आयोग की तैयारियों की खुली पोल, मतदाता सूची में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी उजागर

Update: 2017-12-02 07:58 GMT

राजकुमार उपाध्याय

लखनऊ : नगर निकाय चुनाव में इस बार मतदाता सूची से मतदाताओं के नाम कटने की खूब शिकायतें मिलीं। कहीं पूरे मोहल्ले का तो कहीं प्रत्याशी के परिवार का ही नाम मतदाता सूची से गायब मिला। इसे लेकर जगह-जगह हंगामा भी हुआ। सबसे ज्यादा शिकायत राजधानी से आई। ईवीएम मशीनों में सबसे ज्यादा खराबी भी यहीं हुई। राजधानी में हालत यह थी कि राजभवन कालोनी, गोमतीनगर, इंदिरानगर जैसे पाश इलाकों के मतदाताओं के भी सूची से गायब थे। मतदाता सूची में इतनी गड़बडिय़ों से इस बात की पुष्टि हुई है कि राज्य निर्वाचन आयोग भले ही बार-बार मतदाता सूची के पुनरीक्षण के दावे कर रहा हो मगर वास्तविकता में जिम्मेदारों ने इसे गंभीरता से नहीं लिया। मतदाता सूची में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी ने आयोग की तैयारियों की पोल खोलकर रख दी।

खास बात यह है कि मतदाता सूची से नाम कटने की शिकायत सिर्फ आम जनता की ही नहीं बल्कि वीआईपी वोटरों की भी रही। खुद केंद्रीय मंत्री कलराज मिश्रा तक का नाम सूची से गायब था। वह दिल्ली से मतदान करने राजधानी आए थे पर जब सूची में उनका नाम नहीं मिला तो उन्हें बिना वोट डाले ही वापस होना पड़ा। पुलिस महानिदेशक सुलखान सिंह, मंत्री रीता बहुगुणा जोशी, रामपुर के विधायक नसीर खां, गाजियाबाद से भाजपा विधायक डॉ.मंजू के पति डा देवेंद्र, पूर्व मंत्री पारसनाथ यादव का नाम भी वोटर लिस्ट में नहीं मिला। उन्नाव में वोट डालने पहुंचे बीजेपी सांसद साक्षी महाराज वोटर लिस्ट में नाम नहीं होने पर बिफर गए और उन्होंने इसे साजिश करार दिया।

वाराणसी के मेयर रामगोपाल मोहले की पत्नी पूजा मोहले का नाम भी मतदाता सूची में नहीं मिला। ऐसे में राज्य निर्वाचन आयोग पर सवाल उठना लाजिमी थी। आयोग के अध्यक्ष एसके अग्रवाल ने अपने बचाव में बीएलओ पर नाम नहीं दर्ज करने का ठीकरा फोड़ दिया। उन्हें सबसे ज्यादा शिकायत लखनऊ के जिला प्रशासन से रही। उन्होंने जिला प्रशासन को निकम्मा व नाकारा तक कह डाला। हैरानी की बात यह भी है कि मतदाता सूची से राजधानी का एक पूरी मोहल्ला ही गायब था। यह हालात कमोबेश सभी जिलों में रही। मैनपुरी के राधाकुंज मुहल्ले के कई परिवारों के नाम वोटर लिस्ट से गायब थे। स्थानीय निवासी गौरव दुबे मतदान करने पहुंचे तो परिवार का नाम ही सूची से गायब मिला। उन्हें बिना वोट डाले ही परिवार सहित बैरंग वापस लौटना पड़ा।

कई जगहों पर फर्जी वोटिंग की भी शिकायतें मिलीं। कई लोग जब वोट डालने बूथों पर पहुंचे तो उनका वोट पहले ही डाला जा चुका था। गाजियाबाद के पटेलनगर निवासी मंजू सेठ मुकुंदलाल स्कूल में अपना वोट डालने गईं तो उन्हें पता चला कि उनका वोट पहले ही डाला जा चुका है। इसी तरह एक महिला प्रकाशी से पर्ची लेकर आने को कहा गया, जब वह पर्ची लेकर वोट डालने पहुंची तो पता चला कि उनका भी वोट डाला जा चुका है।

एक ही मतदाता सूची बने

मतदाता सूची में गड़बडिय़ों के बाद लोकसभा, विधानसभा और निकाय चुनाव के लिए एक ही मतदाता सूची बनाने की मांग उठने लगी है। जानकारों का कहना है कि उत्तर प्रदेश नगर महापालिका अधिनियम के मुताबिक विधानसभा सूची के आधार पर वोटर लिस्ट बनाई जा सकती है। इससे गड़बड़ी की गुंजाइश कम होगी। राज्य निर्वाचन आयुक्त एसके अग्रवाल का कहना है कि यह तय करना विधायिका का काम है। वह नियमावली के मुताबिक चुनाव करा रहे हैं।

राजनीतिक दलों ने बनाया मुद्दा

मतदाता सूची में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी का मामला सियासी मुद्दा बनता जा रहा है। कांग्रेस, सपा और आप ने इस मामले की उच्चस्तरीय जांच की मांग की है। इस सिलसिले में सपा का प्रतिनिधिमंडल राज्य निर्वाचन आयुक्त से अपनी शिकायत दर्ज करा चुका है। आप ने भी आयोग से इस प्रकरण के जांच की मांग की है।

ऐसे होगी जांच

राजधानी में वोटर लिस्ट की जांच में देखा जाएगा कि सन 2012 की मतदाता सूची और मौजूदा सूची में कितना अंतर है। इस साल मई के बाद सूची से जो नाम हटाए गए हैं उनकी भी जांच होगी। जितने लोगों ने आपत्तियां दर्ज कराई थीं और आवेदन किया था, उनमें से कितने लोगों का नाम जोड़ा गया और काटा गया तो क्यों? इसकी विवेचना होगी। मूल पते पर रहने के बावजूद जिन लोगों का नाम सूची में नहीं है, उसकी भी जांच होगी।

यहां करें शिकायत

एसके अग्रवाल के मुताबिक उन्हें मतदाता सूची में गड़बडिय़ों की जांच के लिए लिखित में शिकायत नहीं मिली है। अब तक सिर्फ आप और सपा ने जांच के लिए पत्र दिया है। मतदाता सूची में अपने नाम कटने की शिकायत आयोग से कर सकते हैं। यह शिकायत ऑनलाइन या पत्र के जरिए भी की जा सकती है।

कैसे होता है पुनरीक्षण

मतदाता सूची के पुनरीक्षण के लिए पहले नगरीय निकायवार, वार्डवार, मतदान स्थल वार, बूथ लेबल आफिसर (बीएलओ), पर्यवेक्षक, सेक्टर आफिसर और सहायक निर्वाचक रजिस्ट्रीकरण अधिकारी की नियुक्ति होती है। उन्हें कार्य क्षेत्र आवंटित किया जाता है। बीलएओ घर-घर जाकर गणना, सर्वेक्षण कर रिपोर्ट तैयार करते हैं। जिनका नाम मतदाता सूची में नहीं है, उनका नाम मतदाता सूची में दर्ज करने के लिए फार्म भराया जाता है। नाम बढ़ाने के साथ ही डुप्लीकेट, मृतकों के नाम काटने या सूची में मौजूद अन्य खामियों को दुरुस्त किया जाता है। इस दौरान वोटर लिस्ट में नाम शामिल करने के लिए ऑनलाइन आवेदन का भी मौका दिया जाता है। इन आवेदन पत्रों की जांच होती है, इसे ऑनलाइन अपडेट किया जाता है। इस तरह प्रकाशित निर्वाचक नामावली के निरीक्षण और आपत्तियां दाखिल करने के लिए भी लोगों को समय दिया जाता है। आपत्तियों के निस्तारण के बाद पूरक सूची को मूल सूची में शामिल किया जाता है। फिर अंतिम रूप से तैयार मतदाता सूची का प्रकाशन होता है।

कौन है जिम्मेदार

मतदाता सूची को प्राथमिक तौर पर तैयार करने की जिम्मेदारी बीएलओ, पर्यवेक्षक, सेक्टर आफिसर और सहायक निर्वाचक रजिस्ट्रीकरण अधिकारी की होती है। राज्य निर्वाचन अधिकारी एसके अग्रवाल का कहना है कि मतदाता सूची में गड़बड़ी के लिए सिर्फ बीएलओ ही नहीं बल्कि संबंधित एसडीएम, एडीएम और डीएम भी जिम्मेदार हैं।

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