शनि जयंती पर इन बातों का रखें ध्यान, ऐसे करें छाया पुत्र को प्रसन्न

Update:2017-05-24 14:02 IST

लखनऊ: ज्येष्ठ माह की अमावस्या को शनि जयंती के रूप में मनाया जाता है। माना जाता है कि इस दिन शनिदेव की पूजा करने से सारे शनि के कोप का भाजन बनने से बचा जा सकता है। यदि पहले से ही कोई शनि के प्रकोप को झेल रहा है तो उसके लिए भी यह दिन बहुत ही कल्याणकारी हो सकता है। जानते हैं कैसे करें शनिदेव की पूजा और क्या है उसका महत्व?

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कौन हैं शनिदेव

शनिदेव भगवान सूर्य तथा छाया (संवर्णा) के पुत्र हैं। इन्हें क्रूर ग्रह माना जाता है जो कि इन्हें पत्नी के शाप के कारण मिली है। शनि के अधिदेवता प्रजापति ब्रह्मा और प्रत्यधिदेवता यम हैं। इनका वर्ण कृष्ण है व ये गिद्ध की सवारी करते हैं। फलित ज्योतिष के अनुसार शनि को अशुभ माना जाता है और 9 ग्रहों में शनि का स्थान सातवां है। ये एक राशि में तीस महीने तक रहते हैं और मकर और कुंभ राशि के स्वामी माने जाते हैं। शनि की महादशा 19 वर्ष तक रहती है। शनि की गुरूत्वाकर्षण शक्ति पृथ्वी से 95वें गुणा ज्यादा मानी जाती है। माना जाता है इसी गुरुत्व बल के कारण हमारे अच्छे और बूरे विचार चुंबकीय शक्ति से शनि के पास पंहुचते हैं जिनका कृत्य अनुसार परिणाम भी जल्द मिलता है। असल में शनिदेव बहुत ही न्यायप्रिय राजा हैं। यदि आप किसी से धोखा-धड़ी नहीं करते, किसी के साथ अन्याय नहीं करते, किसी पर कोई जुल्म अत्याचार नहीं करते, कहने तात्पर्य यदि आप बूरे कामों में संलिप्त नहीं हैं तब आपको शनि से घबराने की कोई जरुरत नहीं है, क्योंकि शनिदेव भले जातकों को कोई कष्ट नहीं देते।

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कैसे करें शनिदेव की पूजा

शनिदेव की पूजा भी बाकि देवी-देवताओं की पूजा की तरह सामान्य ही होती है। प्रात:काल उठकर शौचादि से निवृत होकर स्नानादि से शुद्ध हों। फिर लकड़ी के एक पाट पर काला वस्त्र बिछाकर उस पर शनिदेव की प्रतिमा या तस्वीर या फिर एक सुपारी रखकर उसके दोनों और शुद्ध घी व तेल का दीपक जलाकर धूप जलाएं। शनिदेवता के इस प्रतीक स्वरूप को पंचगव्य, पंचामृत, इत्र आदि से स्नान करवायें। इसके बाद अबीर, गुलाल, सिंदूर, कुमकुम व काजल लगाकर नीले या काले फूल अर्पित करें। तत्पश्चात इमरती व तेल में तली वस्तुओं का नैवेद्य अपर्ण करें। इसके बाद श्री फल सहित अन्य फल भी अर्पित करें। पंचोपचार पूजन के बाद शनि मंत्र का कम से कम एक माला जप भी करना चाहिये। माला जपने के पश्चात शनि चालीसा का पाठ करें व तत्पश्चात शनि महाराज की आरती भी उतारनी चाहिये।

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इन बातों का रखें ध्यान

शनि देव की पूजा करने के दिन सूर्योदय से पहले शरीर पर तेल मालिश कर स्नान करना चाहिये।

शनिमंदिर के साथ-साथ हनुमान जी के दर्शन भी जरूर करने चाहिये।

शनि जयंती या शनि पूजा के दिन ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिये।

इस दिन यात्रा को भी स्थगित कर देना चाहिये।

किसी जरूरतमंद गरीब व्यक्ति को तेल में बने खाद्य पदार्थों का सेवन करवाना चाहिये।

गाय और कुत्तों को भी तेल में बने पदार्थ खिलाने चाहिये।

बुजूर्गों व जरुरतमंद की सेवा और सहायता भी करनी चाहिये।

सूर्यदेव की पूजा इस दिन न ही करें तो अच्छा है।

शनिदेव की प्रतिमा या तस्वीर को देखते समय उनकी आंखो में नहीं देखना चाहिए।

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कब है शनि जयंती

शनि जयंती पूरे उत्तर भारत में पूर्णिमांत पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ माह की अमावस्या को मनाई जाती है। अंग्रेजी कलैंडर के अनुसार यह तिथि 25 मई को है। वहीं दक्षिणी भारत के अमावस्यांत पंचांग के अनुसार शनि जयंती वैशाख अमावस्या को मनाई जाती है। संयोगवश उत्तर भारत में ज्येष्ठ अमावस्या को शनि जयंती के साथ-साथ वट सावित्री व्रत भी रखा जाता है।

शनि जयंती तिथि - 25 मई 2017

अमावस्या तिथि आरंभ - 05:07 बजे (25 मई 2017)

अमावस्या तिथि समाप्त - 01:14 बजे (26 मई 2017)

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