जानिए क्यों गुजरात के इस अनोखे मंदिर में होती है मछली की हड्डी की पूजा

Update: 2016-07-15 12:13 GMT

गुजरात: देश में कई ऐसे मंदिर है जहां रहस्यों की कमी नहीं है। कुछ मंदिरों में पानी में दीपक जलते है तो कुछ रात को गायब हो जते है और दिन में दिखाई देते है। इसी तरह का एक मंदिर है गुजरात के वलसाड तहसील के डुंगरी गांव में, जो मत्स्य माताजी का मंदिर है। इस मंदिर में व्हेल मछली की हड्डियों की पूजा होती है। 300 साल पुराने मंदिर का निर्माण मछुआरों ने किया था। वे समुद्र में जाने से पहले मंदिर में माता का आशीर्वाद लेते थे।

मंदिर निर्माण के पीछे की मान्यता

ऐसी मान्यता है कि 300 साल पहले यहां एक व्यक्ति प्रभु टंडेल को सपने में व्हेल मछली मरी हुई दिखी। जब सुबह हुई तो सच में उसे समुद्र के किनारे मरी ही मछली दिखीं। उसे देखकर गांव वाले हैरान हो गए। उसने गांव वालों को बताया कि देवी मां व्हेल मछली के रुप में तट आती है परंतु वहां आने पर उनकी मौत हो जाती है। इसके बाद गांव वालों ने उसे देवी का अवतार मान लिया और वहां मंदिर बनवाया।

बाद में मंदिर निर्माण के बाद मरी हुई व्हेल की हड्डियों को निकालकर मंदिर में रख दिया। उसके बाद लोग देवी की नियमित पूजा करने लगे। कुछ लोगों ने इसपर विश्वास किया, तो कुछ ने नहीं। गांव वालों को इसका परिणाम भुगतना पड़ा। इसके बाद गांव में भयंकर रोग फैल गया। उसके बाद लोगों ने मंदिर में जाकर दुआ मांगी ,तब कहीं जाकर मां उन्हें क्षमा कर बीमारी से छुटकारा दिलाया। माता के चमत्कार को देखकर गांव वालों ने मंदिर में जाकर पूजा अर्चना शुरू कर दी।

उस समय से आज तक ये प्रथा जारी है कि समुद्र में जाने से पहले मछुआरा मंदिर में माथा टेकते है। माना जाता है कि जो व्यक्ति यहां दर्शन नहीं करता, उसके साथ कोई दुर्घटना जरूर होती है। आज भी टंडेल का परिवार इस मंदिर की देख-रेख कर रहा है। प्रत्येक साल नवरात्रि की अष्टमी पर यहां पर भव्य मेले का आयोजन होता है। यहां आने वाले लोगों का कहना है कि मंदिर में जाने से आर्थिक हालत में सुधार होता है।

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