श्राद्ध पक्ष: अगर चाहते हैं जीवन में तरक्की और पैसा तो अपनाएं ये उपाय

Update:2017-09-06 15:02 IST
ऐसे में यह जान लेना बहुत ही जरूरी हो जाता है कि श्राद्ध पक्ष में तृपण हमें कौन-कौन से ऋणों से मुक्ति दिलाता है। ये हैं- देव ऋण, ऋषि ऋण, पितृ ऋण। इनमें से श्राद्ध की क्रिया से पितरों का पितृ ऋण उतारा जाता है।

सहारनपुर: श्राद्ध पक्ष शुरू हो चुका है और सभी अपने अपने पितरों के तृपण करने की तैयारी में जुट भी गए हैं। ऐसे में यह जान लेना बहुत ही जरूरी हो जाता है कि श्राद्ध पक्ष में तर्पण हमें कौन-कौन से ऋणों से मुक्ति दिलाता है। ये हैं- देव ऋण, ऋषि ऋण, पितृ ऋण। इनमें से श्राद्ध की क्रिया से पितरों का पितृ ऋण उतारा जाता है।

ज्योतिषाचार्य आरती गुप्ता के अनुसार विष्णु पुराण में कहा गया है कि श्राद्ध से तृप्त होकर पितृ ऋण समस्त कामनाओं को तृप्त करते हैं।

श्राद्ध में दूध, दही, घी का प्रयोग किया जाता है। इसमें ध्यान रखने वाली बात यह है कि दूध, दही, घी गाय का ही होना चाहिए। वह भी ऐसी गाय का ना हो जिसने हाल ही में बच्चे को जन्म दिया हो। मतलब उस गाय का बच्चा कम से कम 10 दिन का हो गया हो।

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शास्त्रों में चांदी को श्रेष्ठ धातु माना गया है। श्राद्ध में ब्राह्मणों को भोजन चांदी के बर्तनों में करवाया जाना चाहिए। चांदी पवित्र और शुद्ध होती है जिसमें समस्त दोषों और नकारात्मक शक्तियों को खत्म करने की ताकत होती है। यदि पितरों को भी चांदी के बर्तन में रखकर पिंड या पानी दिया जाए तो वे संतुष्ट होते हैं। चांदी की उपलब्ध न हो तो सामान्य कागज की प्लेट में भोजन परोसें।

ब्राह्मणों को भोजन दोनों हाथों से परोसना चाहिए। एक हाथ से भोजन परोसने पर माना जाता है कि वह बुरी शक्तियों को प्राप्त होता है और पितर उसे ग्रहण नहीं कर पाते।

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ब्राह्मणों को भोजन करते समय एकदम शांतचित्त होकर भोजन ग्रहण करना चहिए। भोजन करते समय बीच-बीच में न तो बोलें और न ही भोजन के अच्छे या बुरे होने के बारे में कुछ कहें। इसका कारण यह है कि आपके पितर ब्राह्मणों के जरिए ही भोजन का अंश ग्रहण करते हैं और इस दौरान उन्हें बिलकुल शांति चाहिए।

शास्त्रों के नियमों के अनुसार श्राद्ध परिजन की मृत्यु तिथि और चतुर्दशी के दिन ही किया जाना चाहिए। दो दिन श्राद्ध करने से पितर संतुष्ट होते हैं। श्राद्ध केवल परिजनों के साथ ही करें। उसमें पंडित को छोड़कर बाहर का कोई व्यक्ति श्राद्ध पूजा के समय उपस्थित न रहे।

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शास्त्रों में ब्राह्मणों को धरती के मनुष्य और पितृ लोक में निवास कर रहे परिजनों के बीच का सेतु कहा गया है। इसलिए ब्राह्मणों को कराए गए भोजन का अंश सीधे पितरों को प्राप्त होता है। बिना ब्राह्मण भोजन के पितरों को अन्न, जल प्राप्त नहीं होता।

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श्राद्ध पूजा के दौरान पिंड बनाने में जौ तिल का प्रयोग किया जाता है। जौ, तिल पितरों को पसंद होते हैं। कुश का प्रयोग भी श्राद्ध पूजा में होता है। ये सब चीजें अत्यंत पवित्र मानी गई है और बुरी शक्तियों को दूर रखती है।

अक्सर हम देखते हैं कि श्राद्धकर्म नदियों, तालाबों के किनारे किया जाता है। इसका कारण यह होता है कि श्राद्ध ऐसी जगह किया जाना चाहिए जो किसी के आधिपत्य में नहीं आती है। नदियां और तालाब किसी के नहीं होते इसलिए उन स्थानों पर श्राद्ध कर्म करके उसी के जल से पितरों का तर्पण किया जाता है।

अपने मृत परिजनों के श्राद्ध में बहन, उसके पति और बच्चों यानी भांजे-भांजियों को अवश्य बुलाना चाहिए। यदि वे शहर में नहीं हैं, कहीं दूर रहते हों तो बात अलग है। लेकिन शहर में ही होते हुए उन्हें आमंत्रित करना चाहिए।

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श्राद्ध करते समय कोई भिखारी आपके द्वार पर आ जाए तो इससे अच्छी बात और कोई नहीं हो सकती। उसे ससम्मान भोजन करवाएं। श्राद्धपूजा के बाद गरीबों, निशक्तों को भी भोजन करवाना चाहिए।

श्राद्ध में खीर सबसे आवश्यक खाद्य पदार्थ है। खीर के अलावा जिस मृत परिजन के निमित्त श्राद्ध किया जा रहा है उसकी पसंदीदा वस्तु भी बनाएं।

प्राणियों का हिस्सारू ब्राह्मणों के अलावा देवताओं, गाय, कुत्ता, कौवा, चींटी का भी भोजन में हिस्सा होता है। इन्हें कभी न भूलें। श्राद्ध के बाद ब्राह्मणों को यथाशक्ति दान-दक्षिणा, वस्त्र दान दें।

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