Uttar Pradesh Famous Temple: इटावा के इस काली मंदिर में अश्वत्थामा करते हैं पूजन, रहस्य जान हो जाएंगे हैरान
Uttar Pradesh Famous Temple : भारत में ऐसे कई धार्मिक स्थल मौजूद हैं, जो अपने चमत्कारों के लिए पहचाने जाते हैं। चलिए आज हम आपको इटावा के एक मंदिर के बारे में बताते हैं।
Uttar Pradesh Famous Temple : उत्तर प्रदेश के इटावा में कई सारे स्थान है जो काफी प्रसिद्ध है। आज हम आपके यहां के एक ऐसे काली मंदिर के बारे में बताते हैं इसके बारे में कहा जाता है कि महाभारत काल के अमर पात्र अश्वत्थामा सबसे पहले यहां पर पूजा करते हैं। इटावा मुख्यालय से 5 किलोमीटर की दूरी पर यमुना नदी के किनारे काली माता का यह मंदिर मौजूद है। नवरात्रि के मौके पर यहां भक्तों की भारी भीड़ देखने को मिलती है। इस मंदिर के रहस्य हमेशा से ही लोगों को हैरान करते आए हैं। आपको बता दें कि रोज रात को इस मंदिर की सफाई करने के बाद पद बंद कर दिए जाते हैं और जब तड़के गेट खोले जाते हैं तो अंदर ताजे फूल दिखाई देते हैं। यह इस बात का संकेत है कि कोई अदृश्य रूप में आकर यहां पर पूजन करता है। ऐसा कहा जाता है कि महाभारत के अमर पत्र अश्वत्थामा यहां पूजा करने के लिए आते हैं।
ऐसा है इतिहास
इस मंदिर के बारे में कहानी कहानी प्रचलित है और इतिहासकारों का बोलना है कि इतिहास में कोई भी घटना तब तक प्रामाणिक नहीं मानी जा सकती। जब तक साहित्यिक, ऐतिहासिक और पुरातात्विक साक्ष्य ना मिल जाए। कभी यह मंदिर चंबल के खूंखार डाकू की आस्था का केंद्र रहा है। इस मंदिर से डाकुओं को इतना ज्यादा लगाव था कि वह पुलिस चौकसी के बावजूद भी यहां पर भोजन अर्चन करके चले जाया करते थे। इस बारे में पूछता तब हुई जब यहां पर कहीं डाकुओं के नाम के घंटे और झंडे चढ़े हुए दिखाई दिए।
यमुना किनारे है मंदिर
इटावा के गजेटियर में मौजूद यह मंदिर काली भवन के नाम से प्रसिद्ध है। यह यमुना नदी के पास है और बड़ी संख्या में भक्त यहां पर पहुंचते हैं। इस मंदिर में स्थित मूर्ति दसवीं से 12वीं शताब्दी के मध्य की है। वहीं वर्तमान में जो मंदिर है उसे 20वीं शताब्दी में बनाया गया है। यहां पर महाकाली, महालक्ष्मी और महा सरस्वती तीनों की मूर्तियां है।
ऐसी है पौराणिक कथा
मार्कण्डेय पुराण और अन्य पौराणिक कथानकों के अनुसार दुर्गा जी प्रारम्भ में काली थी। एक बार वे भगवान शिव के साथ आलिगंनबद्ध थीं, तो शिवजी ने परिहास करते हुए कहा कि ऐसा लगता है जैसे श्वेत चंदन वृक्ष में काली नागिन लिपटी हुई हो। पार्वती जी को क्रोध आ गया और उन्होंने तपस्या के द्वारा गौर वर्ण प्राप्त किया। मंदिर परिसर में एक मठिया में शिव दुर्गा एवं उनके परिवार की भी प्रतिष्ठा है। महाभारत में उल्लेख है कि दुर्गाजी ने जब महिषासुर तथा शुम्भ-निशुम्भ का वध कर दिया, तो उन्हें काली, कराली, काल्यानी आदि नामों से भी पुकारा जाने लगा।