जयपुर: पांच सौ साल से मिट्टी के दीपक जलाकर ही दीवाली मनाई जाती रही है। इसके कई कारण है जिनको आपको जानना जरूरी है। क्योंकि मिट्टी का दीया जितना साधारण दिखता है वो खुद में उससे हजारों गुना ज्यादा खासियत को संजोए है।
कहा जाता है कि सिंधु घाटी सभ्यता की खुदाई में पकी हुई मिट्टी के दीये मिले थे, और 500 ईसा पूर्व की मोहनजोदड़ो सभ्यता की खुदाई में भवनों में दीपकों को रखने के लिए ताख बनाए गए थे व मुख्य द्वार को प्रकाशित करने के लिए आलों की श्रृंखला थी। मोहनजोदड़ो सभ्यता के प्राप्त अवशेषों में मिट्टी की एक मूर्ति के अनुसार उस समय भी दीपावली मनाई जाती थी। उस मूर्ति में मातृ-देवी के दोनों ओर दीप जलते दिखाई देते हैं।
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मिट्टी के दीपकों को अक्सर सिर्फ आस्था से जोड़कर देखा जाता है। जबकि ये वैज्ञानिक दृष्टि से भी बहुत उपयोगी है। मिट्टी के दीपक में सरसों का तेल या घी डालकर जलने से जो गंध उत्पन्न होती है, वो बैक्टीरिया का विनाश करता है। और वातावरण शुद्ध हो जाता है। मिट्टी का दीपक उपयोग के बाद मिट्टी में मिल जाता है और वातावरण शुद्ध रहता है।
मिट्टी का दीपक जलाने के पीछे कई विचार हैं। मिट्टी को मंगल ग्रह का प्रतीक माना जाता है मंगल साहस, पराक्रम में वृद्घि करता है और तेल को शनि का प्रतीक माना जाता है। शनि को भाग्य का देवता कहते है। मिट्टी का दीपक जलाने से मंगल और शनि की कृपा बनी रहती है। इसके अलावा दीपक जलाने का महत्व उसकी रोशनी के कारण भी है। रोशनी को सुख, समृद्धि, स्फूर्ति का प्रतीक मानते हैं।
दीपावली पर करोड़ों रुपये के चाइनीज झालर और लाइटें खरीदी जाती हैं। ये पैसा सीधे चीन जाता है। जबकि मिट्टी के दीये में जो भी खर्च करेंगे। वह पैसा अपने देश में ही रहेगा और देश की आर्थिक तरक्की में योगदान देगा। साथ ही माटी के दीये बनाने वाला कुंभकार भी समाज का एक अभिन्न अंग है। उसको भी आर्थिक रुप से मज़बूती मिलेगी।
शास्त्रों में मोमबत्ती का इस्तेमाल वर्जित माना गया है। कहते हैं मोमबत्ती एक ऐसी वस्तु है जो केवल आत्माओं को अपने उजाले से निमंत्रण देती है। इसको जलाने से घर में नकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है। इसीलिए इसके इस्तेमाल से बचना चाहिए मनुष्य को।