अगर इस मुहूर्त में करते हैं होलिका दहन, तो आएगी संपन्नता, मिटेंगे गृह कलेश और वहम

Update: 2017-03-11 07:28 GMT

लखनऊ: होली का त्योहार आ चुका है। सत्ता भी आ चुकी है। अब समय है मन की बुराइयों और द्वेषों को जलाने का। हिंदू पंचांग के अनुसार इस साल होलिका दहन 12 मार्च को शाम 6:30 बजे से 8:35 तक किया जा सकता है। हिंदू धर्म ग्रंथ के अनुसार, होलिका दहन सूर्यास्त के बाद जब पूर्णिमा तिथि हो तभी करना चाहिए। भद्रा, जो पूर्णिमा के पहले व्याप्त होती है, उस समय होलिका पूजन नहीं करना चाहिए। सभी शुभ काम इस समय वर्जित रहते हैं।

इसी दिन भद्रा का मुख शाम 5:35 मिनट से 7:33 मिनट तक है। हिन्दू धर्मग्रंथों और भारतीय वैदिक ज्योतिषशास्त्र के अनुसार होलिका दहन या पूजन भद्रा के मुख को त्याग करके करना शुभ फलदायक होता है। सभी जानते हैं कि फाल्गुन महीने की पूर्णिमा से पहले प्रदोष काल में होलिका दहन करने का रिवाज है। 12 मार्च को पूर्णिमा उदय व्यापिनी है। इसके अगले दिन यानी 13 मार्च (सोमवार) को होली मनाई जाएगी।

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हमारे देश में होली को जलाने से पहले उसकी विधिवत रिवाजों से पूजा-अर्चना की जाती है। माना जाता है कि होलिका की सच्चे मन से पूजा-अर्चना करने पर मन के द्वेष मिट जाते हैं। होली की पूजा करते टाइम पूजा करने वाले को पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके बैठना चाहिए। होलिका अग्नि में गोबर से बनी होलिका और प्रहलाद की प्रतीकात्मक प्रतिमाएं रोली, फूल, मालाएं, साबुत हल्दी, गुलाल, कच्चा सूत, नारियल, गुड़, मूंग, बताशे नई गेहूं की बालियां सहित 5 या 7 प्रकार के अनाज डाले जाते हैं। बता दें कि यह सब अग्नि को समर्पित करते टाइम एक लोटा जल रखना भी अनिवार्य होता है। इसके साथ ही होलिका में मीठे पकवान, मिठाइयां और फल भी अर्पित किए जाते हैं।

होलिका में ये सभी चीजें समर्पित करने के साथ ही होलिका के चारों ओर सात बार परिक्रमा भी की जाती है। होलिका को जल का अर्घ्य भी दिया जाता है। होलिका दहन के टाइम वहां मौजूद सभी लोगों को गुलाल का तिलक लगाया जाता है। होलिका दहन की राख को घर लाना काफी शुभ माना जाता है। इससे न केवल घर के द्वेष-विकार मिटते हैं, बल्कि सकारात्मक ऊर्जा भी आती है। शरीर पर इस राख का लेप करने से रोगों से मुक्ति मिलती है।

 

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