लखनऊ: हमारे देश में रहस्य और धार्मिक मान्यताओं की खान है। यहां एक ऐसा पेड़ है जिसे छूने मात्र से मनुष्य की थकान मिट जाती है। हरिवंश पुराण में भी इस वृक्ष का उल्लेख मिलता है, जिसको छूने से देव नर्तकी उर्वशी की थकान मिट जाती थी। इसका नाम पारिजात वृक्ष है। इस वृक्ष के फूलों को देव मुनि नारद ने श्री कृष्ण की पत्नी सत्यभामा को दिया था। ये एक दुर्लभ वृक्ष है, इसका इकलौता पेड़ उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले में है।
क्यों है दुर्लभ?
श्रीमदभगवत गीता में लिखा है कि परिजात के फूलों को पाकर सत्यभामा ने श्रीकृष्ण से जिद किया कि वे इस पेड़ को स्वर्ग से धरती पर लाएं। उनकी जिद्द पूरी करने के लिए पर श्रीकृष्ण ने स्वर्ग लोक पर आक्रमण कर दिया और परिजात को सत्यभामा की वाटिका में लगा दिया, लेकिन इसके फूल उनकी दूसरी पत्नी रूकमणी की वाटिका में गिरते थे।
कृष्ण के हमले और पारिजात छीन लेने से गुस्साए इन्द्र ने श्री कृष्ण के साथ पारिजात को श्राप दे दिया था। इंद्र ने कहा-अपने कृत्य की वजह से कृष्ण भगवान विष्णु के अवतार के रूप में जाना जाएंगे, जबकि पारिजात को कभी न फल आने का श्राप दिया। तभी से कहा जाता है कि ये पेड़ हमेशा के लिए अपने फल से वंचित हो गया।
दूसरी मान्यता है
कहते हैं कि पारिजात नाम की एक राजकुमारी हुआ करती थी ,जिसे भगवान सूर्य से प्यार हो गया था, लेकिन बहुत प्रयास करने पर भी सूर्य ने पारिजात के प्यार को स्वीकार नहीं किया, इससे गुस्सा होकर राजकुमारी पारिजात ने आत्महत्या कर ली थी। जहां पारिजात की कब्र बनी, वहीं से इस वृक्ष का जन्म हुआ। इसी कारण पारिजात वृक्ष को रात में देखने से ऐसा लगता है जैसे वह रो रहा हो और सुबह होते ही इसकी टहनियां और पत्ते सूर्य को आगोश में लेने को तैयार रहते है।
धन की होती है वृद्धि
ज्योतिष गोपाल राजू के अनुसार अगर लक्ष्मीजी को प्रसन्न करने के लिए पारिजात वृक्ष का उपयोग किया जाता है। उन्होंने बताया कि यदि
ओम नमो मणि़रूद्राय आयुध धराय मम लक्ष्मी़वसंच्छितं पूरय पूरय ऐं हीं क्ली हयौं मणि भद्राय नम, इस मंत्र का जाप 108 बार करते हुए नारियल पर पारिजात पुष्प अर्पित किए जाए तो लक्ष्मीजी प्रसन्न होकर साधक के घर में वास करती है।
ये पूजा साल के पांच मुहर्त होली, दीवाली,ग्रहण,रवि पुष्प और गुरू पुष्प नक्षत्र में की जाए तो उत्तम है। ये भी बता दें कि इस वृक्ष के फूल उपयोग में लाए जाते है, जो टूटकर गिर जाते है। मतलब वृक्ष से फूल कभी भी तोड़ने नहीं चाहिए।
बाराबंकी में पारिजात
पारिजात का एक मात्र वृक्ष यूपी के बाराबंकी जनपद के रामनगर क्षेत्र के गांव बोरोलिया में मौजूद है। लगभग 50 फीट तने और 45 फीट उंचाई के इस वृक्ष की ज्यादातर शाखाएं भूमि की ओर मुड़ जाती है और धरती को छुते ही सूख जाती है।
एक मान्यता के अनुसार इस वृक्ष की उत्पत्ति समुंद्र मंथन से हुई थी। कहा जाता है जब पांडव पुत्र माता कुंती के साथ अज्ञातवास पर थे तब उन्होंने ही सत्यभामा की वाटिका में से परिजात को लेकर बोरोलिया गांव में रोपित कर दिया होगा। तभी से परिजात गांव बोरोलिया की शोभा बना हुआ है।
मंत्रमुग्ध करने वाली खुशबू
एक साल में सिर्फ एक बार जून माह में सफेद और पीले रंग के फूलों से सुसज्जित होने वाला ये वृक्ष न सिर्फ खुशबू बिखेरता है, बल्कि देखने में भी सुन्दर लगता है। आयु की दृष्टि से 1-5 हजार साल तक जीवित रहने वाले इस वृक्ष को वनस्पति शास्त्री एडोसोनिया वर्ग का मानते हैं। जिसकी दुनियाभर में सिर्फ 5 प्रजातियां पाई जाती है। जिनमें से एक डिजाहाट है। पारिजात वृक्ष इसी डिजाहाट प्रजाति का है।
औषधि का है भंडार
पारिजात बावासीर रोग निदान के लिए रामबाण औषधि है। इसके एक बीज का सेवन प्रतिदिन किया जाए तो बावासीर रोग ठीक हो जाता है। इसके फूल ह्दयरोग को ठीक करने में कारगर हैं। इतना ही नहीं इसकी पत्तियों को पीस कर शहद में मिलाकर सेवन करने से सुखी खासी ठीक हो जाती है। इसी तरह पारिजात की पत्तियों को पीसकर त्वचा पर लगाने से त्वचा रोग ठीक हो जाते है।
संरक्षित वृक्ष
ये दुर्लभ वृक्ष की श्रेणी में आता है, इसलिए सरकार ने पारिजात वृक्ष पर डाक टिकट भी जारी किया, ताकि अर्न्तराष्ट्रीय स्तर पर पारिजात वृक्ष की पहचान बन सके।