ASTRO: क्या आप जानते हैं बसौड़ा क्यों मनाया जाता है, इस दिन देवी के किस रुप की होती है पूजा?

Update:2017-03-18 11:06 IST

लखनऊ: मां शीतला, मां दुर्गा का ही एक रूप हैं। शीतला मां की पूजा आराधना करने से चेचक, खसरा आदि रोगों का प्रकोप नहीं फैलता है। माता शीतला, बच्चों की रक्षक हैं तथा रोग दूर करती हैं। पौराणिक काल में चेचक की बीमारी महामारी के रूप में फैलती थी। उस समय ऋषियों ने देवी की उपासना और साफ-सफाई के महत्व को बताया। इस लिए शीतला अष्टमी के के दिन मां का त्योहार मनाया जाता है।

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उत्तर भारत में शीतलाष्टमी का त्योहार, बसौड़ा के नाम से प्रसिद्ध है। शीतलाष्टमी के एक दिन पहले माता को भोग लगाने के लिए बासी खाने का भोग तैयार किया जाता है। अष्टमी के दिन बासी खाना ही देवी मां को नैवेद्य के रूप में समर्पित किए जाते हैं। शीतलाष्टमी पर ठंडे और बासी व्यंजनों से माता शीतला को भोग लगाया जाता है। शीतला माता की पूजा के बाद पथवारी की पूजा की जाती है।

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इस दिन सिर नहीं धोते, सिलाई नहीं करते, सुई नहीं पिरोते, चक्की या चरखा नहीं चलाते हैं। शीतला माता की पूजा के दिन घर में चूल्हा नहीं जलता है। शीतला मां सद्बुद्धि, स्वास्थ्य, स्वच्छता का संदेश देने वाली देवी हैं। शीतला माता अपने हाथों में कलश, सूप, मार्जन (झाडू) और नीम के पत्ते धारण करती हैं।

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हाथ में मार्जन होने का अर्थ है कि हम लोगों को भी सफाई के प्रति जागरूक होना चाहिए। कलश से तात्पर्य है कि स्वच्छता रहने पर ही स्वास्थ्य मिलता है। चेचक का रोगी व्यग्रता में वस्त्र उतार देता है। सूप से रोगी को हवा की जाती है, झाडू से चेचक के फोड़े फट जाते हैं। नीम के पत्ते फोड़ों को सड़ने नहीं देते। रोगी को ठंडा जल प्रिय होता है, यही कलश का महत्व है।

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