लखनऊ: प्रथम पूज्य भगवान गणपति का आविर्भाव। गणेशोत्सव (गणेश+उत्सव) भारत का बहुत बड़ा उत्सव है। वैसे तो यह कमोबेश पूरे भारत में मनाया जाता है, किंतु महाराष्ट्र का गणेशोत्सव विशेष रूप से प्रसिद्ध है। महाराष्ट्र में भी पुणे का गणेशोत्सव जगत प्रसिद्ध है। यह उत्सव, हिंदू पंचांग के अनुसार भाद्रपद मास की चतुर्थी से चतुर्दशी (चार तारीख से चौदह तारीख तक) तक दस दिनों तक चलता है।
भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को गणेश चतुर्थी भी कहते हैं। गणेश की प्रतिष्ठा संपूर्ण भारत में समान रूप में व्याप्त है। महाराष्ट्र इसे मंगलकारी देवता के रूप में व मंगलपूर्ति के नाम से पूजता है। दक्षिण भारत में इनकी विशेष लोकप्रियता ‘कला शिरोमणि’ के रूप में है।
मैसूर तथा तंजौर के मंदिरों में गणेश की नृत्य-मुद्रा में अनेक मनमोहक प्रतिमाएं हैं। गणेश हिंदुओं के आदि आराध्य देव है। हिंदू धर्म में गणेश को एक विशिष्ट स्थान प्राप्त है। कोई भी धार्मिक उत्सव हो, यज्ञ, पूजन इत्यादि सत्कर्म हो या फिर विवाहोत्सव हो, निर्विध्न कार्य संपन्न हो इसलिए शुभ के रूप में गणेश की पूजा सबसे पहले की जाती है। महाराष्ट्र में सात वाहन, राष्ट्रकूट, चालुक्य आदि राजाओं ने गणेशोत्सव की प्रथा चलायी थी।
आज पूरे देश में गणपति पूजा की धूम है। महाराष्ट्र से निकल कर अब यह उत्सव पूरे भारतवर्ष का महोत्सव बन चुका है। उतर प्रदेश, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, केरल, दिल्ली, पंजाब, हरियाणा से लेकर बिहार और बंगाल तक में इस महा उत्सव की धूम मची है। उतर प्रदेश की राजधानी लखनऊ हो या कानपुर, आगरा, झांसी, मेरठ, गोरखपुर, काशी, प्रयाग हर शहर में इस उत्सव का माहौल है।
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गणेश चतुर्थी पूजा विधि
भगवान गणेश की गणेश-चतुर्थी के दिन सोलह उपचारों से वैदिक मंत्रों के जापों के साथ पूजा की जाती है। भगवान की सोलह उपचारों से की जाने वाली पूजा को षोडशोपचार पूजा कहते हैं। गणेश-चतुर्थी की पूजा को विनायक-चतुर्थी पूजा के नाम से भी जाना जाता है। भगवान गणेश को प्रात:काल, मध्याह्न और सायं में से किसी भी समय पूजा जा सकता है। परंतु गणेश-चतुर्थी के दिन मध्याह्न का समय गणेश-पूजा के लिये सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। मध्याह्न के दौरान गणेश-पूजा का समय गणेश-चतुर्थी पूजा मुहूर्त कहलाता है। गणेश-पूजा के समय षोडशोपचार पूजा के सभी सोलह उपचार भी शामिल हैं। दीप-प्रज्वलन और संकल्प, पूजा प्रारंभ होने से पूर्व किए जाते हैं। अत: दीप-प्रज्वलन और संकल्प षोडशोपचार पूजा के सोलह उपचारों में सम्मिलित नहीं होते हैं।
गणपति महोत्सव
इस लोक त्योहार के लिए तैयारी महीनों पहले शुरू हो जाती है। इसके लिए पंडाल आमतौर पर स्थानीय निवासियों द्वारा वित्त पोषित होता है या इसे मेलों और कार्यशालाओं के माध्यम से एकत्र किया जाता है। मूर्ति बनाने प्रक्रिया महाराष्ट्र में आमतौर पर पाद्य पूजा या भगवान गणेश के पैरों की पूजा के साथ शुरू होता है। मूर्तियों को 15-20 दिन पहले पंडालों या अस्थायी निर्माणाधीन पंडालों में लाया जाता है। घर में त्योहार की शुरुआत एक मिट्टी मूर्ति (मूर्ति) की स्थापना के साथ शुरू होता है। मूर्ति और पंडालों को फूलों और अन्य सामग्री के साथ सजाया जाता है। त्योहार के लिए कारीगर बिक्री के लिए गणेश की मिट्टी की मूर्ति तैयार करते हैं। मूर्तियों बड़े समुदाय समारोह के लिए 70 से अधिक फीट (21 मीटर) की और घरों के लिए 3/4 इंच (1.9 सेमी) के आकार में सीमा की होती है। त्योहार के लिए तारीख का निर्णय आमतौर पर चतुर्थी तिथि की उपस्थिति को देख कर किया जाता है।
चतुर्थी तिथि पिछले दिन रात में शुरू होता है और अगले दिन सुबह तक खत्म हो जाता है तो अगले दिन विनायक चतुर्थी के रूप में मनाया जाता है। अभिषेक समारोह में, एक पुजारी मूर्ति में भगवान गणेश को आमंत्रित करने के लिए प्राण प्रतिष्ठा करता है। इसके बाद पाद्य, अर्घ्य, आचमनीय, धुप, दीप नैवेद्य आदि से गणेश की षोडशोपचार पूजा की जाती है। श्रद्धालु भक्त नारियल, गुड़, मोदक, दुर्वा, घास और लाल गुड़हल के फूल मूर्ति को स्नेह के साथ समर्पित करते हैं। समारोह के दौरान, ऋग्वेद, गणपति अथर्वशीर्ष, उपनिषद और गणेश स्तोत्र (प्रार्थना) नारद पुराण से भजन आदि तंवर स्तुति की जाती है। मित्रों और पूरे परिवार के साथ सुबह शाम की संध्या आरती की जाती है। यह उत्सव जागरण भजन से साथ 10 दिन चलता है उसके बाद गणपति की प्रतिमा का विसर्जन कर दिया जाता है।
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क्यों मनाया जाता है गणपति महोत्सव?
गणेश चतुर्थी का त्यौहार मानाने की परंपरा बहुत दिनों से चली आ रही है। पहली बार गणेश चतुर्थी का पर्व कब मनाया गया इसके बारे में पर्याप्त जानकारी नहीं हैं। पुणे में मराठा साम्राज्य के संस्थापक शिवाजी के माने (1630-1680) से गणेश चतुर्थी का उत्सव मनाया जा रहा है। भगवान गणेश उनके कुल देवता थे अत: पेशवाओं ने इस उत्सव के प्रति अपने राज्य में नागरिकों को प्रोत्साहित किया। पेशवा साम्राज्य के पतन के बाद गणेश उत्सव एक राज्य उत्सव नहीं होकर एक परिवार के उत्सव बन कर रह गया।
स्वतंत्रता सेनानी लोकमान्य तिलक ने गणेश चतुर्थी के उत्सव को महाराष्ट्र में फिर से लोकप्रिय बनाया और यह उत्सव राज्य स्तर पर मनाया जाने लगा। कहते हैं कि पुणे में कस्बा गणपति नाम से प्रसिद्ध गणपति की स्थापना शिवाजी महाराज की मां जीजाबाई ने की थी। परंतु लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने गणेशोत्सव को जो स्वरूप दिया उससे गणेश राष्ट्रीय एकता के प्रतीक बन गए।
तिलक के प्रयास से पहले गणेश पूजा परिवार तक ही सीमित थी। पूजा को सार्वजनिक महोत्सव का रूप देते समय उसे केवल धार्मिक कर्मकांड तक ही सीमित नहीं रखा, बल्कि आजादी की लड़ाई, छुआछूत दूर करने और समाज को संगठित करने तथा आम आदमी का ज्ञानवर्धन करने का उसे जरिया बनाया और उसे एक आंदोलन का स्वरूप दिया। इस आंदोलन ने ब्रिटिश साम्राज्य की नींव हिलाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। वर्तमान गणेश उत्सव का महाराष्ट्र सार्वजनिक त्योहार 1892 में भाऊसाहेब लक्ष्मण जवाले द्वारा पेश किया गया था। बाला साहेब नाटू और कृष्णन जी पंत खासगीवाले के साथ मुलाकात के बाद वह पहली बार सार्वजनिक (सार्वजनिक) गणेश प्रतिमा स्थापित की गयी।
जब उन्होंने ग्वालियर के मराठा शासित राज्य का दौरा किया, खासगीवाले ने पारंपरिक सार्वजनिक उत्सव को देखा और पुणे में अपने दोस्तों का ध्यान इसके प्रति आकर्षित किया। 1893 में बाल गंगाधर तिलक ने अपने समाचार पत्र केसरी में सार्वजनिक गणेश उत्सव के जश्न की प्रशंसा की और अगले वर्ष उन्होंने स्वयं केसरी कार्यालय में एक गणेश प्रतिमा स्थापित किया। गणेश चतुर्थी को एक राष्ट्रीय त्योहार के रूप में लोकप्रिय बनाने के लिए तिलक ने गणेश को सबके लिए भगवान की मान्यता की अपील की।
ब्राह्मणों और गैर-ब्राह्मण के बीच एक नया जमीनी स्तर पर एकता का निर्माण करने के लिए और उन दोनों के बीच की खाई को पाटने के संदर्भ में यह प्रयास बहुत सफल हुआ। मंडप में गणेश की बड़ी सार्वजनिक छवियों को स्थापित करने वाले वह पहले व्यक्तिथे। उन्होंने ही नदियों समुद्र और दूसरे जलाशयों में गणेश उत्सव के 10वें दिन मूर्तियों को जल में विसर्जित करने की परंपरा चलायी। लोकमान्य तिलक से प्रोत्साहित, गणेश चतुर्थी समारोह के उपलक्ष्य में आयोजित बौद्धिक बहस, कविता गायन, नाटक, संगीत, और लोक नृत्य के रूपों में समुदाय की भागीदारी बड़ी। यह एक सभी जातियों और समुदायों के लोगों के लिए एक बैठक का माध्यम था, जब ब्रिटिश सरकार भीड़ भाड़ को नियंत्रित करने के लिए सामाजिक और राजनीतिक सम्मेलनों को रोकती थी और हतोत्साहित करती थी।
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गोवा में गणेश चतुर्थी
गोवा में गणेश चतुर्थी का उत्सव कदंब युग से पहले से चला आ रहा है। गोवा में न्यायिक जांच आयोग ने हिंदू त्योहारों पर प्रतिबंध लगा दिया था और जिस हिंदू को ईसाई धर्म में परिवर्तित नहीं किया था उसे गंभीर रूप से प्रतिबंधित कर दिया गया था। इस प्रतिबंध बावजूद गोवा के हिन्दू इस त्यौहार को मानते रहे। कई परिवार कागज की तस्वीर पर या छोटे चांदी की मूर्तियों पर पत्री के रूप में गणेश पूजा करते रहे। न्यायिक जांच के हिस्से के रूप में मिट्टी के गणेश मूर्तियों और त्योहारों पर जीसस द्वारा प्रतिबंध की वजह से कुछ घरों में गणेश प्रतिमाये छिपी हुई हैं, यह गोवा में गणेश चतुर्थी की अनूठी परंपरा थी। महाराष्ट्र में मनाए जाने वाले गणेश चतुर्थी के त्योहार के विपरीत, गोवा में यह एक परिवार के एक द्वारा वाला उत्सव है जिसमें एक 1000 या अधिक की संख्या में लोग अपने पैतृक घरों में इस समारोह को मनाते हैं।
स्वतंत्रता संग्राम और गणेशोत्सव
वीर सावरकर और कवि गोविंद ने नासिक में ‘मित्रमेला’ संस्था बनाई थी। इस संस्था का काम था देशभक्तिपूर्ण पोवाडे (मराठी लोकगीतों का एक प्रकार) आकर्षक ढंग से बोलकर सुनाना। इस संस्था के पोवाडों ने पश्चिमी महाराष्ट्र में धूम मचा दी थी। कवि गोविंद को सुनने के लिए लोगों उमड़ पड़ते थे। राम-रावण कथा के आधार पर वे लोगों में देशभक्ति का भाव जगाने में सफल होते थे। वीर सावरकर ने लिखा कि कवि गोविंद अपनी कविता की अमर छाप जनमानस पर छोड़ जाते थे। गणेशोत्सव का उपयोग आजादी की लड़ाई के लिए किए जाने की बात पूरे महाराष्ट्र में फैल गई। बाद में नागपुर, वर्धा, अमरावती आदि शहरों में भी गणेशोत्सव ने आजादी का नया ही आंदोलन छेड़ दिया था।
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अंग्रेज भी इससे घबरा गए थे। इस बारे में रोलेट समिति रपट में भी चिंता जताई गई थी। रपट में कहा गया था गणेशोत्सव के दौरान युवकों की टोलियां सडक़ों पर घूम-घूम कर अंग्रेजी शासन विरोधी गीत गाती हैं व स्कूली बच्चे पर्चे बांटते हैं। जिसमें अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ हथियार उठाने और मराठों से शिवाजी की तरह विद्रोह करने का आह्वान होता है। साथ ही अंग्रेजी सत्ता को उखाड़ फेंकने के लिए धार्मिक संघर्ष को जरूरी बताया जाता है। गणेशोत्सवों में भाषण देने वाले में प्रमुख राष्ट्रीय नेता थे-वीर सावकर, लोकमान्य तिलक, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, बैरिस्टर जयकर, रेंगलर परांजपे, पंडित मदन मोहन मालवीय, मौलिकचंद्र शर्मा, बैरिस्ट चक्रवर्ती, दादासाहेब खापर्डे और सरोजनी नायडू।
गणेश चतुर्थी पूजा मुहूर्त
25 अगस्त , शुक्रवार 2017
मध्याह्न गणेश पूजा का समय = 11.06 से 13.39
अवधि = 2 घण्टे 33 मिनट
24 को, चंद्रमा को नहीं देखने का समय = 20.27 से 20.43
अवधि = 0 घण्टे 16 मिनट
25 को, चंद्रमा को नहीं देखने का समय = 09.10 से 21.20
अवधि = 12 घण्टे 9 मिनट
चतुर्थी तिथि प्रारंभ = 24/अगस्त/2017 को 20.27 बजे
चतुर्थी तिथि समाप्त = 25/अगस्त/2017 को 20.31 बजे