Milkha Singh Death: मिल्खा को जिंदगी भर रहा इस बात का मलाल, काश रोम ओलंपिक में पीछे मुड़कर न देखा होता

Milkha Singh Death: मिल्खा सिंह की रफ्तार को देखकर 1960 के रोम ओलंपिक से पहले यह तय माना जा रहा था कि वे कोई न कोई पदक जीतने में जरूर कामयाब रहेंगे।

Written By :  Anshuman Tiwari
Published By :  Dharmendra Singh
Update:2021-06-19 11:40 IST

मिल्खा सिंह (फाइल फोटो: सोशल मीडिया)

Milkha Singh Death: पूरी दुनिया में फ्लाइंग सिख के नाम से मशहूर महान धावक मिल्खा सिंह आखिरकार कोरोना से जंग हार गए। 91 वर्षीय मिल्खा सिंह ने चंडीगढ़ पीजीआई में शुक्रवार को अंतिम सांस ली। 20 मई को कोरोना से संक्रमित होने के बाद मिल्खा सिंह ने करीब एक महीने तक कोरोना से लगातार जंग लड़ी। जिंदगी में बड़ी-बड़ी जंग जीतने वाले मिल्खा सिंह ने शुक्रवार देर रात दुनिया को अलविदा कह दिया। 

मिल्खा सिंह ने अपने खेल जीवन में कई बड़ी उपलब्धियां हासिल कीं। उन्होंने एशियाई खेलों में चार स्वर्ण पदक जीते थे जबकि कामनवेल्थ गेम्स में भी उन्होंने एक गोल्ड मेडल जीता था। मिल्खा सिंह को जिंदगी भर सिर्फ एक बात का मलाल रहा कि काश उन्होंने 1960 के रोम ओलंपिक में पीछे मुड़कर अन्य धावकों को न देखा होता। अपनी इस गलती के कारण मिल्खा सिंह रोम ओलंपिक में कांस्य पदक से चूक गए थे।

चूक के कारण नहीं मिल सका ओलंपिक पदक

मिल्खा सिंह की रफ्तार को देखकर 1960 के रोम ओलंपिक से पहले यह तय माना जा रहा था कि वे कोई न कोई पदक जीतने में जरूर कामयाब रहेंगे। उम्मीद के मुताबिक मिल्खा सिंह ने रोम ओलंपिक में गजब की दौड़ लगाई थी मगर उन्हें चौथे स्थान से ही संतोष करना पड़ा।
ओलंपिक खेलों में पदक जीतना मिल्खा सिंह का सपना था मगर वे अपने इस सपने को पूरा नहीं कर सके। 400 मीटर की दौड़ में मिल्खा सिंह करीब 250 मीटर तक अन्य धावकों से आगे चल रहे थे मगर बाद में उन्होंने एक बड़ी भूल कर दी और इसका उन्हें खामियाजा भुगतना पड़ा। ओलंपिक में पदक से चूकने के कारण का उन्होंने बाद में खुलासा भी किया था।


मिल्खा की यह भूल पड़ी महंगी
उनका कहना था कि दौड़ के दौरान हमेशा एक बार पीछे मुड़कर देखने की मेरी आदत ने मुझे रोम ओलंपिक में कांस्य पदक से वंचित कर दिया। ओलंपिक की दौड़ में काफी नजदीकी मुकाबला होता है और ऐसे में यह भूल महंगी पड़ी।
मिल्खा के मुताबिक उन्होंने रोम ओलंपिक में बहुत शानदार शुरुआत की थी। शुरुआत के बाद उन्होंने पीछे मुड़कर एक बार अन्य धावकों को देखा और शायद इसी कारण वे पदक से चूक गए। रोम ओलंपिक में कांस्य पदक जीतने वाले धावक ने 45.5 सेकंड का समय लिया था जबकि मिल्खा सिंह ने 45.6 सेकंड में दौड़ पूरी की थी।
जानकारों का कहना है कि मिल्खा सिंह की बातों में है काफी दम है क्योंकि यह सच्चाई है कि अगर उन्होंने पीछे मुड़कर न देखा होता तो वे निश्चित रूप से इस दौड़ में कांस्य पदक जीतने में कामयाब होते।

शुभचिंतकों के कहने पर बदला फैसला

रोम ओलंपिक में अपनी इस भूल से मिल्खा सिंह इतने निराश हो गए थे कि उन्होंने दौड़ से संन्यास लेने का फैसला कर लिया था मगर बाद में परिचितों और शुभचिंतकों के काफी समझाने के बाद उन्होंने एक बार फिर मैदान में वापसी की। 1962 में जकार्ता में हुए एशियाई खेलों में मिल्खा ने 400 मीटर और 4 गुणा 400 मीटर रिले दौड़ में स्वर्ण पदक जीता था।।
मिल्खा सिंह ने 1958 के राष्ट्रमंडल खेल में स्वर्ण पदक जीतने में कामयाबी हासिल की थी और वे लगभग 50 साल तक राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक जीतने वाले इकलौते भारतीय रहे। उन्होंने 1956 और 1962 के एशियाई खेलों में चार स्वर्ण पदक जीते थे। उन दिनों में पूरी दुनिया उनकी रफ्तार की दीवानी थी और अपनी इन्हीं उपलब्धियों के कारण वे पूरी दुनिया का प्यार पाने में कामयाब रहे।


 खुद पर बनी फिल्म से संतुष्ट नहीं थे मिल्खा

मिल्खा सिंह के प्रति देश के लोगों के मन में है खास जगह थी और इसी कारण मिल्खा सिंह पर एक फिल्म भी बनाई गई। इस दिग्गज धावक के जीवन पर बनी फिल्म का नाम है भाग मिल्खा भाग। इस फिल्म में मिल्खा सिंह के जीवन से जुड़े विभिन्न प्रसंगों को उजागर किया गया है।
हालांकि फिल्म के रिलीज होने के बाद मिल्खा सिंह इस फिल्म से संतुष्ट नहीं दिखे। उनका कहना था कि इस फिल्म में उनके संघर्ष की कहानी को उतना गहराई से नहीं दिखाया गया। उनका कहना था कि उन्होंने देश के विभाजन के समय काफी दिक्कतें झेली थीं और उन्हें काफी दिन दिल्ली के शरणार्थी शिविर में गुजारने पड़े थे। जीवन में तमाम मुसीबतें झेलने के बाद उन्होंने खेल की दुनिया में नाम कमाया मगर उनके जीवन की तकलीफों को फिल्म में सही तरीके से नहीं दिखाया गया।

बंटवारे के समय सहा था बड़ा दर्द

दरअसल मिल्खा सिंह का जन्म पाकिस्तान के गोविंदपुरा में हुआ था। देश के विभाजन के समय भड़के दंगों के दौरान उन्होंने अपने माता-पिता, एक भाई और दो बहनों को अपने सामने जलते हुए देखा था। वह महिला बोगी में सीट के नीचे छिपकर किसी तरह पाकिस्तान से दिल्ली पहुंचे थे और उन्होंने दिल्ली में शरणार्थियों के लिए बनाए गए शिविर में भी समय बिताया था।
संघर्ष के इन दिनों में मिल्खा सिंह को काफी तकलीफ उठानी पड़ी और यहां तक कि उन्हें फुटपाथ पर बने ढाबों में बर्तन भी साफ करना पड़ा। अपने भाई के कहने पर वह सेना की भर्ती में शामिल हुए थे और चौथे प्रयास में उन्हें सेना में भर्ती होने में कामयाबी मिली।

पिता-पुत्र की अनोखी उपलब्धि

मिल्खा सिंह के बेटे जीव मिल्खा सिंह ने गोल्फ के क्षेत्र में काफी नाम कमाया है और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी कई उपलब्धियां हासिल की हैं। जीव मिल्खा सिंह की इन्हीं उपलब्धियों को देखते हुए भारत सरकार की ओर से उन्हें पद्मश्री का सम्मान भी दिया जा चुका है।
मिल्खा सिंह यह सम्मान काफी पहले ही हासिल कर चुके हैं। मिल्खा सिंह और जीव मिल्खा सिंह अकेले ऐसे पिता पुत्र हैं जिन्होंने खेल के क्षेत्र में बड़ी उपलब्धियों के कारण पद्मश्री सम्मान हासिल किया है।

इस तरह परवान चढ़ा था मिल्खा का प्यार

1960 में हुए रोम ओलंपिक के बाद मिल्खा सिंह ने भारतीय वॉलीबॉल टीम की कप्तान निर्मल से शादी की थी। इंडो-सिलोन खेलों में हिस्सा लेने के दौरान दोनों का प्यार परवान चढ़ा था और बाद में दोनों ने शादी के बंधन में बंध जाने का फैसला किया।
निर्मल भी मिल्खा सिंह की बहुत बड़ी फैन थीं। इसी हफ्ते मिल्खा सिंह की पत्नी निर्मल का भी कोरोना की वजह से निधन हुआ था। कोरोना से संक्रमित होने के कारण मिल्खा सिंह अपनी पत्नी के अंतिम संस्कार में भी हिस्सा नहीं ले पाए थे।


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