लखनऊ: देवों के देव भोलेनाथ के भोले स्वरूप का तो हर कोई दीवाना है। महादेव के नाम के यह ऐसे भगवान हैं, जिन्हें हिन्दू(सनातन) धर्म के प्रमुख देवता कहा जाता है। इनकी हर कोई पूजा करता है। वैसे तो भगवान शिव की अनेक गुफाएं हैं पर जिस गुफा के बारे में हम आपको बताने जा रहे हैं, उसके बारे में जानकर आप हैरान रह जाएंगे। यह गुफा बहुत रहस्यमयी है। इस गुफा के बारे में कहा जाता है कि इसे इंसानो ने नहीं बल्कि खुद प्रकृति ने बनाया है।
पूरी होती हैं मन्नतें
-बिहार के रोहतास जिले में गुप्तेश्वर धाम स्थित है।
-इस गुफा में स्थित शिवलिंग की महिमा का बखान आदिकाल से ही होता आ रहा है।
-मान्यता है कि इस गुफा में जलाभिषेक करने के बाद भक्तों की सभी मन्नतें पूरी हो जाती हैं।
बक्सर से है गंगाजल चढाने की परंपरा
-पुराणों में शिव की कथा को जीवित रखे हुए ऐतिहासिक गुप्तेश्वरनाथ महादेव का गुफा मंदिर आज भी रहस्यमय बना हुआ है।
-देवघर के बाबाधाम की तरह गुप्तेश्वरनाथ यानी गुप्ताधाम श्रद्धालुओं में काफी लोकप्रिय है।
-यहां बक्सर से गंगाजल लेकर शिवलिंग पर चढ़ाने की परंपरा है।
-रोहतास में अवस्थित विंध्य शृंखला की कैमूर पहाड़ी के जंगलों से घिरे गुप्तधाम गुफा की प्राचीनता के बारे में कोई साइंटिफिक प्रूव उपलब्ध नहीं है।
गुफा नेचुरल या मैनमेड, आज भी है डाउट
-इसकी बनावट को देखकर पुरातत्वविद अब तक यही तय नहीं कर पाए हैं कि गुफा मानव निर्मित है या प्राकृतिक।
-श्याम सुंदर तिवारी जो कई इतिहास की पुस्तकों को लिख चुके हैं।
-वे कहते हैं कि गुफा के नाचघर व घुड़दौड़ मैदान के बगल में स्थित पाताल गंगा के पास दीवार पर लेख उभरे हैं।
-इस पर लिखे लेखों को श्रद्धालु ब्रह्मा के लेख के नाम से जानते हैं।
-पर उन्हें आजतक पढ़ा नहीं जा सका है।
-इनको पढ़ने से संभव है कि इस गुफा के कई रहस्य खुल जाएं।
गुफा में मौजूद है पातालगंगा
-कहा जाता है कि गुफा में गहन अंधेरा होता है।
-बिना बाहरी लाइट के भीतर जाना संभव नहीं है।
-पहाड़ी पर स्थित इस पवित्र गुफा का द्वार 18 फीट चौड़ा एवं 12 फीट ऊंचा मेहराबनुमा है।
-गुफा में लगभग 363 फीट अंदर जाने पर बहुत बड़ा गड्ढा है, जिसमें सालभर पानी रहता है।
-श्रद्धालु इसे पाताल गंगा कहते हैं।
-गुफा के अंदर प्राचीन काल के दुर्लभ शैलचित्र आज भी मौजूद हैं।
-इसके कुछ आगे जाने के बाद शिवलिंग के दर्शन होते हैं।
-गुफा के अंदर अवस्थित प्राकृतिक शिवलिंग पर हमेशा ऊपर से पानी टपकता है।
-इस पानी को श्रद्धालु प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं।