शिवपुराण से जुड़ी इन बातों को जानिए, कष्टों के निवारण का मार्ग पहचानिए

Update:2017-09-02 08:01 IST

लखनऊ: कहते हैं कि सृष्टि का निर्माण भगवान शिव ने किया है और उनकी इच्छा से ही सृष्टि चलती है। जो भी सच्चे दिल से भगवान शिव की भक्ति करता है। उसकी सब मनोकामनाएं भोलो बाबा पूरी कर देते हैं। शिवपुराण के अनुसार, अगर नियमित रूप से शिवलिंग का पूजन किया जाय तो व्यक्ति को जीवन में दुखों का सामना करने की शक्ति प्राप्त होती है। शिवपुराण में भोले बाबा और सृष्टि के निर्माण से जुड़ी कई रहस्यमयी बातें बताई गई हैं। जो हमारे जीवन की धन संबंधी समस्या को तो खत्म करती हैं। कोई भी व्यक्ति दुखों से छुटकारा और शांति चाहता है तो उसे शिव की भक्ति और शिवपुराण में बताए उपायों का हर रोज नियमित पालन करना चाहिए।

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शिवपुराण में कहा गया है कि शिवलिंग के पास रोज रात को दीपक जलाना चाहिए। इसका पालन करने से व्यक्ति को सभी सुखों की प्राप्ति होती है। इन प्रथाओं का पालन न करने पर कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। शुभ फलों की प्राप्ति के लिए एक परंपरा है कि प्रतिदिन रात्रि के समय शिवलिंग के समक्ष दीपक लगाना चाहिए। इस उपाय के पीछे कथा है।

मान्यता

कथा के अनुसार प्राचीन काल में गुणनिधि नामक व्यक्ति बहुत गरीब था और वह भोजन की खोज में लगा हुआ था। इस खोज में रात हो गई और वह एक शिव मंदिर में पहुंच गया। गुणनिधि ने सोचा कि उसे रात्रि विश्राम इसी मंदिर में कर लेना चाहिए। रात के समय वहां अत्यधिक अंधेरा हो गया। इस अंधकार को दूर करने के लिए उसने शिव मंदिर में अपनी कमीज जलायी थी। रात्रि के समय भगवान शिव के समक्ष प्रकाश करने के फलस्वरूप से उस व्यक्ति को अगले जन्म में देवताओं के कोषाध्यक्ष कुबेर देव का पद प्राप्त हुआ। इस कथा के अनुसार ही शाम के समय शिव मंदिर में दीपक लगाने वाले व्यक्ति को अपार धन-संपत्ति एवं ऐश्वर्य की प्राप्ति होती हैं। अत: नियमित रूप से रात्रि के समय किसी भी शिवलिंग के समक्ष दीपक जलाना चाहिए। दीपक रखते समय ऊँ नम: शिवाय मंत्र का जप करना चाहिए।

शिवजी के पूजन से श्रद्धालुओं की धन संबंधी समस्याएं भी दूर हो जाती हैं। शास्त्रों में एक अन्य सटीक उपाय बताया गया है जिसे नियमित रूप से अपनाने वाले व्यक्ति अपार धन-संपत्ति प्राप्त हो सकती है। इस उपाय के साथ ही प्रतिदिन सुबह के समय शिवलिंग पर जल, दूध, चावल आदि पूजन सामग्री अर्पित करना चाहिए।

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कहा गया है कि जो भी व्यक्ति हर नियमित शिव भक्ति भजन कीर्तन जागरण करता है उसे भी जीवन में समृद्धि मिलती है।यह है मानसिक या मन से, वाचिक या बोल से और शारीरिक। सरल शब्दों में कहें तो तन, मन और वचन से भक्ति।

इनमें भगवान शिव के स्वरूप का चिन्तन मन से, मंत्र और जप वचन से और पूजा परंपरा शरीर से सेवा मानी गई है। इन तीनों तरीकों से की जाने वाली सेवा ही शिव धर्म कहलाती है। इस शिव धर्म या शिव की भक्ति भी पांच रूप हैं। ये हैं -

कर्म - लिंगपूजा सहित अन्य शिव पूजन परंपरा कर्म कहलाते हैं।

तप - चान्द्रायण व्रत सहित अन्य शिव व्रत विधान तप कहलाते हैं।

जप - शब्द, मन आदि द्वारा शिव मंत्र का अभ्यास या दोहराव जप कहलाता है।

ध्यान - शिव के रूप में लीन होना या चिन्तन करना ध्यान कहलाता है।

ज्ञान - भगवान शिव की स्तुति, महिमा और शक्ति बताने वाले शास्त्रों की शिक्षा ज्ञान कही जाती है।

इस तरह शिव धर्म का पालन या शिव की सेवा हर शिव भक्त को बुरे कर्मों, विचारों व इच्छाओं से दूर कर शांति और सुख की ओर ले जाती है।

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