मथुरा: वृंदावन में आयोजित स्वामी हरिदास संगीत समारोह में कलाकारों ने अपनी अनोखी प्रस्तुति दी। ये कलाकार हरिदासजी की जन्मोत्सव पर ये कार्यक्रम प्रस्तुत किए। वृंदावन के स्वामी हरिदास के संगीत समारोह पर गुरुवार रात सुर-ताल की ऐसी सरिता बही कि हर कोई बस उसमें सराबोर हो गया। कलाकारों ने अपनी प्रस्तुति से ऐसा समां बांधा कि हर तरफ नृत्य की छंटा ही बिखरी और तालियों की गड़गड़ाहट से सभाभवन गुंजायमान हो गया। इस अवसर पर पूर्व केन्द्रीय मंत्री सीपी ठाकुर ने कहा कि संगीत शिरोमणि स्वामी हरिदास भक्ति संगीत के जनक थे।
कौन है स्वामी हरिदासजी?
श्री बांकेबिहारी में महाराज को वृंदावन प्रकट करने वाले स्वामी हरिदासजी का जन्म विक्रम संवत 1535 राधाष्टमी के दिन में ब्रह्म मुहूर्त में हुआ था। हरिदास जी का व्यक्तित्व बड़ा ही विलक्षण था। वे बचपन से ही एकांतप्रिय थे। उन्हें अनासक्त भाव से भगवद्-भजन में लीन रहने से बड़ा आनंद मिलता था। हरिदासजी का कण्ठ बड़ा मधुर था और उनमें संगीत की अपूर्व प्रतिभा थी
1560 में 25 साल की अवस्था में हरिदास वृन्दावन पहुंचे। वहां उन्होंने निधिवन को अपनी तपोस्थली बनाया। हरिदास जी निधिवन में सदा श्यामा-कुंजबिहारी के ध्यान और उनके भजन में तल्लीन रहते थे। स्वामीजी ने प्रिया-प्रियतम की युगल छवि श्री बांकेबिहारीजी महाराज के रूप में प्रतिष्ठित की। हरिदासजी के ये ठाकुर आज असंख्य भक्तों के इष्टदेव हैं।
वैष्णव स्वामी हरिदास को श्रीराधा का अवतार मानते हैं। श्यामा-कुंजबिहारी के नित्य विहार का मुख्य आधार संगीत है। उनके रास-विलास से अनेक राग-रागनियां उत्पन्न होती हैं। ललिता संगीत की अधिष्ठात्री मानी गई हैं। ललितावतार स्वामी हरिदास संगीत के परम आचार्य थे। उनका संगीत उनके अपने आराध्य की उपासना को समर्पित था।