शुरु हो गया होलाष्टक, भूल कर भी इन 8 दिनों में ना करें कोई शुभ काम

Update:2017-03-06 15:21 IST

लखनऊ: होली पर्व को मनाने के लिए अब केवल दस दिन का समय ही शेष रह गया है। इसी के साथ आगामी 5 मार्च से होलाष्टक प्रारंभ हो जाएगा। पौराणिक मान्यता के अनुसार होलाष्टक यानि होली का रंग खेलने तक कुछ कार्यों को नहीं करना चाहिए। इन्हें करने से मानव को केवल हानि का सामना ही करना पड़ता है। इन आठ दिनों के लिए सभी तरह के संस्कार पूरी तरह से बंद हो गए हैं।

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होलाष्टक के मध्य दिनों में 16 संस्कारों में से किसी भी संस्कार को नहीं किया जाता है, यहां तक की अंतिम संस्कार करने से पूर्व भी शांति कार्य किये जाते है। इन दिनों में 16 संस्कारों पर रोक होने का कारण इस अवधि को शुभ नहीं माना जाता है। सोलह संस्कारों गर्धाभान संस्कार, अन्न प्रासन और अंमित संस्कार आते हैं। इसके अलावा विवाह आदि इन 8दिनों में नहीं होते हैं। होलाष्टक मुख्य रुप से उत्तर भारत में मनाया जाता है। कुछ कार्य ऐसे कार्य भी हैं जिन्हें इस दिन से नहीं किया जाता है। यह निषेध अवधि होलाष्टक (5 मार्च ) के दिन से लेकर होलिका दहन के दिन तक रहती है। होली दहन होने तक कोई भी शुभ कार्य इस अवधि में नहीं होता है। ऐसा कोई कार्य करने वाले मनुष्य को हानि का सामना करना पड़ सकता है। यह हानि किसी भी रुप में हो सकती है।

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ज्योतिषाचार्य आचार्य सागर महाराज ने बताया कि फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से लेकर पूर्णिमा तक होलाष्टक रहता है। होलाष्टक के विषय में यह माना जाता है कि जब भगवान शंकर ने क्रोध में आकर कामदेव को भस्म कर दिया था, तो उस दिन से होलाष्टक की शुरुआत हुई थी।

होलाष्टक से जुडी मान्यताओं को भारत के कुछ भागों में ही माना जाता है। इन मान्यताओं का विचार सबसे अधिक पंजाब में देखने में आता है। यहां होली के रंगों की तरह होली को मनाने का ढंग में विभिन्न है। होली उत्तर प्रदेश, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, तमिलनाडू, गुजरात, महाराष्ट्र, उड़ीसा, गोवा आदि में अलग ढंग से मनाने की परंपरा है।

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फाल्गुन मास की पूर्णिमा को होलिका पर्व मनाया जाता है, होली की शुरुआत होलाष्टक से प्रारंभ होकर धुलहेडी तक रहती है। इसके कारण प्रकृति में खुशी और उत्सव का माहौल रहता है। 5 मार्च से 13 मार्च, 2017 के मध्य की अवधि होलाष्टक पर्व की रहेगी, होलाष्टक के दिन से होली उत्सव के साथ-साथ होलिका दहन की तैयारियां भी शुरु हो जाती है।

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होलिका पूजन करने के लिये होली से आठ दिन पहले होलिका दहन वाले स्थान को गंगाजल से शुद्ध कर उसमें सूखे उपले, सूखी लकड़ी व होली का डंडा स्थापित कर दिया जाता है। जिस दिन यह कार्य किया जाता है, उस दिन को होलाष्टक प्रारंभ का दिन भी कहा जाता है। होली का डंडा स्थापित होने के बाद से होलिका दहन होने तक कोई शुभ कार्य संपन्न नहीं किया जाता है।

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