शनि पूजा का महापर्व: इस दिन करेंगे क्रोध तो शनि आपको कराएंगे अपराध बोध

Update:2016-06-02 17:54 IST

पं.सागरजी महाराज

लखनऊ: ज्येष्ठ अमावस्या को शनि जयंती भी मनाई जाएगी। ये दिन सूर्यपुत्र की आराधना का महापर्व है। इस दिन शनि देव की विशेष पूजा की जाती है। शनि देव को प्रसन्न करने के लिए अनेक मंत्रों और स्तोत्रों से गुणगान किया जाता है। शनि हिन्दू ज्योतिष में नवग्रहों में से एक हैं। शनि अन्य ग्रहों की तुलना मे धीमे चलते हैं इसलिए इन्हें शनैश्चर भी कहा जाता है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार शनि के जन्म के विषय में काफी कुछ बताया गया है और ज्योतिष में शनि के प्रभाव का साफ संकेत मिलता है। शनि ग्रह वायु तत्व और पश्चिम दिशा के स्वामी हैं।

शनि जन्म कथा- शनि जन्म के संदर्भ में एक पौराणिक कथा बहुत मान्य है जिसके अनुसार शनि, सूर्य देव और उनकी पत्नी छाया के पुत्र हैं। सूर्य देव का विवाह प्रजापति दक्ष की पुत्री संज्ञा से हुआ कुछ समय पश्चात उन्हें तीन संतानों के रूप में मनु, यम और यमुना की प्राप्ति हुई। इस प्रकार कुछ समय तो संज्ञा ने सूर्य के साथ निर्वाह किया परंतु संज्ञा सूर्य के तेज को अधिक समय तक सहन नहीं कर पाईं।

उनके लिए सूर्य का तेज सहन कर पाना मुश्किल होता जा रहा था। इसी वजह से संज्ञा ने अपनी छाया को पति सूर्य की सेवा में छोड़ कर वहां से चली चली गईं। कुछ समय बाद छाया के गर्भ से शनि देव का जन्म हुआ। शनिदेव न्याय के देवता हैं। योगी, तपस्या में लीन और हमेशा दूसरों की सहायता करने वाले होते हैं। वह जीवों को सभी कर्मों का फल प्रदान करते हैं।

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आचार्य सागर जी महाराज के अनुसार शनि को अनुकूल करने के लिए निम्न उपाय किये जा सकते है...

*खाली पेट नाश्ते से पहले काली मिर्च चबाकर गुड़ या बताशे से खाएं। भोजन करते समय नमक कम होने पर काला नमक और मिर्च कम होने पर काली मिर्च का प्रयोग करें। भोजन के उपरांत लौंग खाएं। शनिवार और मंगलवार को क्रोध न करें। भोजन करते समय मौन रहें।*प्रत्येक शनिवार को सोते समय शरीर और नाखूनों पर तेल मसलें। मांस, मछली, मदिरा और नशीली चीजों का सेवन बिलकुल न करें। घर की महिला जातक के साथ सहानुभूति और स्नहे बरते, क्योंकि जिस घर में गृहलक्ष्मी रोती है उस घर से शनि की सुख-शांति और समृद्धि रूठ जाती है।महिला जातक के माध्यम से शनि प्रधान व्यक्ति का भाग्य उदय होता है।

*गुड़ और चनें से बनी वस्तु भोग लगाकर अधिक से अधिक लोगों को बांटना चाहिए। उड़द की दाल के बड़े या उड़द की दाल, चावल की खिचड़ी बाटनी चाहिए। प्रत्येक शनिवार को लोहे की कटोरी में तेल भरकर अपना चेहरा देखकर डकोत कोदेना चाहिए। डकोत न मिले तो उसमे बत्ती लगाकर उसे शनि मंदिर में जला देना चाहिए। प्रत्येक शनि अमावस्या को अपने वजन का दशांश सरसों के तेल का अभिषेक करना चाहिए।

*शनि मृत्युंजय स्त्रोत दशरथ कृत शनि स्त्रोत का ४० दिन तक नियमित पाठ करें। काले घोड़े की नाल अथवा नाव की कील से बना छल्ला अभिमंत्रित करके धारण करना शनि के कुप्रभाव को हटाता है। जिस जातक के परिवार, घर में रिश्तेदारी, पड़ोस में कन्या भ्रूण हत्या होती है। जातक प्रयास कर इसे रोकेगा तो शनि महाराज उससे अत्यंत प्रसन्न होते है।

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