यहां कई सालों से जल रही ज्योति, मां पार्वती व शिव के विवाह का है प्रमाण

Update:2018-02-14 09:54 IST

जयपुर:महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव और पार्वती का विवाह हुआ था। इसलिए महाशिवरात्रि पर्व को भगवान शिव की विवाह वर्षगांठ के रूप में मनाया जाता है। देवाधिदेव शिवजी की शादी की कथाएं अगल-अलग ग्रंथों में प्रचलित है। शिव-विवाह के प्रसंग में ऐसी मान्यता है कि भगवान शंकर ने हिमालय के मंदाकिनी स्थित त्रियुगीनारायण में माता पार्वती से विवाह किया था। शिव और पार्वती के विवाह का प्रमाण है कि यहां त्रेतायुग से ही अग्नि की ज्योति निरंतर जल रही है। ऐसा कहा जाता है कि इस इस अखंड अग्नि को साक्षी मानकार विवाह के फेरे लिए थे। त्रियुगी नारायण रुद्रप्रयाग में अवस्थित एक पवित्र स्थान है। माना जाता है कि जब भवगवान शिव में माता पार्वती से विवाह किया था तब यह क्षेत्र हिमावत की राजधानी थी। आज भी इस स्थान पर पूरे देश से शिव भक्त संतान प्राप्ति के लिए पहुंचते हैं। यहां हर साल अश्विन मास की बावन द्वादशी के दिन मेले का आयोजन किया जाता है।

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ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए त्रियुगीनारायण मंदिर के सामने स्थित गौरी कुंड कहे जाने वाले स्थान माता पार्वती ने तपस्या की थी। जिसके बाद भोलेनाथ माता पार्वती से इसी मंदिर में विवाह किया था। कहा जाता है कि विवाह मंडप स्थित उस हवन कुंड आज भी अग्नि जल रही है।

शिव पुराण के अनुसार सीता पर्वतराज हिमालय की पुत्री थी। पर्वत के रूप में सती का पुनर्जन्म हुआ था। माता पार्वती ने त्रियुगीनारायण से पांच किलोमीटर दूर गौरी कुंड में कठिन ध्यान और साधना से शिव का मन जीत लिया था। इसलिए इस स्थान की पौराणिक मान्यता भी अत्यधिक है। जब शिव भक्त त्रियुगीनारायण दर्शन को जाते हैं तो वे गौरी कुंड के भी दर्शन करते हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार शिव ने पार्वती के समक्ष केदारनाथ के मार्ग में पड़ने वाले स्थान गुप्तकाशी में विवाह का प्रस्ताव रखा था। किसके बाद शिव और पार्वती का विवाह त्रियुगीनारायण कस्बे में मंदाकिनी सोन गंगा के मिलन स्थल पर संपन्न हुआ। एक अन्य कथा के अनुसार त्रियुगीनारायण हिमावत की राजधानी थी। यहां शिव-पार्वती के विवाह में विष्णु ने पार्वती के भाई के रूप में रीति-रिवाज का पालन किया था। जबकि ब्रह्मा इस विवाह में पुरोहित बने थे। शिव-पार्वती के विवाह में संत-महात्माओं ने भी भाग लिया था। विवाह स्थल के नियत स्थान को ब्रहम शिला कहा जाता है जो मंदिर के ठीक सामने अवस्थित है। इस मंदिर के महात्म्य का उल्लेख पुराणों में भी किया गया है। इस मंदिर का दर्शन जो भी करते हैं वे यहां प्रज्जवलित अखंड ज्योति की भभूत अपने साथ अवश्य अपने साथ लाते हैं। मान्यता है कि इस भभूत को लगाने से शिव-पार्वती का साक्षात् आशीर्वाद प्राप्त होता है। साथ ही वैवाहिक जीवन भी मंगलमय रहता है।

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