अहिंसा को अपनाओ, जियो और जीने दो का संदेश दिया था महावीर स्वामी ने

Update:2016-04-18 18:02 IST

लखनऊ: भगवान महावीर के जन्मदिन को महावीर जयंती के रूप में मनाया जाता है। इस बार महावीर जयंती 19 अप्रैल 2016, के दिन मनाई जा रही है। वर्धमान महावीर जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर थे। इनका जीवन काल 511-527 ईस्वी ईसा पूर्व तक माना जाता है।इनका जन्म एक क्षत्रिय राजकुमार के रूप में चैत्र शुक्लपक्ष त्रयोदशी को बसोकुंड में हुआ था। इनके बचपन का नाम वर्धमान था ये लिच्छवी कुल के राजा सिद्दार्थ और रानी त्रिशला के पुत्र थे। संसार को ज्ञान का संदेश देने वाले भगवान महावीर जी ने अपने काम से सभी का कल्याण करते रहे।

कम उम्र में छोड़ा घर

30साल की उम्र में इन्होंने घर-बार छोड़ दिया और कठोर तपस्या द्वारा कैवल्य ज्ञान प्राप्त की। महावीर ने पार्श्वनाथ के आरंभ किए तत्वज्ञान को परिभाषित करके जैन दर्शन को स्थायी आधार दिया। महावीर स्वामी जी ने श्रद्धा और विश्वास द्वारा जैन धर्म की पुन: प्रतिष्ठा स्थापित की और आधुनिक काल में जैन धर्म की व्यापकता और उसके दर्शन का श्रेय महावीर स्वामी को जाता है। इन्हें अनेक नामों से पुकारा जाता हैं-अर्हत, जिन, निर्ग्रथ, महावीर, अतिवीर इत्यादि ।

जैन श्रद्धालु इस पावन दिवस को महावीर जयंती के रूप में परंपरागत तरीके से हर्षोल्लास और श्रद्धाभक्ति पूर्वक मनाते आ रहे हैं। जैन धर्म के धर्मावलंबियों का मानना है कि महावीरजी ने घोर तपस्या द्वारा अपनी इन्द्रियों पर विजय प्राप्त कर ली थी जिस कारण वह विजेता और उनको महावीर कहा गया और उनके अनुयायी जैन कहलाए।

ऐसे मनाते है महावीर जयंती

तप से जीवन पर विजय प्राप्त करने का पर्व महावीर जयंती के रूप में मनाया जाता है। श्रद्धालु मंदिरों में भगवान महावीर की मूर्ति को विशेष स्नान कराते हैं, जो कि अभिषेक कहलाता है। तदुपरांत भगवान की मूर्ति को सिंहासन और रथ पर बिठा कर उत्साह और हर्षोउल्लास पूर्वक जुलूस निकालते हैं, जिसमें बड़ी संख्या में जैन धर्मावलम्बी शामिल होते हैं। इस सुअवसर पर जैन श्रद्धालु भगवान को फल, चावल, जल, सुगन्धित द्रव्य आदि वस्तुएं अर्पित करते।

महावीरजी जैन धर्म के अंतिम तीर्थंकर है। चैत्र शुक्ल की त्रयोदशी को इनकी जयंती पर जैन धर्मावलंबी प्रात: काल प्रभातफेरी निकालते हैं और भव्य जुलूस के साथ पालकी यात्रा का आयोजन किया जाता है। शिखरों पर ध्वजा चढ़ाई जाती है। इस दिन जैन समाज द्वारा अनेक धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।

ऋजूकूला नदी के पास ज्ञान की प्राप्ति

वर्धमान महावीर जी को 42 वर्ष की अवस्था में जूभिका नामक गांव में ऋजूकूला नदी के किनारे घोर त्पस्या करते हुए मनोहर वन में साल वृक्ष के नीचे वैशाख शुक्ल दशमी की पावन तिथि के दिन उन्हें कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई जिसके बाद वे महावीर स्वामी बने।

महावीर जी के समय समाज और धर्म की स्थिति में अनेक विषमताएं मौजूद थी। धर्म अनेक आडंबरों से घिरा हुआ था और समाज में अत्याचारों का बोलबाल था अत: ऐसी स्थिति में भगवान महावीर जी अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने देशभर में भर्मण करके लोगों के मध्य व्याप्त कुरीतियों और अंधविश्वासों को दूर करने का प्रयास किया। उन्होंने धर्म की वास्तविकता को स्थापित किया सत्य और अहिंसा पर बल दिया।

पावापुर में निर्वाण प्राप्त किया

अपने उपदेशों से उन्होंने समाज का कल्याण किया। उनकी शिक्षाओं में मुख्य बातें थी कि सत्य का पालन करो, अहिंसा को अपनाओ, जिओ और जीने दो। इसके अतिरिक्त उन्होंने पांच महाव्रत, पांच अणुव्रत, पांच समिति और छह आवश्यक नियमों का विस्तार पूर्वक उल्लेख किया, जो जैन धर्म के मुख्य आधार है और पावापुर में कार्तिक कृष्ण अमावस्या को महावीर जी ने देह त्याग करके निर्वाण प्राप्त किया।

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