पितृभक्त थे भगवान परशुराम, किया था धरती से क्षत्रियों का सफाया

Update:2016-05-09 11:21 IST

लखनऊ: परशुराम अपने पिता जमदग्नि के परम भक्त थे। वे उन्हें परमात्मा मानकर उनका सम्मान किया करते थे। जमदाग्नि बहुत बड़े योगी थे। उन्होंने योग से सिद्धियां प्राप्त की थीं। सवेरे का समय था, जमदाग्नि की पूजा का समय हो गया था। परशुराम की मां रेणुका जमदग्नि के स्नान के लिए जल लाने के लिए सरोवर पर गईं। संयोग की बात, उस समय एक यक्ष सरोवर में कुछ यक्षणियों के साथ जल-विहार कर रहा था।

रेणुका सरोवर के तट पर खड़ी होकर यक्ष के जल-विहार को देखने लगीं। वे उसके जल विहार को देखने में इस प्रकार तन्मय हो गईं कि ये बात भूल गईं, कि उसके पति के नहाने का समय हो गया है और उन्हें शीघ्र जल लेकर जाना चाहिए। कुछ देर के पश्चात रेणुका को अपने कर्तव्य का बोध हुआ। वे घड़े में जल लेकर आश्रम में गईं। घड़े को रखकर जमदग्नि से क्षमा मांगने लगीं। जमदग्नि ने अपनी योग दृष्टि से ये बात जान ली कि रेणुका को जल लेकर आने में देर क्यों हुईं।

जमदाग्नि क्रोधित हो उठे। उन्होंने अपने पुत्रों को आज्ञा दी कि रेणुका का सिर काटकर धरती पर फेंक दें। किंतु परशुराम को छोड़कर किसी ने भी उनकी आज्ञा का पालन नहीं किया। परशुराम ने पिता की आज्ञानुसार अपनी मां का मस्तक तो काट ही दिया, अपने भाइयों का भी मस्तक काट दिया। जमदग्नि परशुराम के आज्ञापालन से उन पर बहुत प्रसन्न हुए।

उन्होंने उनसे वर मांगने को कहा। परशुराम ने निवेदन किया, पितृश्रेष्ठ, यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं, तो मेरी मां और मेरे भाइयों को जीवित कर दें। परशुराम की मां और उनके भाई पुन: जीवित हो गए।

सहस्रबाहु अर्जुन उसके हजारों सैनिकों का संहार फरसे

सहस्रबाहु का मूल नाम कार्तवीर्य अर्जुन था। वो बड़ा प्रतापी और शूरवीर था। उसने अपने गुरु दत्तात्रेय को प्रसन्न करके वरदान के रूप में उनसे हजार भुजाएं प्राप्त की थीं। हजार भुजाएं होने के कारण ही कार्तवीर्य अर्जुन सहस्रबाहु के नाम से भी जाना गया था।

एक बार सहस्रबाहु उस वन में आखेट के लिए गया, जिस वन में परशुराम के पिता जमदग्नि का आश्रम था। सहस्रबाहु अपने सैनिकों के साथ उनके आश्रम में उपस्थित हुआ। जमदग्नि ने अपनी गाय कामधेनु की सहायता से सहस्रबाहु और उसके सैनिकों का राजसी स्वागत किया और उनके खान-पान का प्रबंध किया।

कामधेनु के लोभ में सहस्त्रबाहु की हुई मौत

कामधेनु का चमत्कार देखकर सहस्त्रबाहु उस पर मुग्ध हो गया। उसने जमदग्नि से कहा कि वे अपनी गाय उसे दे दें, किंतु जमदग्नि ने कामधेनु को देने से इनकार कर दिया। उनके इनकार करने पर सहस्त्रबाहु ने अपने सैनिकों को आदेश दिया कि वे कामधेनु को बलपूर्वक अपने साथ ले चलें। सहस्त्रबाहु कामधेनु को अपने साथ ले गया। उस समय आश्रम में परशुराम नहीं थे।

परशुराम जब आश्रम में आए, तो उनके पिता जमदग्नि ने उन्हें बताया कि किस प्रकार सहस्रबाहु अपने सैनिकों के साथ आश्रम में आया था और किस प्रकार वह कामधेनु को बलपूर्वक अपने साथ ले गया। घटना सुनकर परशुराम क्रोध हो उठे। वे कंधे पर अपना परशु रखकर माहिष्मती की ओर चल पड़े।

सहस्रबाहुमाहिष्मती में ही निवास करता था। सहस्रबाहु अभी मार्ग में ही था कि परशुराम उसके पास जा पहुंचे। सहस्रबाहु ने जब यह देखा के परशुराम प्रचंड गति से चले आ रहे हैं, तो उसने उनका सामना करने के लिए अपनी सेनाएं खड़ी कर दीं। एक ओर हजारों सैनिक थे, दूसरी ओर अकेले परशुराम थे, घोर संग्राम होने लगा। परशुराम ने अकेले ही सहस्रबाहुके समस्त सैनिकों को मृत्यु के मुख में पहुंचा दिया।

जब सहस्रबाहु की संपूर्ण सेना नष्ट हो गई, तो वह स्वयं रण के मैदान में उतरा। वह अपने हजार हाथों से हजार बाण एक ही साथ परशुराम पर छोड़ने लगा। परशुराम उसके समस्त बाणों को दो हाथों से ही नष्ट करने लगे। जब बाणों का कुछ भी प्रभाव नहीं पड़ा, तो सहस्रबाहु एक बड़ा वृक्ष उखाड़कर उसे हाथ में लेकर परशुराम की ओर झपटा। परशुराम ने अपने बाणों से वृक्ष को तो खंड-खंड कर ही दिया, सहस्रबाहु के मस्तक को भी काटकर पृथ्वी पर गिरा दिया।

कई बार किया क्षत्रियविहीन धरती

सहस्रबाहु के पुत्रो ने अपने पिता की मौत का बदला लेने के लिए परशुराम के पिता का वध कर दिया तो उन्होंने क्रोध में आकर उसके पुत्रों का वध तो किया है। साथ क्षत्रियों को सबक सिखाने के लिए 21 बार धरती को क्षत्रियविहीन कर दिया।

चिरंजीव हैं परशुराम

पौराणिक ग्रंथों के अनुसार अच्छे काम करने से चिरंजीव हुए सात महामानवों में परशुराम भी हैं। अश्वत्थामा, हनुमान, विभीषण, मार्कण्डेय, व्यास की तरह परशुराम भी चिरंजीव हैं। भगवान विष्णु के 10 अवतारों में से वह 6वें अवतार हैं। परशुराम शिव के परम भक्त थे। इनका नाम तो राम था, किन्तु शिव द्वारा प्रदत्त अमोघ परशु को सदैव धारण किए रहने के कारण ये परशुराम कहलाते थे। कहते हैं कि उनका जन्म उत्तर प्रदेश के बलिया के खैराडीह में अक्षय तृतीया को हुआ था।

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