सहारनपुर: श्राद्ध पक्ष चल रहा है और सभी लोग अपने अपने पितृ को तर्पण देने के लिए घर से लेकर विभिन्न तीर्थ स्थलों पर जाकर तर्पण कर रहे हैं। आज हम आपको बता रहे हैं कि भारत में तीन ऐसे स्थान हैं, जहां पर एक बार जाकर तर्पण करने के बाद दिवंगत का श्राद्ध करने की आवश्यकता नहीं होती है और दिवंगत को मुक्ति मिल जाती है। ये तीनों ऐसे स्थान हैं, जहां पर भगवान विष्णु के विभिन्न अंग मौजूद हैं।
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सहारनपुर के बेहट रोड के श्री बालाजी धाम के संस्थापक गुरू श्री अतुल जोशी जी महाराज बताते हैं, जो कार्य श्रद्धा से किया जाए, वो श्राद्ध कहलाता है। भारत के विभिन्न प्रांतों में श्राद्ध को करने के लिए अलग-अलग तरीके बताए जाते है। उन्होंने बताया कि भारत में तीन ऐसे स्थान हैं, जहां पर जाकर श्राद्ध करने के बाद पुनः श्राद्ध करने की आवश्यकता नहीं होती। इन तीनों ही स्थलों पर इन दिनों तर्पण करने वालों की भीड़ चल रही है। उन्होंने बताया कि पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान विष्णु के अंग भारत के तीन स्थलों पर मौजूद हैं।
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इनमें पहला उत्तराखंड के बद्रीनाथ के पास भृंगकपाल है। भृंगकपाल में भगवान विष्णु का सिर है। दूसरा स्थान भी उत्तराखंड में ही है। यह हरिद्वार में है और इसे नारायण शिला कहा जाता है। यहां पर भगवान विष्णु का धड़ है। तीसरा स्थान बिहार है बिहार प्रदेश का गया, गया जी में भगवान नारायण के पैर हैं। इन तीनों स्थानों पर जाकर पितरों का तर्पण करने के बाद श्राद्ध कर्म करने की आवश्यकता नहीं रहती है।
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श्री अतुल जोशी जी ने बताया कि तर्पण के लिए तीन दिशाएं है। पितरों का तर्पण दक्षिण दिशा में, देव तर्पण पूरब दिशा और मनुष्य तर्पण उत्तर दिशा में होता है। उन्होंने बताया कि जिस प्रकार अग्नि देव की दो पत्नी हैं। स्वाहा और स्वधा। जब हवन करते हैं तो स्वाहा बोला जाता है और जब तर्पण करते हैं तो स्वधा बोलना चाहिए। पितृ तर्पण के लिए तर्जनी अंगुली और अंगुष्ठ के बीच की जगह से तर्पण करना चाहिए। ये पितृ तीर्थ का मार्ग है और ऐसा करने से पितृ प्रसन्न होते हैं।
जो व्यक्ति अपने पितरों का तर्पण करता है उसका वंश आगे बढ़ता है और धन धान्य की प्राप्ति होती है। पितरों के आशीर्वाद से सभी काम होने लगते हैं। श्राद्ध करते वक्त ब्राहमण को भोजन अवश्य कराना चाहिए, ऐसा इसलिए कि पित पक्ष में जब हम अपने घर पर ब्राहमण को बुलाते हैं तो उस घर के आसपास हमारे पितृ भी आ जाते हैं। पितृ ब्राहमण के शरीर में प्रवेश कर भोजन को ग्रहण करते है। इस दिन ब्राहमण का आशीर्वाद भी जरूर लेना चाहिए।