क्या है अनंत चतुर्दशी, जानिए क्यों और कैसे, किस भगवान की जाती है पूजा?

Update:2016-09-14 12:21 IST

लखनऊ: 15 सितंबर गुरुवार को अनंत भगवान की पूजा का दिन है। जो संकटों से रक्षा करने वाले है। कहा जाता है कि जब पांडव जुए में अपना सबकुछ हारकर वन में कष्ट भोग रहे थे, तब भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें अनंत चतुर्दशी का व्रत करने की सलाह दी थी। धर्मराज युधिष्ठिर ने अपने भाइयों और द्रौपदी के साथ पूरे विधि-विधान से ये व्रत किया और अनंत सूत्र बांधा था। अनंत चतुर्दशी व्रत के प्रभाव से पांडव सब संकटों से मुक्त हो गए। इस दिन गणेश विसर्जन भी होता हैं, यह अनंत चतुर्दशी महाराष्ट्र में हर्षोल्लास से मनाई जाती हैं।

व्रत-विधान-व्रतकर्ता प्रात:स्नान करके व्रत का संकल्प करें। शास्त्रों में यद्यपि व्रत का संकल्प एवं पूजन किसी पवित्र नदी या सरोवर के तट पर करने का विधान है, ऐसा संभव न हो सकने की स्थिति में घर में पूजागृह की स्वच्छ भूमि पर कलश स्थापित करें। कलश पर शेषनाग की शैय्यापर लेटे भगवान विष्णु की मूíत और चित्र को रखें। उनके समक्ष चौदह ग्रंथियों (गांठों) से युक्त अनंत सूत्र (डोरा) रखें। इसके बाद ॐ अनन्ताय नम: मंत्र से भगवान विष्णु और अनंत सूत्रकी षोडशोपचार-विधि से पूजा करें। पूजनोपरांत अनंत सूत्र को मंत्र पढ़ कर पुरुष अपने दाहिने हाथ और स्त्री बाएं हाथ में बांध लें।

कथा

एक दिन कौण्डिन्य मुनि की दृष्टि अपनी पत्नी के बाएं हाथ में बंधे अनंत सूत्र पर पड़ी, जिसे देखकर वह भ्रमित हो गए और उन्होंने पूछा-क्या तुमने मुझे वश में करने के लिए यह सूत्र बांधा है? शीला ने विनम्रता पूर्वक उत्तर दिया। जी नहीं, यह अनंत भगवान का पवित्र सूत्र है। परंतु ऐश्वर्य के मद में अंधे हो चुके कौण्डिन्य ने अपनी पत्नी की सही बात को भी गलत समझा और अनन्त सूत्र को जादू-मंतर वाला वशीकरण करने का डोरा समझकर तोड़ दिया और उसे आग में डालकर जला दिया।

इस जघन्य कर्म का परिणाम भी शीघ्र ही सामने आ गया। उनकी सारी संपत्ति नष्ट हो गई। दीन-हीन स्थिति में जीवन-यापन करने में विवश हो जाने पर कौण्डिन्य ऋषि ने अपने अपराध का प्रायश्चित करने का निर्णय लिया। वे अनंत भगवान से क्षमा मांगने हेतु वन में चले गए। उन्हें रास्ते में जो मिलता वे उससे अनंत देव का पता पूछते जाते थे। बहुत खोजने पर भी कौण्डिन्य मुनि को जब अनंत भगवान का साक्षात्कार नहीं हुआ, तब वे निराश होकर प्राण त्यागने को उद्यत हुए। तभी एक वृद्ध ब्राह्मण ने आकर उन्हें आत्महत्या करने से रोक दिया और एक गुफामें ले जाकर चतुर्भुज अनन्त देव का दर्शन कराया।

भगवान ने मुनि से कहा-तुमने जो अनन्त सूत्र का तिरस्कार किया है, यह सब उसी का फल है। इसके प्रायश्चित हेतु तुम चौदह वर्ष तक निरंतर अनन्त-व्रत का पालन करो। इस व्रत का अनुष्ठान पूरा हो जाने पर तुम्हारी नष्ट हुई सम्पत्ति तुम्हें पुन:प्राप्त हो जाएगी और तुम पूर्ववत् सुखी-समृद्ध हो जाओगे। कौण्डिन्य मुनि ने इस आज्ञा को सहर्ष स्वीकार कर लिया। भगवान ने आगे कहा-जीव अपने पूर्ववत् दुष्कर्मो का फल ही दुर्गति के रूप में भोगता है। मनुष्य जन्म-जन्मांतर के पातकों के कारण अनेक कष्ट पाता है। अनन्त-व्रत के सविधि पालन से पाप नष्ट होते हैं तथा सुख-शांति प्राप्त होती है। कौण्डिन्यमुनि ने चौदह वर्ष तक अनन्त-व्रत का नियमपूर्वक पालन करके खोई हुई समृद्धि को पुन:प्राप्त कर लिया।

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कलश की स्थापना कि जाती है जिसमे कमल का फूल रखते हैं और कुषा का सूत्र अर्पित किया जाता है।

भगवान् एवं कलश को कुमकुम, हल्दी का तिलक लगाया जाता है। कुषा सूत्र को हल्दी से रंगा जाता है

अनंत देव का आवाहन कर दूप दीप एवं नैवेद्य का भोग लगाया जाता है।

इस तिथि को खीर पूरी का भोग लगाने कि परम्परा है।

उसके पश्चात् सभी के हाथों में रक्षा सूत्र को बांधा जाता है।

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