जयपुर: भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की चतुर्दशी को अनंत चतुर्दशी कहा जाता है। इसी चतुर्दशी के दिन भगवान गणेश की विदाई की जाती है। साथ ही इसी दिन अनंत चतुर्दशी का व्रत भी रखा जाता है और इस दिन अनंत भगवान की पूजा की जाती है।
मान्यता है कि अनंत भगवान की पूजा करने और व्रत रखने से हमारे सभी कष्ट दूर होते हैं। इस दिन संकटों से सबकी रक्षा करने वाला अनंतसूत्र बांधा जाता है, इससे सभी कष्टों का निवारण होता है। ये 12घंटे, 24 घंटे और एक साल के लिए होता है।
कहा जाता है कि जब पाण्डव जुएं में अपना सारा राज-पाट हारकर वन में कष्ट भोग रहे थे, तब भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें अनंत चतुर्दशी का व्रत करने की सलाह दी थी। धर्मराज युधिष्ठिर ने अपने भाइयों तथा द्रौपदी के साथ पूरे विधि-विधान से यह व्रत किया और अनन्त सूत्र धारण किया। इस व्रत का इतना प्रभाव था कि पाण्डव सभी संकटों से मुक्त हो गए।
अनंत चतुर्दशी व्रत का पालन, ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करें
कलश की स्थापना कि जाती है जिसमे कमल का फूल रखते हैं और कुषा का सूत्र अर्पित किया जाता है।
भगवान् एवं कलश को कुमकुम, हल्दी का तिलक लगाया जाता है। कुषा सूत्र को हल्दी से रंगा जाता है
अनंत देव का आवाहन कर दूप दीप एवं नैवेद्य का भोग लगाया जाता है।
इस तिथि को खीर पूरी का भोग लगाने कि परम्परा है।
उसके पश्चात् सभी के हाथों में रक्षा सूत्र को बांधा जाता है।