इस्लाम में सूदखोरी है हराम, इसमें लेन-देन दोनों की है मनाही, क्या आपको पता है?

Update: 2016-09-28 08:10 GMT

लखनऊ: इकोनॉमिक्स में भले ही ब्याज (सूद) को मूलधन, शुल्क या कुछ और माने, लेकिन इस्लाम धर्म में ब्याज लेना हराम माना गया है। इस्लाम के अनुसार सूद एक ऐसी व्यवस्था है जो अमीर को और अमीर बनाती है, गरीब को और ज्यादा गरीब।

सूद से बढ़ता शोषण

इस प्रकार ये शोषण का जरिया है, जिसे लागू करने से इंसानों को बचना चाहिए। इस्लाम सूद को किसी भी रूप में स्वीकार नहीं करता। पवित्र कुरआन साफ-साफ सूद लेने की मनाही है।

कुरआन में मनाही

कुरआन में मुसलमानों के लिए कहा गया है कि दो गुना और चार गुना करके सूद नहीं लिया जाना चाहिए। ऐसा करने से पहले अल्लाह से डरना चाहिए। सूद खाने से बरकत खत्म हो जाती है।

मुहम्मद साहब के संदेश के बाद सूद बंद

मुहम्मद साहब के संदेश से पहले अरब निवासियों में सूद की प्रथा बहु बड़े पैमाने पर प्रचलित थी। इससे अमीरों का तो फायदा था, लेकिन गरीब इसकी बेरहम मार से बच नहीं पाते थे। मुहम्मद साहब ने स्वयं गरीबी में जीवन बिताया था और उन्होंने इस प्रथा से कई लोगों को कष्ट उठाते देखा था।

इसलिए कुरआन के जरिए संदेश दिया है कि जो लोग सूद लेना लेना बंद कर देंगे, वो अल्लाह के प्यारे होंगे, लेकिन तमाम जानकारी के बाद भी जो नहीं संभले, जिसने सूद लेना जारी रखा, उसके लिए आगे का जीवन कष्टप्रद होगा और कोई मुक्ति नहीं मिलेगी।

कुरआन में क्या लिखा है

कुरआन में साफ कहा गया है-अल्लाह से डरो और जो कुछ भी ब्याज में से शेष रह गया है, उसे छोड़ दो, यदि तुम सच्चे दिल से ईमान रखते हो। तब धैर्य बनाए रखो, बुरे तरीके मत अपनाओ। अल्लाह से डरते हुए, उसकी नाफरमानी से बचते हुए सही, जायज, हलाल तरीके अपनाओ। हराम रोजी के करीब भी मत जाओ।

भविष्य बताना भी मना है

देवबंद दारुल ऊलूम के जरिए बताया गया कि इस्लाम में किसी का भविष्य बताने की मनाही है। अगर कोई मुसलमान हस्त-ज्योतिष या भविष्य बताता है तो उसकी 40 दिन की नमाज कबूल नहीं की जाएगी। शरियत में कहा गया है कि सिर्फ अल्लाह ही बता सकते है कि कौन आया है कौन कब जाएगा और किसी को हक नहीं है।

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