क्या तृणमूल जाधवपुर में रच पाएगी इतिहास?

तृणमूल ने इस सीट से 2014 में जीत दर्ज करने वाले हार्वर्ड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एवं नेता जी सुभाष चंद्र बोस के खानदान से ताल्लुक रखने वाले सुगत बोस की जगह मिमी को टिकट दिया है क्योंकि बोस को उनके विश्वविद्यालय ने इस बार चुनाव लड़ने की इजाजत नहीं दी।

Update: 2019-05-18 11:06 GMT

जाधवपुर (पश्चिम बंगाल): पश्चिम बंगाल की जाधवपुर संसदीय सीट का इतिहास रहा है कि इसने कभी किसी एक पार्टी के प्रत्याशी को लगातार तीन बार लोकसभा नहीं भेजा है, लेकिन इस प्रवृत्ति को बदलने के लिए तृणमूल कांग्रेस ने अभिनेत्री मिमी चक्रवर्ती पर दांव चला है जबकि उन्हें चुनौती देने के लिए माकपा ने एक वकील को उतारा है। वहीं भाजपा ने तृणमूल से भगवा दल में आए नेता को टिकट दिया है।

इस सीट पर 1984 में तृणमूल प्रमुख ममता बनर्जी ने युवा नेता के तौर पर माकपा के कद्दावर नेता और वकील सोमनाथ भारती को शिकस्त दी थी।

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बहरहाल, इस बार मिमी को माकपा के बिकास रंजन भट्टाचार्य से कड़ी चुनौती मिल रही है जो वकील हैं और कोलकाता के मेयर रह चुके हैं।

उधर, भाजपा ने अनुपम हाजरा को उतारा है। हाजरा इस लोकसभा में तृणमूल के सांसद थे। वह दल बदल कर भाजपा में शामिल हो गए।

तृणमूल ने इस सीट से 2014 में जीत दर्ज करने वाले हार्वर्ड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एवं नेता जी सुभाष चंद्र बोस के खानदान से ताल्लुक रखने वाले सुगत बोस की जगह मिमी को टिकट दिया है क्योंकि बोस को उनके विश्वविद्यालय ने इस बार चुनाव लड़ने की इजाजत नहीं दी।

युवा अभिनेत्री के रोडशो में खासी भीड़ उमड़ रही है। इससे उत्साहित तृणमूल नेतृत्व बड़े अंतर से जीत का दावा कर रहा है।

इस पर सीट पर 2009 से तृणमूल का कब्जा है।

इस सीट पर रविवार को लोकसभा चुनाव के सातवें और अंतिम चरण में मतदान होना है।

माकपा के उम्मीदवार भट्टाचार्य सारदा और नारद मामले में याचिकाकर्ताओं के प्रमुख वकील रहे हैं। इन दोनों मामलों में क्रमश: उच्चतम न्यायालय और कलकत्ता उच्च न्यायालय ने सीबीआई को जांच के आदेश दिए।

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भट्टाचार्य ने ‘पीटीआई भाषा’ से कहा, ‘‘वाम दलों ने अन्य पर बढ़त बना ली है क्योंकि कोई भी अन्य पार्टी लोगों को प्रभावित करने वाले बुनियादी मुद्दों की बात नहीं कर रही है।’’

वहीं, भाजपा के हाजरा ने कहा कि लोग जाते हैं कि लोकसभा चुनाव देश का प्रधानमंत्री चुनने के लिए हो रहा है। उनका कहना है कि तृणमूल अपने 20-30 सांसदों से ममता बनर्जी को प्रधानमंत्री नहीं बनवा सकती है और न ही चुनाव के बाद माकपा की कोई भूमिका रहने वाली है, क्योंकि उनका अस्तित्व खत्म हो जाएगा।

(भाषा)

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