PWD : भ्रष्टों पर कार्रवाई मगर पंचायतीराज विभाग में घोटालों को दबाने की कोशिश

Update:2017-11-03 13:09 IST

 

घपलों की अनदेखी

राजकुमार उपाध्याय की स्पेशल रिपोर्ट

लखनऊ: योगी सरकार ने भ्रष्टाचार पर जीरो टोलरेंस की नीति को आगे बढ़ाते हुए लोकनिर्माण विभाग के 22 इंजीनियरों को बर्खास्त कर दिया है, लेकिन इसके उलट पंचायतीराज विभाग के छोटे अफसरों से लेकर बड़े बाबू घपले-घोटालों को दबाने और छिपाने में जुटे हुए हैं। पंचायतीराज दिवस के आयोजन में धांधली की जांच रिपोर्ट धूल फांक रही है तो आउटसोर्सिंग कर्मियों के तैनाती प्रकरण की फाइल गुम सी है। हालिया परफार्मेंस ग्रांट के आवंटन में उजागर 107 करोड़ के घपले में शामिल अफसरों की जांच अलग—अलग चश्मों से की जा रही है। ​ताजा मामले तो सिर्फ बानगी भर हैं। कई साल से विभाग में अनियमितताओं और उनकी जांच रिपोर्ट को नजरअंदाज करने का चलन सा बन गया है जो बदस्तूर जारी है।

केस-1 : पंचायतीराज दिवस मनाने के आयोजन के लिए जो निविदा निकाली गई, उसमें उस कम्पनी को काम दिया गया जिसने टेंडर में एल-1 से दस गुना अधिक दर कोट की थी। जबकि सतर्कता आयुक्त की गाइडलाइन के मुताबिक टेंडर में सबसे कम दर एल-1 कोट करने वाली कम्पनी को निविदा देने का प्रावधान है। इस गोलमाल की शिकायत करने पर मामले का खुलासा हुआ। विशेष सचिव पंचायतीराज सुशील कुमार मौर्य की जांच में गड़बड़ी भी उजागर हुई मगर भ्रष्टों पर कार्रवाई के बजाय जांच रिपोर्ट गुम है।

केस-2 : अखिलेश सरकार में स्वच्छ भारत मिशन के तहत ग्रामीण इलाकों में तैनाती में खुलकर खेल खेला गया। हुक्मरानों ने पहले आउटसोर्सिंग के जरिए कर्मचारी भर्ती करने के नियम का फैसला किया और फिर अपनी मन मुताबिक कम्पनियों को काम देकर दाम कमाए। चार दिन पहले पंजीकृत कम्पनी को भी भर्ती का अधिकार दे दिया गया। इस गड़बड़ी पर जब शोरशराबा तेज हुआ तब आउटसोर्सिंग घोटाले की जांच के आदेश हुए। आरोपी अफसरों पर कार्रवाई की सिफारिश भी हुई, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी के मिशन को पलीता लगाने वाले इन अफसरों के हाथ इतने लंबे हैं कि सत्ता बदलते ही जांच रिपोर्ट फाइलों में ना जाने कहां दबा दी गई।

केस-3 : परफार्मेंस ग्रांट में 107 करोड़ के घपले के आरोपी छोटे अफसरों पर कार्रवाई की गाज गिरी। तत्कालीन​ निदेशक आईएएस अनिल कुमार दमेले (सेवानिवृत्त मार्च 2017) के खिलाफ 699.75 करोड़ की धनराशि जिलों में भेजने के आरोप में जांच का आदेश हुआ, पर वर्तमान निदेशक विजय किरन आनन्द के खिलाफ किसी ने आवाज नहीं उठाई। जबकि बीते तीन मई को परफार्मेंस ग्रांट के तहत उन्होंने खुद जिलों में ई-पेमेंट के जरिए 394 करोड़ की धनराशि भेजी। धनराशि भेजने से पहले उन्होंने भी ग्राम पंचायतों के पात्रता की जांच नहीं कराई।

पूर्व निदेशक के घोटालों की जांच लंबित

पिछली सरकार में भी इसी तरह जांच रिपोर्ट को दरकिनार किया जाता रहा। उस समय विभाग के निदेशक रहे पीसीएस अफसर दयाशंकर श्रीवास्तव पर भी भ्रष्टाचार के ढेरों आरोप लगे। इसकी जांच ईओडब्लू से कराने का निर्णय लिया गया। आरटीआई से मिली जानकारी के अनुसार नियुक्ति विभाग ने पीसीएस अफसर दयाशंकर के विरुद्ध ईओडब्लू/सतर्कता जांच कराने के लिए गृह विभाग से अनुरोध किया है, पर चार वर्ष से अधिक समय बीत जाने के बाद भी जांच अब तक लंबित है। हैरानी की बात यह है कि 22 अप्रैल 2015 को तत्कालीन मुख्य सचिव ने जांच के संबंध में शासनादेश जारी किया था। इसमें साफ कहा गया है कि कोई भी जांच तीन महीने के अंदर पूरी कर ली जाए। गौरतलब है कि पीसीएस अधिकारी दयाशंकर पर शौचालय निर्माण में अनियमितता से लेकर विभाग की पंचायत शक्ति पत्रिका की छपाई में अनियमितता का आरोप है। उन पर आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने का भी आरोप है।

पंचायतीराज दिवस के आयोजन के प्रकरण में मैंने जांच के आदेश दिए थे। उसे दिखवाता हूं। आउटसोर्सिंग प्रकरण को भी दिखवाएंगे।

भूपेन्द्र सिंह चौधरी

राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), पंचायतीराज विभाग

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