दीवाली के कई हैं रूप, बिल्ली को खिलाते हैं खीर तो कहीं मुस्लिम भी जलाते हैं दीप

Update:2016-10-28 16:56 IST

लखनऊ : दीवाली दीयों का त्योहार, रोशनी का त्योहार, पटाखों का त्योहार और सबके बीच मिठाइयों के साथ खुशियों को बांटने का त्योहार है। इस दिन पूरा देश दीयों की रोशनी और पटाखों की गूंज से गुंजायमान रहता है। हर जगह इस दिन को रोशनी से रौशन किया जाता हैं। देश के अलग-अलग हिस्सों में दीवाली के दिन अलग-अलग काम किए जाते हैं। आइए जानते हैं देश के कुछ हिस्सों में दीवाली के दिन क्या कुछ अलग होता है....

आगे की स्लाइड्स में पढ़ें गुजरात में किस तरह मनाते है दीवाली.....

गुजरात में दीवाली के दिन नमक खरीदने का खास महत्व है। इस दिन साक्षात लक्ष्मी का प्रतीक मान नमक खरीदना व बेचना शुभ माना जाता है।

आगे की स्लाइड्स में पढ़ें राजस्थान में किस तरह मनाते है दीवाली.....

राजस्थान में दीपावली के दिन घर में एक कमरे को सजाकर व रेशम के गद्दे बिछाकर मेहमानों की तरह बिल्ली का स्वागत किया जाता है। बिल्ली के समक्ष खाने हेतु तमाम मिठाइयां व खीर इत्यादि रख दी जाती हैं। यदि इस दिन बिल्ली सारी खीर खा जाए तो इसे साल भर के लिए शुभ व साक्षात लक्ष्मी का आगमन माना जाता है।

आगे की स्लाइड्स में पढ़ें उत्तरांचल-हिमाचल प्रदेश में किस तरह मनाते है दीवाली.....

उत्तरांचल के थारू आदिवासी अपने मृत पूर्वजों के साथ दीपावली मनाते हैं।

हिमाचल प्रदेश में कुछ आदिवासी जातियां इस दिन यक्ष पूजा करती हैं।

पश्चिम बंगाल और उड़ीसा में दीपावली को काली पूजा के रूप में मनाया जाता है। स्वामी रामकृष्ण परमहंस को दीवाली के ही दिन मां काली ने दर्शन दिए थे, अत: इस दिन बंगाली समाज में काली पूजा का विधान है। यहां पर यह तथ्य गौर करने लायक है कि दशहरा-दीपावली के दौरान पूर्वी भारत के क्षेत्रों में देवी के रौद्र रूपों को पूजा जाता है, वहीं उत्तरी व दक्षिण भारत में देवी के सौम्य रूपों अर्थात लक्ष्मी, सरस्वती व दुर्गा मां की पूजा की जाती है।

आगे की स्लाइड्स में पढ़ें मध्य प्रदेश में किस तरह मनाते है दीवाली.....

मध्य प्रदेश- दीवाली को जश्न-ए-चिराग के रूप में मनाते हैं मालवा के मुस्लिम मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र में मुस्लिम समुदाय दीपावली को जश्न-ए-चिराग के रूप में मनाता है। इस अंचल में मुस्लिम समाज द्वारा दीपावली पर्व मनाए जाने की प्राचीन परम्परा आज भी कायम है। इस पर्व को उमंग और उल्लास के परम्परागत तरीके से मनाने वाले रूस्तम खान पठान ने कहा कि यहां दीपावली को अमन , भाईचारे एवं सद्भाव के साथ मनाने की पुरानी परम्परा रही है।

उन्होंने बताया कि मुगल बादशाह शाहजहां, दीपावली पर्व पर यहां स्थित किले को रोशनी कर सजाते थे और किले के अंदर स्थित मंदिर में इस अवसर पर विशेष पूजा-अर्चना की जाती थी। उन्होंने कहा कि उदारवादी व समन्वयकारी मुगल शासक अकबर ने दीपावली पर्व मनाने की मुगलिया परम्परा का आगाज किया था। पवित्र त्योहार ईद और रमजान की तरह दीपों का यह पर्व भी मुस्लिम समुदाय द्वारा घरों की साफ-सफाई के साथ मनाया जाता है।

Tags:    

Similar News