जयपुर: ज्योतिष शास्त्र में राहु और केतु दो ग्रह हैं जिसका अशुभ प्रभाव शनि से भी अधिक घातक होता है। इन ग्रहों को नीच ग्रह की श्रेणी में रखा गया है। राहु और केतु क्षुद्र ग्रह माने जाते हैं। राहु और केतु जब अपना विनाशकारी प्रभाव दिखाते हैं तो अपराध नहीं भी करते हैं तो भी अपराधी की श्रेणी आना पड़ता है।
क्षुद्र ग्रह होने के कारण केतु व्यक्ति को अक्सर भ्रम का शिकार बनाते हैं। जिस कारण व्यक्ति का जीवन उधेड़बुन में नष्ट होता है। राहु से कहीं अधिक दुष्परिणाम देने वाला केतु होता है। इसके अलावे व्यक्ति सच्चाई को छोड़कर हमेशा गलत रास्ता अपनाता हैं। अच्छी बातें और अच्छे लोग उन्हें नहीं भाते हैं। इस वजह से कुंडली में केतु का उच्च और नीच दशाओं को जान लेना आवश्यक है।
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केतु को मीन राशि का स्वामी ग्रह माना जाता है। इसलिए इस राशिवालों के लिए कुंडली में राहु की स्थिति मायने रखती है। इसके अलावा यह धनु राशि में उच्च अवस्था में और मिथुन में नीच स्थिति में होता है। इसलिए इन तीन राशियों के जातकों पर केतु का प्रभाव अधिक होता है।
मीन, धनु और मिथुन राशि के जातकों की कुंडली में अगर केतु की उच्च दशा हो तो इसका असर अमूमन 48 से 54 वर्ष की उम्र में नजर आता है। कुंडली के तीन विशेष भाव लग्न, षष्ठी और एकादश भाव में केतु का होना हर हाल में अशुभ माना जाता है।
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ज्योतिष शास्त्र में केतु के निदान के कई तरीके बताए गए हैं। लेकिन हम आपको कुछ आसान तरीका बता रहे हैं। 108 दानें की लाल चंदन की एक माला लें। किसी ज्योतिषी से अभिषिक्त करा लें और प्रत्येक मंगलवार इसे धारण करें।
इस माला को धारण करने से पहले केतु मंत्र "पलाश पुष्प संकाशं, तारका ग्रह मस्तकं। रौद्रं रौद्रात्मकं घोरं तम केतुम प्रणमाम्य्हम।" का 108 बार जाप करें।