पद की रेस से बाहर हुए दिग्विजय सिंह, जानिए राजनीतिक सफर के बारे में जाने
Digvijay Singh: दिग्विजय सिंह कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद की रेस से बाहर हो गए हैं। आज उनके राजनीतिक सफर के बारे में बात करेंगे।
Digvijay Singh: दिग्विजय सिंह कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद की रेस से बाहर हो गए हैं। उन्होने साफ कर दिया है कि वह नामांकन नहीं दाखिल करेंगे। मल्लिकार्जुन खड़गे नामांकन करगें वह उनके प्रस्तावक बनेंगे। दिग्विजय सिंह के राजनीतिक सफर के बारे में बात करेंगे। मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह कांग्रेस के दिग्गज नेता हैं। दिग्विजय सिंह ऐसे राजनेता हैं जो अपनी पर्सनल लाइफ से लेकर प्रोफेशनल लाइफ को लेकर हमेशा चर्चा में बने रहे हैं। उनके ऊपर हमेशा आरोप लगते रहते हैं लेकिन उनके ऊपर आरोंपों को कोई ज्यादा असर नहीं होता है। उनके बारे में कहा जाता है कि उनको जो करना होता है वो वही करते हैं। वो किसी की अनुमति लेने का इंतजार नहीं करते हैं।
दिग्विजय सिंह का जन्म
दिग्विजय सिंह का जन्म 28 फरवरी सन् 1947 को इंदौर में हुआ था। दिग्विजय सिंह के पिता का नाम स्वर्गीय बलभद्र सिंह और माता का नाम स्वर्गीय अपर्णा कुमारी है। दिग्विजय सिंह के पिता बलभद्र सिंह राघोगढ़ के राजा थे। राघोगढ़ ग्वालियर स्टेट के अधीन था। दिग्विजय सिंह ने डेली कॉलेज से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक किया है। गोविंददास सेकरसरिया प्रोद्योगिकी एवं विज्ञान संस्थान इंदौर से भी पढ़ाई की है। उनकी पहली शादी आशा सिंह से हुई थी, लेकिन कैंसर के चलते 2013 में आशा सिंह का निधन हो गया था। उनकी चार बेटियां और एक बेटा है। पहली पत्नी की मौत होने के बाद में अप्रैल 2014 में दिग्विजय सिंह ने दूसरी शादी राज्यसभा टीवी एंकर अमृता राय से कर ली। जिसके बाद में दिग्विजय सिंह को काफी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा था, लेकिन उनके ऊपर उन आलोचनाओं का कोई असर नहीं हुआ। इसीलिए दिग्विजय सिंह अपनी मर्जी के मालिक कहे जाते हैं।
राजनीतिक सफर
दिग्विजय सिंह ने अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत नगर पालिका परिषद अध्यक्ष राघोगढ़ के रुप में की थी। नगर पालिका परिषद अध्यक्ष बनने के बाद में उन्होने 1970 में कांग्रेस ज्वाइन कर ली। कांग्रेस ज्वाइन करने के बाद में सबसे पहले 1977 में राघोगढ़ विधानसभा से खड़े हुए और जनता ने उनको विधायक चुन लिया। विधायक बनने के बाद में कांग्रेस ने उन्हे कैबिनेट मंत्री बना दिया। उसके बाद में 1984 में लोकसभा के चुनाव हुए वह राजगढ़ से सांसद चुन लिए गए, जिसके बाद में उन्हे मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बना दिया गया। 1989 में हुए लोकसभा चुनाव में वह अपने संसदीय क्षेत्र से चुनाव हार गये। 1993 में हुए विधान सभा के चुनावों में उनको जीत मिली उसको बाद में उन्हे मध्यप्रदेश की सबसे बड़ी जिम्मेदारी मिली उन्हे मुख्यमंत्री बना दिया गया।
1998 के विधानसभा के चुनावों में दोबारा दिग्विजय सिंह को मुख्यमंत्री बनने का मौका मिला। 2003 तक दिग्विजय सिंह मुख्यमंत्री रहे। लेकिन उसके बाद में उन्हे लगातार हार का सामना करना पड़ा। लगातार हार के बाद दिग्विजय सिंह ने संकल्प लिया था कि वह चुनाव नहीं लड़ेंगे। 16 सालों बाद दिग्विजय सिंह ने 2019 के लोकसभा चुनाव में भोपाल लोकसभा सीट से चुनाव लड़े लेकिन अपनी प्रतिद्ंवदी भाजपा की प्रत्याशी साध्वी प्रज्ञा ठाकुर से चुनाव हार गए।