जयपुर:मान्यता है कि सूर्य कन्या राशि में आने पर पितर परलोक से उतरकर कुछ समय के लिए पृथ्वी पर अपने पुत्र-पौत्रों के पास आते हैं। पुराणों के अनुसार यमराज हर साल श्राद्ध पक्ष में सभी जीवों को मुक्त कर देते हैं, जिससे वह अपने स्वजनों के पास जाकर तर्पण ग्रहण कर सकते हैं। पितृदोष होने से अनेक प्रकार की परेशानियां उठानी पड़ती हैं।
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पिता, दादा एवं परदादा को तीन देवताओं के समान माना जाता है। श्राद्ध के समय यही अन्य सभी पूर्वजों के प्रतिनिधि माने जाते हैं। पितरों को आहार और अपनी श्रद्धा पहुंचाने का एकमात्र साधन श्राद्ध है। यदि घर में रहने वाले लोग बार-बार दुर्घटनाओं का शिकार होते हैं या घर में कलह, अशांति बनी रहती है। रोग पीछा नहीं छोड़ते हैं या आपसी मतभेद बने रहते हैं। बनते हुए कार्यों में बाधाएं आती हैं। संतान प्राप्ति में विलंब होता है या घर में आय की अपेक्षा खर्च बहुत अधिक होता है तो माना जाता है कि उस घर में पितृदोष है।
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पितृदोष दूर करने के लिए घर में गीता पाठ कराएं। प्रत्येक अमावस्या ब्राह्मण को भोजन अवश्य कराएं। भोज में पूर्वजों की मनपसंद वस्तुएं बनाएं। खीर बनाएं। घर में वर्ष में एक दो-बार हवन अवश्य कराएं। पानी में पितृ का वास माना गया है और पीने के पानी के स्थान पर उनके नाम का दीपक जलाएं। सुबह-शाम परिवार के सभी लोग मिलकर सामूहिक आरती करें। माह में एक या दो बार उपवास रखें। श्राद्धपक्ष में पीपल वृक्ष पर अक्षत, तिल व फूल चढ़ाकर पूजा करें।