लखनऊ: दीवाली का त्योहार आने में अब कुछ दिन ही शेष रह गए हैं। ज्यादातर घरों में सफाई का काम पूरा हो गया होगा। जो थोड़ा बहुत बच गया उसे आप नरक चतुर्दशी के दिन कर लें। दीवाली पर सफाई के अलावा भी बहुत से काम होते हैं। जैसे शॉपिंग, पूजा और स्वादिष्ट भोजन, और इन सबकी तैयारी भी पहले से ही की जाती है। सबसे पहले दीवाली के दिन होने वाली पूजा के बारे में बाद करते हैं कि कैसे करें महालक्ष्मी की पूजा और क्यों नहीं करते इस दिन भगवान विष्णु के साथ लक्ष्मी का पूजन।
सबको पता है कि महालक्ष्मी, भगवान विष्णु की अर्द्धांगिनी हैं। यदि धन की देवी को प्रसन्न करना है तो उनके पति विष्णु जी का उनके साथ पूजन करना आवश्यक है। शास्त्रों के अनुसार महालक्ष्मी भगवान विष्णु का साथ कभी नहीं छोड़तीं। वेदों के अनुसार भी भगवान विष्णु के हर अवतार में महालक्ष्मी ही नकी पत्नी बनी हैं। परंतु फिर भी दीवाली पर लक्ष्मी जी के साथ गणेश का पूजन करते है। भगवान विष्णु का नहीं ।
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रात्रि में करें लक्ष्मी पूजन
महालक्ष्मी संग गणपति का पूजन दीपावली कि रात्रि को किया जाता है। सनातन धर्म में दीपावली के पर्व को अत्यंत महत्ता दी गई है। इस दिन सभी लोग अपने-अपने घरों को साफ-सुथरा करके, स्वयं भी शुद्ध पवित्र होकर रात्रि को विधि-विधान से गणेश लक्ष्मी का पूजन कर उनको प्रसन्न करते हैं। इस पूजा में यदि हम चाहते हैं कि महालक्ष्मी का स्थाई निवास हमारे घर में हो और उनकी कृपा हम पर सदा बनी रहे तो उनके पति विष्णु जी का आह्वान करना चाहिए, लेकिन फिर भी विष्णु के स्थान पर गणेश को पूजा जाता है, ऐसा क्यों ?
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लक्ष्मी संग मानसपुत्र गणेश पूजन
धार्मिक मान्यता के अनुसार गणपति को महालक्ष्मी का मानस-पुत्र माना गया है। दीपावली के शुभ अवसर पर ही इन दोनों का पूजन किया जाता है। क्योंकि मां लक्ष्मी धन की देवी है उनकी पूजा से ऐश्वर्य प्राप्त होती है। लेकिन मां लक्ष्मी चंचल होती है और वे स्थेर नहीं रहती ।इसलिए साथ में गणेश का पूजन करते है कि गणेश जी बुद्धि के देवता है और वो धन को स्थाई रुप से रखने में हमारी बुद्धिबल से मदद करते हैं।
दीपावली पर लक्ष्मी-गणेश पूजन के पीछे यही वजह है कि मां लक्ष्मी अपने प्रिय पुत्र की भांति ही हमारी भी सदैव रक्षा करें। हमें भी उनका स्नेह और आशीर्वाद मिलता रहे। महालक्ष्मी के साथ गणेश पूजन में इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि लक्ष्मी जी क गणेशजी के दाईं ओर ही रखें। क्योंकि धर्मग्रंथों में सिर्फ पत्नी ही बाईं ओर रह सकती है। इसलिए महालक्ष्मी सदा गणपति के दाहिनी ओर रखने से पूजा का पूर्ण फल प्राप्त होता है।