सुप्रीम कोर्ट ने दिया एमएस धोनी को बड़ा झटका, आईपीएल सट्टा मामले ने लिया नया मौड़!
IPL Betting Scam Supreme Court MS Dhoni: आईपीएल सट्टेबाजी घोटाले में लोकप्रिय क्रिकेटर का नाम लेने के लिए एमएस धोनी ने 2014 में पूर्व पुलिसकर्मी के खिलाफ अदालत का रुख किया था
IPL Betting Scam MS Dhoni: इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) सट्टेबाजी घोटाले में लोकप्रिय क्रिकेटर का नाम लेने के लिए एमएस धोनी (MS Dhoni) ने 2014 में पूर्व पुलिसकर्मी के खिलाफ अदालत का रुख किया था। सुप्रीम कोर्ट ने टीम इंडिया के पूर्व क्रिकेट कप्तान महेंद्र सिंह धोनी द्वारा दायर अदालत की अवमानना के मामले में सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी जी संपत कुमार (G Sampath Kumar) को मद्रास उच्च न्यायालय द्वारा दी गई 15 दिन की साधारण कारावास की सजा पर सोमवार को अंतरिम रोक लगा दी।
सट्टेबाजी घोटाले के केस में नया मौड़!
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार इस केस सुनवाई के दौरान जज ए एस ओका और जज उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ संपत कुमार की याचिका पर नोटिस जारी किया। मामले की अगली सुनवाई 8 मार्च 2024 को तय की गई है। आपको बताते चलें कि उच्च न्यायालय ने पिछले साल 15 दिसंबर को संपत कुमार को आपराधिक अवमानना का दोषी पाया था और उन्हें 15 दिन के साधारण कारावास की सजा सुनाई थी।
बताया जा रहा है कि अपनी अवमानना याचिका में एमएस धोनी (MS Dhoni) ने 100 करोड़ रुपये के मानहानि मुकदमे के जवाब में दायर अपने लिखित बयान में न्यायपालिका के खिलाफ की गई संपत कुमार की टिप्पणियों के लिए उन्हें दंडित करने की मांग की थी। उच्च न्यायालय ने भी अपने आदेश में कहा था कि संपत कुमार ने जानबूझकर इस अदालत और उच्चतम न्यायालय को बदनाम करने और उनके अधिकार को कम करने का प्रयास किया।
उस वक्त यह भी स्थापित किया गया था कि एक हलफनामा या कोई दलील जो किसी पक्ष द्वारा अदालत के समक्ष प्रस्तुत की गई थी, वह प्रकाशन का एक कार्य था। उच्च न्यायालय ने कहा था कि कुमार ने अपने विशिष्ट शब्दों से इस अदालत के साथ-साथ शीर्ष न्यायालय की गरिमा और महिमा को बदनाम करने और कमजोर करने के इरादे से न्यायपालिका पर अभद्र हमला किया है।
तब इस केस में उच्च न्यायालय ने यह भी कहा था कि जब आदेश को कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग बताते हुए अंतरिम आदेश देने के खिलाफ एक सामान्य बयान दिया गया था, तो यह उचित टिप्पणी नहीं थी। पीठ ने कहा कि इसी तरह सुप्रीम कोर्ट पर यह आरोप लगाना कि वह कानून के शासन पर ध्यान केंद्रित करने में विफल रहा, उसको विवाद के एक पक्ष की शिकायत की निष्पक्ष अभिव्यक्ति के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता है।