क्या बाबा गोरखनाथ हैं शिव के अवतार, जानिए क्यों चढ़ता है खिचड़ी का प्रसाद?
गोरखपुर: देश में हर तरफ अब मकर संक्रांति और लोहड़ी की धूम है। जनवरी माह की शुरुआत से ही मकर संक्रांति की तैयारियां शुरू हो गई है। इस त्योहार के दिन उत्तर प्रदेश, बिहार, नेपाल के हिन्दू धर्म के लोगों द्वारा गोरखपुर स्थित बाबा गोरखनाथ मंदिर में खिचड़ी का प्रसाद चढ़ाया जाता है। आखिर यहां क्यों चढ़ाया जाता है यहां खिचड़ी का प्रसाद। विभिन्न राशियों में सूर्य के प्रवेश को संक्रांति कहते हैं। धनु राशि से जब मकर राशि में सूर्य प्रवेश करता है तो इसे मकर संक्रांति कहते हैं। हिंदी भाषी क्षेत्र में दाल व चावल के मिश्रण के दान व भोजन को संक्रांति कहते हैं। भगवान शिव के अवतार थे बाबा गोरखनाथ।
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पौराणिक मान्यताओं के अनुसार बाबा गोरखनाथ आदिनाथ भगवान शिव के अवतार थे। उनके गुरु मत्स्येन्द्रनाथ की उत्पत्ति मछली के पेट से हुई थी। मत्स्येन्द्र नाथ भिक्षाटन करते हुए सरस्वती नामक एक माता के दरवाजे पर पहुंचे। भिक्षाम् देही कहकर भिक्षा मांगने लगे। बाहर निकली महिला उनको कुछ दुःखी दिखीं। उन्होंने इसका कारण पूछा। उस महिला ने बताया कि धन-दौलत सब कुछ भगवान ने दिया है, लेकिन एक औलाद नहीं दिया। पीड़ा सुनने के बाद बाबा मस्त्येंद्रनाथ जी ने प्रसाद स्वरूप भभूत (राख़ से तैयार भस्म)दी और वहां से आगे बढ़ गए। 12 साल बाद वह फिर उसी दरवाजे पर गए। भिक्षा के लिए पुकारा तो वही महिला बाहर निकलीं। महान योगी ने पूछा कि 12 साल पहले उन्होंने जो भभूत दिया था उसका क्या फल रहा। इस पर महिला ने बताया कि पड़ोस की महिलाओं ने सन्देह पैदा कर दिया तो उन्होंने भभूत को झाड़ियों में फेंक दिया था। उन्होंने वह स्थान दिखाने को कहा। वहां पहुंच कर उन्होंने जोर से अलख निरंजन का उद्घोष किया। उद्घोष होते ही वहां 12 साल के बालक प्रकट हुए जो बाद में गोरखनाथ के नाम से प्रसिद्ध हुए। बालक को रखने का माता का अनुरोध ठुकराकर मत्स्येन्द्रनाथ उन्हें अपने साथ ले गए। गुरु के साथ योग सीखते बाबा गोरखनाथ इधर-उधर भ्रमण करने लगे।
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त्रेता युग में महान योगी गुरु गोरखनाथ भ्रमण करते हुए कांगड़ा जिले के ज्वाला देवी स्थान पर पहुंचे। वहां गोरखनाथ को आया देख स्वयं देवी प्रकट हुईं और स्वागत करते हुए भोजन ग्रहण करने का आमंत्रण दिया। देवी स्थान पर वामाचारी पंथ से पूजन होने की वजह से तामसी भोजन बाबा गोरखनाथ ग्रहण करना नहीं चाहते थे। इसलिए गोरखनाथ ने कहा कि वह खिचड़ी खाते हैं वह भी मधुकरी से। बाबा की बातों को सुनकर देवी ने कहा कि वे भी खिचड़ी ही खाएंगी। उन्होंने बाबा गोरखनाथ से कहा कि तुम खिचड़ी की सामग्री मांगकर लाओ वह अदहन (चावल-दाल बनाने का गर्म पानी ) गरम कर रही हैं। गुरु गोरखनाथ भिक्षा मांगते हुए अयोध्या के इस क्षेत्र में राप्ती नदी के किनारे चारो तरफ जंगलो से घिरे शांत और मनोरम जगह से प्रभावित होकर गुरु गोरखनाथ ने यहीं समाधि ले लिए। बाद में हिमालय की तलहटी का यह क्षेत्र गुरु गोरखनाथ के नाम पर गोरखपुर कहलाया।
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तभी से मान्यता है कि समाधि लिए गुरु गोरखनाथ के खप्पर में लोग खिचड़ी चढ़ाने लगे। न कभी खप्पर भरा और न ही वे वापस कांगड़ा लौटे। तभी से लोग आकर गुरु गोरख के खप्पर में खिचड़ी चढ़ाते हैं लेकिन आज तक वह खप्पर भरा नहीं। यहीं नहीं गुरु गोरखनाथ के इंतजार में ज्वाला देवी में आज भी अदहन खौल रहा है।