6 नवंबर को मनाया जाएगा आस्था का महापर्व, जानें क्या है छठ पूजा का महत्व?

Update:2016-11-02 14:54 IST

लखनऊ: भाई दूज के तीसरे दिन से शुरू होने वाले पर्व छठ पूजा की शुरुआत हो चुकी है। छठ पूजा चार दिवसीय उत्सव है। इसकी शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को तथा समाप्ति कार्तिक शुक्ल सप्तमी को होती है। इस दौरान व्रतधारी लगातार 36 घंटे का व्रत रखते हैं। इस दौरान वे पानी भी ग्रहण नहीं करते। छठ पूजा की सबसे ज्यादा धूम बिहार और झारखंड में होती है। इसके अलावा यह पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में भी बखूबी मनाया जाता है। इस पूजा में सूर्य भगवान का विशेष महत्त्व होता है।

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नहाय खाय: छठ पूजा का पहला दिन कार्तिक शुक्ल चतुर्थी ‘नहाय-खाय’ के रूप में मनाया जाता है। इसमें सबसे पहले घर की सफाई कर उसे पवित्र बना लिया जाता है। इसके बाद जो भी छठ का व्रत करते हैं, वह स्नान कर पवित्र तरीके से बने शुद्ध शाकाहारी भोजन को ग्रहण कर व्रत की शुरुआत करते हैं। लेकिन घर के बाकी सदस्य व्रती के भोजनोपरांत ही भोजन ग्रहण करते हैं। छठ व्रती भोजन रूप में कद्दू-दाल और चावल ग्रहण करता है। कद्दू के साथ बनी इस दाल में चने की दाल का प्रयोग किया जाता है।

लोहंडा और खरना: छठ पूजा के दूसरे दिन कार्तिक शुक्ल पंचमी को व्रतधारी दिन भर का व्रत रखने के बाद शाम को भोजन करते हैं। जिसे ‘खरना’ कहा जाता है। खरना का प्रसाद लेने के लिए आस-पास के सभी लोगों को बुलाया जाता है। खरना प्रसाद के रूप में लोगों को गन्ने के रस में बने हुए चावल की खीर के साथ दूध, चावल का पिट्ठा और घी चुपड़ी रोटी बनाई जाती है। खास बात तो यह है कि इसमें नमक या चीनी का उपयोग नहीं किया जाता है। बता दें कि इस दौरान पूरे घर की स्वच्छता का खास ख्याल रखा जाता है।

संध्या अर्घ्य: छठ पूजा के तीसरे दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को दिन में छठ प्रसाद बनाया जाता है। प्रसाद के रूप में ठेकुआ, चावल के लड्डू बनाए जाते हैं। इतना ही नहीं, इसके अलावा चढ़ावे के रूप में लाया गया सांचा और फल भी छठ प्रसाद के रूप में शामिल किया जाता है।

तीसरे दिन की शाम को पूरी तैयारी करने के बाद बांस की टोकरी में अर्घ्य का सूप सजाया जाता है और व्रत रखने वाले व्यक्ति या महिला के साथ परिवार तथा पड़ोस के सारे लोग अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने घाट की ओर जाते हैं। छठ पूजा का नजारा बाद अनोखा होता है सभी छठव्रती एक तालाब या नदी किनारे इकट्ठा होकर एक साथ अर्घ्य दान संपन्न करते हैं। इसमें सूर्य को जल और दूध का अर्घ्य दिया जाता है तथा छठी मैया की प्रसाद भरे सूप से पूजा की जाती है। जब छठ पूजा चल रही होती है, तो वहां आस-पास मेले का सीन बन जाता है

आगे की स्लाइड में जानिए क्या करना चाहिए छठ पूजा के चौथे दिन

छठ पूजा में चौथा दिन खास महत्त्व रखता है। चौथे दिन कार्तिक शुक्ल सप्तमी की सुबह उदियमान सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। व्रती वहीं एक बार फिर इक्ट्ठा होते हैं। जहां उन्होंने शाम को अर्घ्य दिया था। व्रती एक बार फिर से वही सब कुछ रिपीट करते हैं, जैसा उन्होंने एक शाम पहले किया था। आखिरी में व्रती कच्चे दूध का शरबत पीकर तथा थोड़ा प्रसाद खाकर व्रत पूरा करते हैं।

छठ पूजा का आरंभ कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से होता है तथा कार्तिक शुक्ल सप्तमी को इसका समापन होता है। प्रथम दिन कार्तिक शुक्ल चतुर्थी ‘नहाय-खाय’ के रूप में मनाया जाता है। नहाए-खाए के दूसरे दिन कार्तिक शुक्ल पंचमी को खरना किया जाता है। पंचमी को दिनभर खरना का व्रत रखने वाले व्रती शाम के समय गुड़ से बनी खीर, रोटी और फल का सेवन प्रसाद रूप में करते हैं।

बता दें कि छठ पूजा में व्रती 36 घंटे का निर्जला व्रत रखते हैं। व्रत खत्म होने के बाद ही व्रती अन्न और जल ग्रहण करते हैं। खरना पूजन से ही घर में देवी षष्ठी का आगमन हो जाता है। इस प्रकार भगवान सूर्य के इस पावन पर्व में शक्ति व ब्रह्मा दोनों की उपासना का फल एक साथ प्राप्त होता है। षष्ठी के दिन घर के समीप ही किसी नदी या जलाशय के किनारे पर एकत्रित होकर पर अस्ताचलगामी और दूसरे दिन उदीयमान सूर्य को अर्ध्य समर्पित कर पर्व की समाप्ति होती है।

छठ पर्व महत्व: छठ पूजा का आयोजन बिहार व पूर्वी उत्तर प्रदेश के अतिरिक्त देश के कोने-कोने में देखा जा सकता है। खास बात तो यह है कि देश-विदेशों में रहने वाले लोग भी इस पर्व को बहुत धूम धाम से मनाते हैं। मान्यताओं के अनुसार सूर्य देव और छठी मइया भाई-बहन है, छठ व्रत नियम तथा निष्ठा से किया जाता है। कहा जाता है कि भक्ति-भाव से किए गए इस व्रत द्वारा नि:संतान को संतान सुख मिलता है। इसे करने से धन-धान्य की प्राप्ति होती है तथा जीवन सुख-समृद्धि से परिपूर्ण रहता है। छठ के दौरान लोग सूर्य देव की पूजा करतें हैं, इसके लिए जल में खड़े होकर कमर तक पानी में डूबे लोग, दीप प्रज्ज्वलित किए नाना प्रसाद से पूरित सूप उगते और डूबते सूर्य को अर्ध्य देते हैं और छठी मैया के गीत गाए जाते हैं।

 

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