जयपुर: आज के समाज में पति-पत्नी दोनों पढ़े लिखे होते हैं। दोनों अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति सजग होते हैं, लेकिन थोड़ी सी अहम और समझ की कमी दोनों के रिश्तों में वैचारिक मतभेद पैदा कर देती है। दोनों परिवार में अपनी बात रखने की बजाय में एकांत में विवाद करते है। ज्यादातर पत्नी का विवाद शयन कक्ष होता है। कभी वोे आपसी समझ से मामला सुलझा लेते है, लेकिन कभी- कभी बात गंभीर रूप ले लेती है। जिससे की वैवाहिक और पारिवारिक जीवन में तनाव होने लगता है। विषम परिस्थितियों में बात तलाक तक पहुंच जाती है।आखिर पति-पत्नी के बीच झगड़ा होता क्यों होता है? इसकी पीछे की वजह क्या होती है। इससे जानकर हम आने वाली परिस्थितियों से कुछ हद सचेत हो सकते है।
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नाम गुण मिलान: विवाह के पूर्व लड़के-लड़की के कुंडली का मिलान करना चाहिए। लड़के का गुण मिलान में अधिकतम 36 गुण माने गए है जिसमें से कम से कम 18 गुण मिलने पर विवाह मान्य होता है, लेकिन गुण मिलान के साथ दोनों की कुंडलियो में ग्रह और भाव को देखना चाहिए। यदि मिलान में दोष हो तो बेडरूम में झगड़े होंगे । ये दोष है ,गण दोष, नाड़ी दोष, को मिलान में श्रेष्ठ नहीं माना जाता। प्राय:देखा जाता है कभी - कभी उपरोक्त दोषों के अलावा भी सामान्य भाव रहने पर भी पति-पत्नी के बेडरूम में झगड़े की संभावना बढ़ जाती हैं।
सप्तमेश स्थान पर ग्रहों का प्रभाव: सप्तम भाव को पति पत्नी के लिए देखा जाता है।वैवाहिक जीवन में सुख के लिए सप्तम भाव को शुभ स्थिति में होना होना चाहिए इस भाव के स्वामी पर कोई पाप प्रभाव नहीं होना चाहिए। सप्तमेश अगर पीड़ित होगा तो पति पत्नी के बीच विवाद की संभावना बन जाती है, इसके कुछ कारण होते है..
-सप्तम स्थान पर सूर्य, शनि, राहू, केतु, और मंगल का प्रभाव।
-गुरू का दोष पूर्ण होकर सप्तमेश पर प्रभाव।
- सप्तमेश का छठे, आठवें और बारहवें भाव में होना।
-सप्तम प्रभाव पाप कतर्री में होना होना।
- सप्तमेश पर पाप ग्रहों का प्रभाव।
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मंगल दोष: पति-पत्नी में से अगर किसी एक में मंगल दोष है तो ये समस्या ज्यादा उत्पन्न होती है। प्राय: देखा गया हैं कि जिस दम्पति की कुंडली में मंगल दोष हैं, उनका मंगल दोष निवारण अन्य ग्रह से किया गया हैं उनमें मुख्यत: द्वादश: लग्न, चतुर्थ में स्थित मंगल वाले दम्पति में लड़ाई होती हैं, क्योंकि इसका मुख्य कारण सप्तम स्थान को शयन सुख में कमी देखा जाता है। मंगले के द्वादश और चतुर्थ में होने पर मंगल अपनी विशेष दृष्टि से सप्तम स्थान को प्रभावित करता हैं और यही स्थिति लग्नस्थ मंगल में देखने को मिलती हैं। लग्नस्थ मंगल जातक को अभिमानी बनाता है।इसलिए मांगलिक दोष वाले जातक का विवाह मांगलिक दोष वाले व्यक्ति से ही होना चाहिए।
शुक्र की स्थिति: ज्योतिष में शुक्र को स्त्री सुख प्रदाता माना जाता हैं। वैवाहिक सुख के लिए शुक्र का प्रबल और दोष रहित होना आवश्यक है। शुक्र कि स्थिति अनुसार ही पति-पत्नी से सुख मिलने का निर्धारण किया जाता हैं। अगर शुक्र नीच का हो,षष्ठ भाव और अष्ठम भाव में हो तो बेडरूम में झगड़ा होने की संभावना रहती हैं। शुक्र के द्वादश में होने पर जातक को पत्नी सुख
नहीं मिलता हैं। यह योग मेष लग्न के जातक में विशेष देखने को मिलता है और बेडरूम में झगड़ा होता हैं।
गोचर ग्रहों का प्रभाव: दाम्पत्यसुख में गोचर ग्रह का अपना महत्व हैं। सभी ग्रह गतिमान हैं और राशि परिवर्तन करते हैं। प्रत्येक राशि को अपना प्रभाव देकर सुखी और दुखी होने का कारण होते हैं। सर्वाधिक गतिमान चन्द्र प्रत्येक ढाई दिन में राशि परिवर्तन करता हैं और चन्द्रमा मनसो जातक के अनुसार मन का कारक होने, जलीय ग्रह होने से प्रेम की कमी कारक होता हैं। अत: प्रत्येक राशि में अन्य ग्रहों की स्थिति सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव प्रदान करता हैं। इसकी छठी, आंठवीं व बारहवीं स्थिति प्रेम को कम करती हैं शयन सुख में बाधा देती हैं। प्रत्येक ग्रह का प्रभाव दाम्पत्य जीवन पर सकारात्मक जहा आनन्द भर देता हैं वहीं नकारात्मक रति सुख नष्ट कर देता हैं।
दशा का प्रभाव: अगर किसी जातक की कुंडली में ऐसे दोष होते है और उन ग्रहों की दशा में ऐसा होना जरुरी है। ज्योतिष में ग्रहों की दशाओं का महत्वपूर्ण स्थान है। इन्हीं ग्रहों के द्वारा व्यक्ति के जीवन में अनेक प्रकार के उतार-चढ़ाव आते हैं जिससे सुख-दुख की लड़ी जीवन में लगी रहती है। व्यक्ति के जीवन के संपूर्ण घटनाक्रम में अपना विशेष प्रभाव डालती हैं ज्योतिष के अनुसार सभी ग्रहों दशा-अन्तदर्शा में सभी प्रकार का फल प्रदान करते हैं। ग्रह सर्वशक्ति संपन्न हैं तो अच्छा-बुरा कोई भी फल दे सकते हैं। से सच है कि वे अपनी दशा में आकर ही अपने संपूर्ण अच्छे-बुरे फलों का दर्शन कराती हैं।