वाराणसी: सिंह सिस्टर्स के नाम से मशहूर पांच बहनों पर पूरे बनारस को नाज है। इन बेटियों ने पूरी दुनिया में बनारस को एक अलग पहचान दी। बॉस्केटबाल जैसे हाईफाई गेम में उन बुलंदियों को छूआ, जिसकी चाहत बड़े-बड़े खिलाडिय़ों को होती है। यकीन करना मुश्किल होता है, एक ही परिवार की पांच बेटियां, एक ही खेल में शिखर तक पहुंचीं। मुश्किलों के बीच से कामयाबी का रास्ता कैसे निकाला जाता है, कोई इन बहनों से सीखे। वो भी उन हालात में जब माता-पिता के अलावा दूसरे लोगों ने उनके खेलने का विरोध किया था।
यूपी कॉलेज का कोर्ट बनी कर्मभूमि
ये बात नब्बे के दशक की है। बनारस के प्रसिद्ध यूपी कॉलेज में उन दिनों हॉकी का बोलबाला था। राहुल सिंह, विवेक सिंह और मोहम्मद शाहिद जैसे हॉकी खिलाडिय़ों के जुड़े होने से इस कॉलेज की बादशाहत पूरे उत्तर प्रदेश में थी। इसी बीच ‘साई’ ने यहां अपना हॉस्टल डाला तो हॉकी के अलावा दूसरे खेल भी शिखर छूने लगे। यूपी कॉलेज में हॉकी के बाद दूसरा सबसे लोकप्रिय खेल बना बास्केटबाल। सिंह सिस्टर्स में सबसे बड़ी दिव्या ने यहां पर प्रैक्टिस शुरू की, लेकिन उसके लिए ये सब इतना आसान नहीं था। माता पिता की डांट के अलावा पड़ोसियों ने ताने मारना शुरू कर दिये। हालांकि वक्त गुजरने के साथ, सब सामान्य हो गया। प्रियंका के बाद उनकी छोटी बहनों ने भी बास्केटबाल में हाथ आजमाना शुरू कर दिया।
कामयाबी के शिखर तक पहुंची प्रशांति
प्रशांति सिंह ने 2006 में ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न शहर में आयोजित राष्ट्रमंडल खेल, 2010 में चीन में आयोजित एशियाई खेल और 2014 में दक्षिण कोरिया के इंचियोन में आयोजित एशियन खेलों में हिस्सा लिया है। 25 साल के अपने करियर में उनकी बहुत सी उपलब्धियां रहीं हैं इस दौरान वो दुनिया की टॉप टीमों के साथ खेली हैं। आज भी वो रोजाना डेढ़ से दो घंटा प्रैक्टिस करती हैं। जबकि टूर्नामेंट के दौरान 6 घंटे से भी ज्यादा की प्रैक्टिस करती हैं। प्रशांति ने बताया, 12वीं में ही वो जूनियर नेशनल प्लेयर हो चुकी थी। 18 साल की उम्र में प्रशांति के स्पोर्ट्स और टेम्परामेंट को देखते हुए उसे दिल्ली एमटीएनएल में नौकरी मिल गई। प्रशांति ने कहा, हिम्मत और मेहनत कामयाबी का रास्ता होता है।
शॉर्ट स्कर्ट की वजह से लडक़े घूरा करते थे
हालांकि परंपराओं में जकड़े एक शहर में ये सब इतना आसान नहीं था। प्रशांति की दोस्त निशा कहती है कि कई बार कोर्ट पर प्रैक्टिस करते वक्त प्रशांति झेंप जाती थी। खेल के दौरान शॉर्ट स्कर्ट के कारण, लडक़े उसे घूरते थे। आते-जाते भद्दे-भद्दे कमेंटस करते थे, लेकिन प्रशांति ने इन बातों पर गौर नहीं किया। आज प्रशांति के अलावा उनकी बहन दिव्या सिंह, आकांक्षा सिंह और प्रतिमा सिंह बास्केटबॉल में भारतीय टीम का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं, जबकि इनकी सबसे बड़ी बहन प्रियंका सिंह यूपी की बास्केटबॉल टीम की सदस्य रह चुकी हैं और आज दूसरे नौजवान लडक़े लड़कियों के अलावा बच्चों को इस खेल की ट्रेनिंग देती हैं। इसके अलावा वो नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ स्पोर्ट्स में बास्केबॉल कोच हैं। प्रशांति सिंह के मुताबिक देश में स्पोर्टस कल्चर लाने के लिए इस क्षेत्र को कॉरपोरेट के साथ जोडऩा चाहिए। इसके लिए हमें पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप के तहत इन खेलों को बढ़ावा देना चाहिए। इससे इन खेलों में वो ही लोग आगे आयेंगे जिनको इस खेल में रुचि है। आज कबड्डी लीग की वजह से ये देसी खेल इतना मशहूर हो रहा है।
ईशांत शर्मा हैं परिवार के दामाद