लखनऊ: हमारा देश परंपराओं का देश है, यहां हर चार कदम पर परंपराएं बदलती रहती हैं और कुछ परंपराएं अच्छी लगती है तो कुछ अपनी पेचीदगी छोड़ती हैं। आज हम बात कर रहे हैं विधवाओं के लिए बनाई परंपरा और नियम-कायदे कानून के बारे में।
वैसे तो समय के साथ सबकी जिंदगी में बदलाव आते है पर औरत की जिंदगी में जो बदलाव आते है उसे ताउम्र झेलना पड़ता है। खासकर शादी के बाद। शादी के बाद एक औरत की लाइफ पूरी तरह बदल जाती है। पति उसके लिए परमेश्वर हो जाता है। पति के रहते हुए उसे सोलह श्रृंगार का हक है। पर पति के जाते ही एक औरत की दुनिया वीरान हो जाती है और परंपराओं के नाम पर उसे सादगीभरा जीवन जीना पड़ता है।
अजीब सा दस्तूर
हमारे समाज में सदियों से अजीब सी परंपरा चली आ रही है। अगर किसी महिला का पति चला जाए तो उस महिला की जिंदगी बेरंग हो जाती है। उसे वनवास की जिंदगी जीना पड़ता है। हालांकि वक्त बदल चुका है, आज देश में विधवाओं को सम्मान दिया जा रहा है, उन्हें आजादी मिल रही है और कई जगहों पर पुनर्विवाह भी हो रहा है लेकिन अभी भी पूरी तस्वीर बदलने में वक्त लगेगा।
शास्त्रों में विधवाओं की दोबारा शादी करने का प्रावधान नहीं है। इसलिए उनके लिए कुछ नियम बनाए गए हैं जिसके पीछे कई ठोस कारण हैं। शास्त्रों के मुताबिक पति को परमेश्वर कहा जाता है और ऐसे में अगर परमेश्वर का जीवन समाप्त हो जाता है तो महिलाओं को भी संसार की माया-मोह छोड़कर भगवान में मन लगाना चाहिए।
एकाग्रता बरकरार रहती है
महिलाओं का ध्यान ना भटके इसलिए उन्हें सफेद कपड़े पहनने को कहा जाता है क्योंकि रंगीन कपड़े इंसान को भौतिक सुखों के बारे में बताते हैं ऐसे में महिला का पति साथ नहीं होने पर महिलाएं कैसे उन चीजों की भरपाई करेगी। इसी बात से बचने के लिए विधवाओं को सफेद कपड़े पहनने को कहा जाता है।
सात्विक भोजन
विधवाओं को साफ सात्विक भोजन करने को कहा जाता है, उनको तला-भूना, मांस-मछली खाने से रोका जाता है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इस तरह के भोजन इंसान की काम भावनाओं को बढ़ाते हैं ।इसलिए उन्हें इस तरह से भोजन करने नहीं दिया जाता है।
अब लोगों की सोच बदल रही है इसी कारण आज विधवाओं को भी समाज में बराबरी का सम्मान दिया जा रहा है। कोई जरूरी नहीं कि हर नियम कानून से लोगों का फायदा हो।आज समाज का स्वरुप बदल रहा है। विधवाएं रंगीन वस्त्र भी पहन रही है और शादी भी कर रही हैं।