शनि का ये भाव आपको करेगा बदनाम, देखिए आपकी कुंडली में है वो स्थान

Update:2017-05-06 11:30 IST

लखनऊ: कभी-कभी कुछ काम होते होते रह जाता है।अगर सोचे हुए कार्य भी पूरे होते है पर आलस्य का भाव इस अवधि के फलों को अशुभ कर सकता है। ये सब निर्भर होता है शनि के खुश और नाखुश होने पर। शनि रहस्यमयी देवता हैं। शनि व्यक्ति के लिए दुख और सुख दोनों के प्रतीक है। हम अपनी जन्मकुंडली के आधार पर जान सकते हैं कि किस भाव में शनि के होने से क्या फल मिलता है।

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प्रथम भाव में शनि

किसी व्यक्ति की कुंडली में गोचरवश जब शनि जन्म राशि अर्थात प्रथम भाव में हो तो इस अवधि को शनि सोने का पाया कहा जाता है। सोने के पाये में शनि व्यक्ति के स्वास्थ्य सुख में वृ्द्धि करता है। व्यक्ति को संतान से कष्ट हो सकता है। व्यक्ति के रुके हुए कार्य पूरे होने होते है। व्यक्ति को व्यापारिक कार्यो से लाभ प्राप्त होते है। लेकिन शिक्षा क्षेत्र में बाधाएं बनी रहती है।

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दूसरे भाव में शनि

जन्म राशि से शनि जब दूसरे भाव में होते है। तो गोचर की इस अवधि को शनि का चांदी का पाया कहा जाता है। शनि रजत पाया के समय में व्यक्ति को कार्यो में सफलता प्राप्त होती है। शनि के प्रभाव से व्यक्ति को व्यापार में लाभ प्राप्त होने की सम्भावनाएं बनती है। उसे भूमि व जायदाद के विषयों से लाभ प्राप्त हो सकते है। और इस अवधि में व्यक्ति को संबंधियों से मिलने के अवसर प्राप्त होते है। सम्मान प्राप्ति की संभावनाएं बनती है।

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तीसरे भाव में शनि

शनि के ताम्रपाद अवधि में व्यक्ति को धर्म के कार्यो में रुचि हती है। उच्च शिक्षा की संभावनाएं बनती है। तथा व्यक्ति मेहनत से अपने व्यापार में वृ्द्धि करने में सफल होता है। अपने साहस व पराक्रम से उसे अपने शत्रुओं को पराजित करने में सफलता प्राप्त होती है। पर यह अवधि व्यक्ति के वैवाहिक जीवन के लिये अनुकुल नहीं रहती है। आय में बढोतरी के योग बनते है। पर दुर्घटनाएं भी हो सकती है।

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चौथे भाव में शनि

शनि के लोहे के पाये की अवधि में व्यक्ति के कार्यो में बाधाएं आ सकती है। व्यक्ति को आजिविका में बदलाव करना पड सकता है। व्यापार में हानि के योग बनते है। इस अवधि में व्यक्ति के मानसिक तनाव बढने की संभावनाएं बनती है। पारिवारिक कलह के कारण व्यक्ति चिन्ताग्रस्त रह सकता है। शनि के अशुभ प्रभाव से व्यक्ति की मान-हानि हो सकती है। आय के लिये यह अवधि शुभ रहता है।

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पांचवे भाव में शनि

व्यापार में वृ्द्धि हो सकती है। व्यक्ति के घर में मंगलकार्य होने की संभावनाएं बनती है। व्यक्ति को इस अवधि में शुभ फल अधिक प्राप्त होते है। प्रतियोगियों को परास्त करने में व्यक्ति सफल रहता है। पर दांम्पत्य जीवन के सुख में कमी हो सकती है।

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छठे भाव में शनि

छठे भाव की अवधि में शनि का गोचर स्वर्ण पाये में होने के कारण यह अवधि व्यक्ति के लिये शुभ फल देने वाली होती है। इस समय में व्यक्ति के मान-सम्मान में बढोतरी हो सकती है। धन लाभ के योग बनते है। जमीन- जायदाद में वृ्द्धि की संभावनाएं बनती है।

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सप्तम भाव में शनि

जब शनि का गोचर व्यक्ति की जन्म राशि से सांतवें भाव पर हो रहा होता है। तो व्यक्ति की भौतिक सुख - सुविधाओं के बढने की संभावनाएं बनती है। पर इसके साथ ही व्यक्ति के मानसिक तनावों में भी बढोतरी हो सकती है। जीवन साथी के स्वास्थ्य में कमी हो सकती है।

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आठवें भाव में शनि

शनि लोहे पाया अवधि व्यक्ति के कष्टों में बढोतरी कर सकती है। परिवार से भी मतभेद की संभावनाएं बनती है। असमय होने वाली घटनाएं व्यक्ति की परेशानियां बढा सकती है। सम्मान में कमी हो सकती है। तथा ऋण लेने पड सकते है।

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नवें भाव में शनि

इस अवधि में व्यक्ति को शुभ फल प्राप्त होते है। धन वृ्द्धि होती है। आय अधिक हो सकती है। पर शत्रुओं में कमी होती है।

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दशवें भाव में शनि

जन्म राशि से दशम भाव में शनि गोचर ताम्र पाया कहलाता है। इस समय में व्यक्ति को प्रयास के अनुरुप सफलता प्राप्ति कि संम्भावनाएं बनती है। सोचे हुए कार्य भी पूरे होते है। पर इस अवधि में व्यक्ति को अपने जीवन लक्ष्यों के प्रति कार्यशील रहना चाहिए। आलस्य का भाव इस अवधि के फलों को अशुभ कर सकता है।

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ग्यारहवें भाव में शनि

बहुत ही शुभ फल मिलने के योग बनते है। धन में वृ्द्धि होती है। प्रतिष्ठा में भी वृ्द्धि हो सकती है।

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बारहवें भाव में शनि

संबंधियों से संबंध खराब हो सकते है। धन के व्यय अधिक हो सकते हैं। व्यक्ति पर झूठे आरोप लग सकते हैं। मन में चंचलता का भाव हो सकता है। यात्राएं करने के अवसर प्राप्त हो सकते है।

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