यहां मिलता है भक्तों को प्रसाद में रक्तरंजित कपड़ा, क्या जानते हैं इसके पीछे का रहस्य?

Update:2017-03-29 15:57 IST

गुवाहाटी: मासिक धर्म, किसी भी महिला की पहचान है। यह उसे पूर्ण स्त्रीत्व का गुण देता है, लेकिन फिर भी हमारे समाज में रजस्वला स्त्री को अपवित्र माना जाता है। महीने के जिन दिनों में वह मासिक चक्र से गुजरती है उसे किसी भी पवित्र कार्य में शामिल नहीं होने दिया जाता, उसे किसी भी धार्मिक स्थल पर जाने की मनाही होती है। लेकिन वहीं दूसरी ओर मासिक धर्म के दौरान कामाख्या देवी को सबसे पवित्र माना जाता है। वहां उत्सव मनाया जाता है। कामाख्या शक्तिपीठ गुवाहाटी (असम) के पश्चिम में 8 कि.मी. दूर नीलांचल पर्वत पर है। मां सभी शक्तिपीठों में से कामाख्या शक्तिपीठ को श्रेष्ठ कहा जाता है। मां सती के प्रति भगवान शिव का मोह भंग करने के लिए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के मृत शरीर के 51 भाग किए थे। जिस-जिस जगह पर माता सती के शरीर के अंग गिरे, वे शक्तिपीठ कहलाए। कामख्या में मां सती का योनि भाग गिरा था, उससे कामाख्या महापीठ की उत्पत्ति हुई। कहा जाता है यहां देवी का योनि भाग होने की वजह से यहां माता रजस्वला होती हैं।

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अम्बूवाची वस्त्र

इस शक्तिपीठ से कई रहस्य भी जुड़े हैं। कहते हैं इस जगह मां का योनि भाग गिरा है। इसलिए हर साल मां यहां तीन दिन के लिए रजस्वला होती है। इस दौरान 3 दिनों के लिए मंदिर का पट बंद कर दिया जाता है। उसके बाद जब मंदिर का पट खुलता है तो उत्साह पर्व मनाया जाता है। इस दौरान देवी की प्रतिमा के नीचे सफेद कपड़ा बिछाते है और जब रजस्वला के 3 दिन बाद मंदिर का पट खलते है तो वो कपड़ा रक्त से भींगा होता है उसे ही भक्तों में बांट दिया जाता है। इसे अम्बूवाची वस्त्र कहा जाता है।

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मान्यता

इस मंदिर में देवी की कोई मूर्ति नहीं है। यहां देवी के योनि भाग की पूजा की जाती है। मंदिर में एक कुंड है जो फूलों ढका होता है। यहां पास में ही एक मंदिर है जिसे महापीठ कहते है। इस मंदिर के पास मौजूद सीढ़ियां अधूरी हैं, इसके पीछे भी एक कथा मौजूद है। कहा जाता है एक नरका नाम का राक्षस देवी कामाख्या की सुंदरता पर मोहित होकर उनसे विवाह करना चाहता था। परंतु देवी कामाख्या ने उसके सामने एक शर्त रख दी।

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कामाख्या देवी ने नरका से कहा कि अगर वह एक ही रात में नीलांचल पर्वत से मंदिर तक सीढ़ियां बना पाएगा तो ही वह उससे विवाह करेंगी। नरका ने देवी की बात मान ली और सीढ़ियां बनाने लगा। देवी को लगा कि नरका इस कार्य को पूरा कर लेगा। इसलिए उन्होंने एक कौवे को मुर्गा बनाकर उसे भोर से पहले ही बांग देने को कहा। नरका को लगा कि वह शर्त पूरी नहीं कर पाया है, परंतु जब उसे हकीकत का पता चला तो वह उस मुर्गे को मारने दौड़ा और उसकी बलि दे दी। जिस स्थान पर मुर्गे की बलि दी गई उसे कुकुराकता नाम से जाना जाता है। इस मंदिर की सीढ़ियां आज भी अधूरी हैं।

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तंत्र साधना के लिए सर्वोच्च पीठ

कामाख्या देवी को ‘बहते रक्त की देवी’ भी कहा जाता है, इसके पीछे मान्यता यह है कि यह देवी का एकमात्र ऐसा स्वरूप है जो नियमानुसार हर साल मासिक धर्म के चक्र में आता है। हर साल जून के महीने में कामाख्या देवी रजस्वला होती हैं और उनके बहते रक्त से पूरी ब्रह्मपुत्र नदी का रंग लाल हो जाता है।कामाख्या मंदिर को वाममार्ग साधना के लिए सर्वोच्च पीठ का दर्जा दिया गया है। ऐसा माना जाता है कि मछन्दरनाथ, गोरखनाथ, लोनाचमारी, ईस्माइलजोगी आदि जितने भी महान तंत्र साधक रहे हैं वे सभी इस स्थान पर साधना करते थे, यहीं उन्होंने अपनी साधना पूर्ण की थी। भक्तों और स्थानीय लोगों का मानना है कि अम्बूवाची पर्व के दौरान कामाख्या देवी के गर्भगृह के दरवाजे अपने आप ही बंद हो जाते हैं और उनका दर्शन करना निषेध माना जाता है। पौराणिक दस्तावेजों में भी कहा गया है कि तंत्र साधनाओं में रजस्वला स्त्री और उसके रक्त का विशेष महत्व होता है इसलिए यह पर्व या कामाख्या देवी के रजस्वला होने का यह समय तंत्र साधकों और अघोरियों के लिए सुनहरा होता है।देवी के रजस्वला होने की बात पूरी तरह आस्था से जुड़ी है। यहां मादा पशुओं की बलि नहीं दी जाती है।

 

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