इस पेड़ के बिना होती है शादी अधूरी, सिर्फ कर्मकांडों में नहीं, हर बीमारी के इलाज में भी है जरूरी
लखनऊ: गूलर का पेड़ भारत में हर जगह पाया जाता ही। यह एक हमेशा हरा रहने वाला पेड़ है। इसे उदंबर, गूलर, गूलार उमरडो, कलस्टर फिग आदि नामों से जाना जाता है। इसका लैटिन नाम फाईकस ग्लोमेरेटा कहा जाता है।
गूलर का पेड़ बड़ा होता है और यह उत्तम भूमि में उगता है। इसका तना मोटा होता है। गूलर के पत्ते छोटे कोमल से होते हैं। इसका फूल गुप्त होता है। इसमें छोटे-छोटे फल होते हैं जो कच्चे होने पर हरे और पकने पर लाल हो जाते हैं। फल स्वाद में मधुर होते हैं। फलों के अन्दर कीट होते है जिनके पंख होते हैं। इसलिए इसे जन्तुफल भी कहा जाता है। इसकी छाल भूरी सी होती है। यह फाईकस जाति का पेड़ है और इसके पत्ते तोड़ने पर लेटेक्स या दूध निकलता है।
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हिंदू धर्म में पेड़ पौधे, जीव जंतुओं की पूजा करने का रिवाज है। देश के हर प्रांत में इससे जुड़ें अलग-अलग नियम है। कहीं जानवर तो कहीं पेड़ पौधे कई रस्मों में इस्तेमाल किए जाते हैं। लोग पेड़ों की पूजा करते हैं। पीपल, बरगद के पेड़ों का पूजा-पाठ में महत्व है। वहीं विवाह की रस्मों का भी एक विशेष पेड़ गूलर गवाह बनता है। गूलर के पेड़ की लकड़ी और पत्तियों से विवाह का मंडप तैयार होता है। इसकी लकड़ी से बने पाटे पर बैठकर वर-वधू वैवाहिक रस्में पूरी करते हैं। जहां गूलर की लकड़ी और पत्ते नहीं मिलते हैं, वहां विवाह के लिए इस पेड़ के टुकड़े से भी काम चलाया जाता है।
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धन यश देता है गूलर
रविवार के दिन पुष्य नक्षत्र हो, तब गूलर के वृक्ष की जड़ प्राप्त कर के घर लाएं। इसे धूप, दीप करके धन स्थान पर रख दें। यदि इसे धारण करना चाहें तो स्वर्ण ताबीज में भर कर धारण कर लें। जब तक यह ताबीज आपके पास रहेगी, तब तक कोई कमी नहीं आयेगी। घर में संतान सुख उत्तम रहेगा। यश की प्राप्ति होती रहेगी। धन संपदा भरपूर होंगे। सुख शांति और संतुष्टि की प्राप्ति होगी।
मान्यता
गूलर की लकड़ी मजबूत नहीं होती। इसके फल गुच्छों के रूप में तने पर होते हैं। इसके पीछे एक कथा है कि गांधारी को शादी में एक ऋषि के अपमान के फलस्वरूप श्राप मिला था। श्राप से मुक्ति के लिए गांधारी को पहले गूलर की लकड़ी का मगरोहन बनाकर पहले मंडप का फेरा लगाने को कहा गया था। उसके बाद उन्हें श्राप से मुक्ति मिली थी। संभवत: तभी से इसका प्रचलन हुआ। इस पेड़ की उपयोगिता को हर जगह मानते है लेकिन खासतौर पर छत्तीसगढ़ में विशेष तौर पर माना जाता है। लोगों का कहना है कि इसके फलों के अंदर तोड़ते ही छोटे-छोटे बारीक कीड़े निकलते हैं। इस पेड़ की पहचान काफी कठिन होता है।
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यहां गूलर को डूमर भी कहा जाता है। साथ ही इसके पेड़ और फल का भी विशेष महत्व है। ज्योतिष के अनुसार कर्मकांडों में गूलर के पेड़ को शुभ माना गया है। पुराणों के अनुसार, इसमें गणेशजी विराजमान होते हैं। इसलिए विवाह जैसी रस्मों में इसका बहुत महत्व है। वैसे तो कहा जाता है कि गूलर के पेड़ जल्दी नहीं मिलते हैं। लेकिन जगदलपुर-उड़ीसा के रास्ते पर यह आसानी से मिल जाते हैं। इसके फलों को भालू बड़े चाव से खाते हैं। वहीं मंडपाच्छादन में इसके पेड़ों के लकड़ी और पत्तों के छोटे टुकड़े रखना जरूरी होता है। इसकी लकड़ी से मगरोहन (लकड़ा का पाटा) बनाया जाता है, जिसमें वर-वधू को बैठाकर तेल-हल्दी की शुरूआत होती है।
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ज्योतिषों के अनुसार यह पेड़ दुर्लभ तो है ही साथ ही हवन-पूजन में इसकी लकड़ियों का इस्तेमाल होता है। उन्होंने कहा कि हवन में 9 प्रकार की लकड़ियों का इस्तेमाल किया जाता है, उसमें एक गूलर भी शामिल होता है। लकड़ी तोड़ने से पहले इसकी पूजा-अर्चना की जाती है। उसके बाद इसकी लकड़ी का छोटा टुकड़ा लाकर मंडप पर लगाया जाता है । उसके बाद ही शादी की रस्में पूरी होती है।
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बीमारियों का इलाज
गूलर की छाल, पत्ते, जड़, कच्चाफल और पक्का फल सभी को उपयोगी माना गया है। पका फल मीठा, शीतल, रुचिकारक, पित्तशामक, तृष्णाशामक, पौष्टिक और कब्जनाशक होता है। खूनी बवासीर में इसके पत्तों का रस लाभकारी होता है।
हाथ-पैर की चमड़ी फटने से होने होने वाली पीड़ा कम करने के लिए गूलर के दूध का लेप भी फलकारी है। मुंह में छाले, मसूड़ों से खून आना आदि विकारों में इसकी छाल या पत्तों का काढ़ा बनाकर कुल्ला करने से विशेष लाभ होता है।
गर्मी के मौसम में गर्मी या अन्य जलन पैदा करने वाले विकारों और चेचक आदि में गूलर के पके फल को पीसकर उसमें शक्कर मिलाकर उसका शर्बत बनाकर पीने से राहत मिलती है।
अगर पुरुष गूलर की छाल का पाउडर और मिश्री को बराबर मात्रा में मिलाकर रख लें तो इसे रोज़ दस ग्राम की मात्रा में दूध के साथ सेवन करें। इससे कमजोरी दूर होती है और शरीर में बल और वीर्य की बढ़ोतरी होती है। शुक्राणु की संख्या बढ़ती है।
गूलर की छाल का काढा बनाकर मिश्री मिलाकर हर रोज़ कुछ सप्ताह तक नियमित सेवन करने से महिलाओं में गर्भ से असामान्य स्राव को कम करता हैं। श्वेत प्रदर को भी नहीं होने देता है।