5 साल डंडे खाने वाले शिवपाल को सपा में क्या मिला? कहीं नई पार्टी की कवायद तो नहीं

Update:2016-09-16 12:31 IST

लखनऊ: बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के 2007 से 2012 तक के कार्यकाल में अकेले समाजवादी पार्टी थी जो सरकार के खिलाफ सड़कों पर उतरी थी। सड़कों पर उतरने वाले नेताओं और कार्यकर्ताओं का नेतृत्व शिवपाल सिंह यादव के हाथ में था। अब शिवपाल अपने साथ हुए अपमान से इस तरह नाराज हैं कि नई पार्टी बनने की आशंका ने जोर पकड़ लिया है।

बसपा सरकार के खिलाफ सड़कों पर शिवपाल यादव ने पुलिस की लाठियां खाई थी। मायावती सरकार के खिलाफ आंदोलन में वे गांव-गांव गए और कार्यकर्ताओं को जमा किया और सड़कों पर आंदोलन के लिए उतरने के लिए प्रेरित किया।

बिना संघर्ष मिला ताज

नतीजा हुआ कि साल 2012 के विधानसभा चुनाव में सपा को पूर्ण बहुमत मिला और सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने बेटे अखिलेश यादव को सीएम बना दिया। साथ में अखिलेश को प्रदेश अध्यक्ष के पद भी तोहफे में मिला। सड़कों पर बिना संघर्ष किए अखिलेश वो सब पा गए जो उन्होंने संभवत: सपने में भी नहीं सोचा होगा।

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पुत्र मोह में भाई को किया नजरंदाज

संघर्ष के बाद शिवपाल ने सपने में भी ये नहीं सोचा होगा कि उन्हें उनकी मेहनत का ये फल मिलेगा। वो खुद को ठगा महसूस कर रहे थे लेकिन उनकी जुबान बंद रही। वो भी पूरे चार साल तक। चार साल तक उन्होंने जुबान नहीं खोली। उन्हें ये उम्मीद थी कि यूपी में पार्टी की कमान उन्हें सौंपी जाएगी। पुत्र मोह में पिता ने अपने भाई की मेहनत को नजरअंदाज किया।

मुलायम संभालने की कोशिश में

बेटे की सरकार से नाराज चल रहे पिता ने जब पार्टी कार्यकर्ताओं के सामने शिवपाल की नाराजगी जाहिर की तभी पता चला कि आग अंदर-अंदर सुलग रही है। मुलायम सिंह यादव ने पानी सिर से ऊपर जाता देख शिवपाल सिंह यादव को सपा का यूपी का अध्यक्ष बना दिया। राजनीति के माहिर खिलाड़ी मुलायम सिंह यादव अच्छी तरह जानते हैं कि संगठन की जिम्मेदारी शिवपाल को दिए बिना वापसी मुश्किल है। पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच वो कई बार इस बात का संकेत दे चुके थे।

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..कुछ तो गड़बड़ है

शिवपाल ने भी एक अनुशासित सिपाही की तरह पार्टी अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव के आदेश को माना। लेकिन दो दिन तक चली बातचीत में ऐसा क्या हुआ कि शिवपाल ने सरकार और प्रदेश अध्यक्ष पद से 15 सितंबर की देर रात इस्तीफा दे दिया। वो भी सीएम अखिलेश यादव और मुलायम सिंह यादव से बात करने के बाद। जैसा कि होना था। उनका इस्तीफा न तो सीएम ने मंजूर किया और न अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने।

कई सवाल अनसुलझे

हालांकि शिवपाल अभी भी कह रहे हैं कि नेताजी की कोई भी बात उनके लिए आदेश है लेकिन इसे राजनीतिक बयान ही माना जाना चाहिए। यदि मुलायम सिंह यादव की कोई भी बात उनके लिए आदेश है तो उन्होंने प्रदेश अध्यक्ष पद से त्यागपत्र क्यों दिया। हालांकि मुलायम और शिवपाल के बीच मुलाकातों का दौर अब भी जारी है।

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क्या बनेगी नई पार्टी?

क्या ये नाराज शिवपाल के नई पार्टी बनाने की सोच है ? उनके समर्थक तो ऐसा ही इशारा दे रहे हैं। समर्थकों का जमावड़ा उनके घर के बाहर है। समर्थक संघर्ष करने के नारे लगा रहे हैं। वहीं शिवपाल यादव मीडिया के सामने अपनी जुबान नहीं खोल रहे हैं। उन्हें लग रहा है कि कुछ गुंजाईश अभी भी बाकी है ।

शिवपाल को पत्नी-बेटे का साथ

कोई भी संघर्षशील व्यक्ति सिर तो झुका सकता है लेकिन घुटने नहीं टेक सकता। संभवत: घुटने टेकने की नौबत आने पर ही शिवपाल ने नाराज हो इस्तीफा दिया। इस कठिन दौर में उनका अपना परिवार उनके साथ खड़ा है। शिवपाल के साथ ही उनकी पत्नी और बेटे ने भी अपने अपने पदों से त्यागपत्र दे दिया है।

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तूफान के पहले की शांति तो नहीं?

समर्थक कार्यकर्ताओं की नारेबाजी के अलावा अभी सब कुछ शांत है। लेकिन ये बड़े तूफान की शांति की मानिंद दिख रही है। शिवपाल लगातार पार्टी में समर्थक नेताओं और कार्यकर्ताओं से बात कर रहे हैं। देश में सोशलिस्ट पार्टी बनने के बाद से ही इसमें लगातार बिखराव होता रहा है। सोशलिस्ट विरोधी कहते भी हैं कि' मेढ़क को कभी भी किसी तराजू के पलड़े पर नहीं रखा जा सकता, वो कूदकर बाहर आएगा ही।' खुद समाजवादी मुलायम सिंह यादव कई पार्टी बदल चुके हैं। सवाल ये कि क्या शिवपाल भी समाजवादी परंपरा को कायम रखेंगे?

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