कहते हैं गुरु के बिना ज्ञान अधूरा है। वे हमें अज्ञान के अंधकार से ज्ञान की प्रकाश की हो ले जाते है। हर इंसान के जीवन में किसी न किसी रूप में एक गुरु होता है। चाहे वो शिक्षा देने वाला हो या आध्त्यमिक। सच्चा गुरु सदैव अपने शिष्यों पर कृपा ही बरसाते है। आषाढ़ी पूर्णिमा 19 जुलाई को है। स दिन को देशभर में गुरु की पूजा करके मनाया जाता है। कहा जाता है कि इस पूर्णिमा दिन गुरु का पूजन करने से शिष्यों को मनचाहा फल मिलता है। महर्षि वेद व्यास, जो चारों वेदों के पहले ज्ञात थे। उनके पूजन का दिन है 19 जुलाई। इस दिन गुरू ही नहीं अपने बड़ों की पूजा और सम्मान का भी विधान है।
हमें जो अध्यात्मिक ज्ञान वेदों से मिलता है, उसके ज्ञाता वेदव्यासजी है। वे किसी एक नहीं सबके आदिगुरु है और उनको साक्षात भगवान का प्रतिरुप माना जाता है। इसीलिए इस दिन को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है। इस दिन अपने गुरुओं को व्यासजी का अंश मानकर उनकी पाद-पूजा करनी चाहिए और अपने उज्ज्वल भविष्य के लिए गुरु का आशीर्वाद जरूर ग्रहण करना चाहिए।
आप जिसको भी अपना दिशावाहक मानते हो, उनकी पूजा करें। पूजा में रोली से गुरु को तिलक करें। यदि संभव हो तो पीले पुष्प अर्पित करें, पिले फूल न मिले तो किसी अन्य फूल को गुरु के चरणों में अर्पित करें और आरती करें और जो भी संभव हो सके दक्षिणा दे। इस तरह आपकी मनोकामनाओं की पूर्ति होगी।
इसके अलावा सुबह घर की सफाई, स्नानादि नित्य कर्म से निवृत्त होकर साफ-सुथरे वस्त्र धारण करके तैयार हो जाएं। घर के किसी पवित्र स्थान पर पटिए पर सफेद वस्त्र बिछाकर उस पर 12-12 रेखाएं बनाकर व्यास-पीठ बनाना चाहिए। फिर गुरु परंपरा सिद्धयर्थं व्यासपूजां करिष्ये मंत्र से पूजा का संकल्प लेना चाहिए। उसके बाद दसों दिशाओं में अक्षत छोड़ना चाहिए। फिर व्यासजी, ब्रह्माजी, शुकदेवजी, गोविंद स्वामीजी और शंकराचार्यजी के नाम, मंत्र से पूजा का आवाहन करना चाहिए। अब अपने गुरु और उनके चित्र की पूजा करके उन्हें यथायोग्य दक्षिणा देना चाहिए।