लखनऊ: हिंदू मान्यता के अनुसार मंदिर दर्शन के लिए जाने वाले हर दर्शनार्थी को परिक्रमा जरूर करना चाहिए। दरअसल, भगवान की परिक्रमा का धार्मिक महत्व तो है ही, विद्वानों का मत है भगवान की परिक्रमा से अक्षय पुण्य मिलता है, सुरक्षा प्राप्त होती है और पापों का नाश होता है।
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इससे जुड़ी एक कथा भी है जिसके अनुसार भगवान श्रीगणेश का पूजन सबसे पहले किया जाता है, क्योंकि उन्होंने ही सबसे पहले शिवजी और पार्वतीजी की परिक्रमा की थी।
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ऋग्वेद के अनुसार प्रदक्षिणा शब्द को दो भागों प्रा और दक्षिणा में विभाजित है। इस शब्द में प्रा से तात्पर्य है आगे बढ़ना और दक्षिणा का मतलब चार दिशाओं में से एक दक्षिण की दिशा। यानी कि ऋग्वेद के अनुसार परिक्रमा का अर्थ है दक्षिण दिशा की ओर बढ़ते हुए देवी-देवता की उपासना करना। इस तरह गोलाकार परिक्रमा को ईश्वर के करीब पहुंचने का सबसे आसान तरीका माना गया है।
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परिक्रमा करने का व्यवहारिक और वैज्ञानिक पक्ष वास्तु और आस पास फैली सकारात्मक ऊर्जा से जुड़ा है। मंदिर में भगवान की प्रतिमा के चारों ओर सकारात्मक ऊर्जा का घेरा होता है, यह मंत्रों के उच्चरण, शंख, घंटाल आदि की ध्वनियों से निर्मित होता है। भगवान की प्रतिमा की परिक्रमा इसलिए करनी चाहिए ताकि हम भी थोड़ी देर के लिए इस सकारात्मक ऊर्जा के बीच रहें और यह हम पर अपना असर डाले।