Aman Sehrawat: 10 साल की उम्र में ही उठ गया था माता-पिता का साया, ऐसी रही है अमन सहरावत की दास्तां

Aman Sehrawat: हरियाणा के झज्जर के रहने वाले कुश्ती स्टार अमन सेहरावत ने अपनी 10 साल की उम्र में ही माता-पिता को खो दिया था। इसके बाद दादा ने संभाला जिम्मा

Report :  Kalpesh Kalal
Update: 2024-08-10 05:03 GMT

Aman Sehrawat (Source_Social Media)

Aman Sehrawat: पेरिस ओलंपिक से देश के लिए एक और खुशखबरी मिली है। जहां इस ओलंपिक के खत्म होने से ठीक 2 दिन पहले देश की झोली में एक और मेडल आया है। जहां भारत के कुश्ती खिलाड़ी अमन सेहरावत ने देशवासियों को सीना फुलाने का मौका दिया है। 21 साल के भारत के पुरुष कुश्ती खिलाड़ी अमन सेहरावत ने 57 किलोग्राम फ्रीस्टाइल स्पर्धा में अपने विरोधी खिलाड़ी प्यूर्टो रिको के पहलवान को मात देकर कांस्य पदक पर कब्जा करने के साथ ही इस ओलंपिक में देश को छठा पदक दिलाया।

अमन सेहरावत की दर्दभरी दास्तां

अमन सेहरावत भारत के लिए ओलंपिक इतिहास में सबसे कम उम्र में मेडल जीतने वाले खिलाड़ी भी बन गए हैं। अमन ने इतिहास रच दिया और पूरे देश को जश्न का मौका दिया। कुश्ती में कांस्य पदक जीतने वाले अमन की कहानी बहुत ही दर्दभरी है, जिन्होंने अपनी 10 साल की उम्र में ही माता-पिता को खो दिया था और ऐसी स्थिति में उनके दादा ने अपने पोते को अखाड़े तक पहुंचाया और आज पोते ने पूरे देश में अपने दादा और परिवार का नाम रोशन किया।चलिए जानते हैं कैसी है अमन सेहरावत की दर्दभरी दास्तां

अमन की 10 साल की उम्र में ही माता-पिता चल बसे

भारत के उत्तर में स्थित हरियाणा के छोटे से जिले झज्जर के छोटे से गांव बिहोरड़ में 16 जुलाई 2003 को अमन सेहरावत का जन्म हुआ। अमन की जब खेलने-कूदने की उम्र थी, तभी साल 2013 में उनके माता-पिता दुनिया छोड़ चल बसे। अमन के सिर से सिर्फ 10 साल की उम्र में ही माता-पिता का साया उठ गया। इतनी छोटी सी उम्र में एक साथ माता और पिता चल बसने के बाद समझा जा सकता है कि किसी बच्चे पर क्या बितती है। लेकिन अमन के माता-पिता के गुजरने के बाद दादा और दादी ने पोते का ख्याल रखा। दादा जब अपने पोते को कंधे पर उठाकर उनके साथ मस्ती भरे पल बिताएं ऐसे समय में दादा पर पोते की परवरिश की जिम्मेदारी आ गई।

दादा और दादी ने पोते अमन की परवरिश कर बढ़ाया आगे

अमन के दादा मांगेराम सेहरावत ने पोते को आगे बढ़ाने की ठान ली और उन्हें अखाड़े तक लेकर गए। अमन के दादा की आर्थिक हालात इतने अच्छे नहीं थे, लेकिन मांगेराम सेहरावत ने मेहनत करके पोते को पढ़ाया और कुश्ती में भी उन्हें कोचिंग दिलायी। अमन को कोचिंग के लिए दिल्ली पहुंचाया, जहां छत्रसाल स्टेडियम में एक कोच प्रवीण दहिया के मार्गदर्शन में पोते को रख दिया और यहीं से अमन का आगे का सफर शुरू हुआ। इसके बाद तो अमन ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और देश और परिवार और अपने दादा-दादी का नाम रोशन करके ही दम लिया।

मेडल जीतने पर अमन के दादा-दादी का नहीं है खुशी का ठिकाना

अमन की इस कामयाबी पर दादा मांगेराम सेहरावत बहुत ही खुश हैं और उन्होंने एक इंटरव्यू में अपनी इस खुशी को जाहिर किया। मांगेराम सेहरावत ने कहा कि, बचपन में यही सोचकर अमन की परवरिश की कि एक दिन मेरा पोता मेरा नाम दुनिया में रोशन करेगा और उसने कर दिखाया। अमन की दादी भी बहुत ही खुश है और उन्होंने पोते के मेडल जीतने के बाद कहा कि, “बहुत अच्छा बेटा है मेरा अमन, आएगा तो उसे वही चूरमा खिलाऊंगी, दूध पिलाऊंगी जो उसे बचपन में कुश्ती से पहले दिया करती थी।“

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