हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद, जिनके खेल का हिटलर भी था मुरीद

Dhyan Chand Biography: मेजर ध्यानचंद का जन्म यूपी के इलाहबाद (प्रयागराज) में हुआ था। शारदा सिंह और समेश्वर सिंह के घर 29 अगस्त 1905 को इस महान खिलाड़ी का जन्म हुआ था। बचपन से इन्हे कुश्ती का शौक था, लेकिन अपने बड़े भाई को हॉकी खेलता देख इन्होने भी ठान लिया था कि एक दिन देश के लिए हॉकी में नाम रोशन करना है। फिर क्या था उस दिन के बाद इन्होने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।

Written By :  Suryakant Soni
Update:2022-08-25 19:35 IST

Dhyan Chand Biography

Dhyan Chand Biography: यह कहानी है हिंदुस्तान के एक ऐसे हुनरमंद की जिसने पूरी दुनिया में देश का नाम रोशन किया। आज हम आपको उस खिलाड़ी के बारे में बताएंगे जिसे लोग हॉकी के जादूगर के नाम से जानते हैं। उनके बारे में कहा जाता है कि वो अपने इशारों पर हॉकी को नाचते थे। इस महान खिलाड़ी का नाम तो शायद आप जानते ही होंगे। जी हां, हम बात कर रहे हैं मेजर ध्यानचंद की। हॉकी में भारत को उन्होंने ना जाने कितने मैच जिताए। उनके जन्मदिवस पर देशभर में 'राष्ट्रीय खेल दिवस' मनाया जाता है। मेजर ध्यानचंद जैसा हॉकी खिलाड़ी ना तो दुनिया में कभी हुआ हैं ना शायद ही कभी होगा। चलिए आज हम जानते हैं हॉकी के जादूगर कहे जाने वाले ध्यानचंद से जुड़े कुछ रोचक तथ्यों के बारे में जिनसे सिद्ध होता है कि क्यों उन्हें हॉकी का जादूगर कहा गया..

इलाहबाद में हुआ था मेजर ध्यानचंद का जन्म:

बता दें मेजर ध्यानचंद का जन्म यूपी के इलाहबाद (प्रयागराज) में हुआ था। शारदा सिंह और समेश्वर सिंह के घर 29 अगस्त 1905 को इस महान खिलाड़ी का जन्म हुआ था। बचपन से इन्हे कुश्ती का शौक था, लेकिन अपने बड़े भाई को हॉकी खेलता देख इन्होने भी ठान लिया था कि एक दिन देश के लिए हॉकी में नाम रोशन करना है। फिर क्या था उस दिन के बाद इन्होने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। ध्यानचंद ने अपनी पढ़ाई अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से पढ़ाई की। इसके बाद इन्होने स्नातक की उपाधि विक्टोरिया कॉलेज ग्वालियर से हासिल की।

हॉकी के कारण सेना में मिलती रही पदोन्नति:

हॉकी खेलने के साथ ध्यानचंद 1922 में भारतीय सेना में शामिल हो गए थे। हॉकी में शानदार खेल की वजह से इनको बार-बार पदोन्नति मिलती रही। पहली बार 1927 में इन्हे लांस नायक बनाया गया। उसके बाद 1932 में इनको नायक के रूप में पदोन्नति मिली। फिर इनका हॉकी में कारनामा बढ़ता गया और सेना में कद..नायक से सूबेदार, लेफ्टिनेंट और फिर मेजर बनाया गया। इन्होने 1949 में हॉकी को अलविदा कह दिया था।

ओलंपिक में दिलाई गोल्ड मेडल की हैट्रिक:

मेजर ध्यानचंद ने देश के लिए हॉकी में खूब बड़े-बड़े कारनामे किए। 1928 में हुए ओलंपिक में इन्होने अपने दम पर देश को हॉकी में पहली बार गोल्ड मेडल दिलाया। फाइनल में भारत का मुकाबला होलेंड से हुआ था, जिसमें ध्यानचंद ने 2 गोल करते हुए स्वर्ण पदक पर कब्जा जमाया। लेकिन असली खेल तो इनका दुनिया ने अगले ओलंपिक में देखा। 1932 में हुए लॉस एंजिल्स ओलंपिक खेलों में भारत ने फिर से गोल्ड मेडल जीता। फाइनल में अमेरिका को भारत ने 24-1 अंतर से हराकर पूरी दुनिया में अपने देश का डंका बजाया। इसके बाद 1936 बर्लिन ओलंपिक में ध्यानचंद की मदद से भारत ने लगातार तीसरा गोल्ड मेडल जीता।

जर्मनी के तानाशाह हिटलर भी थे इनके खेल के मुरीद:

मेजर ध्यानचंद ने पूरी दुनिया में अपनी एक अलग पहचान बनाई। इस हॉकी के जादूगर के प्रशंसक दुनियाभर में देखने को मिले। जर्मनी के तानाशाह हिटलर भी मेजर ध्यानचंद के खेल से बहुत प्रभावित हुए थे और ध्यानचंद को जर्मनी की नागरिकता ग्रहण करने का प्रस्ताव दिया, लेकिन मेजर ध्यानचंद ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया और भारत देश के लिए खेलने का निर्णय लिया।

हॉकी स्टीक में चुंबक होने का शक:

मेजर ध्यानचंद इतनी कमाल की हॉकी खेलते थे कि कई लोगों को लगता था कि कहीं उनकी हॉकी में चुंबक तो नहीं है। एक बार हॉलेंड के खिलाफ एक मैच के दौरान मेजर ध्यानचंद की हॉकी स्टीक को बाकायदा तोड़कर देखा गया कि कहीं उसमें चुंबक तो नहीं है। लेकिन फिर कुछ नहीं मिलता तो वो लोग हैरान हो जाते थे। तब से इनको हॉकी का जादूगर कहा जाने लगा।

एक हजार से ज्यादा गोल दागे:

देश को लगातार हॉकी में बड़े-बड़े टूर्नामेंट जिताने वाले मेजर ध्यानचंद ने अपने करियर में करीब 1000 से ज्यादा गोल दागे। हॉकी की गेंद इनकी स्टिक के ऐसे चिपक जाती थी मानों ये कोई जादू कर रहे हो। ओलंपिक में भारत को लगातार तीन बार गोल्ड मेडल दिलाए। इन्होंने पहला मैच 13 मई 1926 को न्यूजीलैंड के खिलाफ खेला था।

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