लखनऊ की सबसे प्राचीन लाइब्रेरी का बदलेगा अंदाज, हाईटेक बनाने की कवायद शुरू
इसकी स्थापना सन 1882 में प्रोविंशयल म्यूजियम एक भाग के तौर पर की गई है। लेकिन सन् 1910 में इस लाइब्रेरी को मुगल सम्राज्य के वक्त में बनी छोटी छत्तरमंजिल में पब्लिक लाइब्रेरी की तरह स्थापित किया गया। बाद में सन 1925 मैं तत्कालीन सरकार और ब्रिटिश इंडिया असोसिएशन के बीच समझौते के बाद इसका नाम अमिरुद्दौला पब्लिक लाइब्रेरी कर दिया गया। देखा जाए तो यह तीन मंजिला विशाल लाइब्रेरी अपने दामन में इतिहास की कई कहानियां समेटे हुए है।
लखनऊ : करीने से सजी हुई किताबें, कुछ बुढ़ापे की कगार पर बोसीदा हालत में तो कुछ के चमकदार रंगीन पन्ने। किताबों के शौकीन के मिजाज से वाकिफ ये है अमीरुद्दौला पब्लिक लाइब्रेरी। कहा जाता है कि यह लखनऊ की सबसे पुरानी और प्राचीन लाइब्रेरी है।
ऐसे पड़ा लाइब्रेरी का नाम
अमिरुद्दौला पब्लिक लाइब्रेरी स्थापना सन 1882 में प्रोविंशयल म्यूजियम एक भाग के तौर पर की गई है। लेकिन सन् 1910 में इस लाइब्रेरी को मुगल सम्राज्य के वक्त में बनी छोटी छत्तरमंजिल में पब्लिक लाइब्रेरी की तरह स्थापित किया गया। बाद में सन 1925 मैं तत्कालीन सरकार और ब्रिटिश इंडिया असोसिएशन के बीच समझौते के बाद इसका नाम अमीरुद्दौला पब्लिक लाइब्रेरी कर दिया गया। देखा जाए तो यह तीन मंजिला विशाल लाइब्रेरी अपने दामन में इतिहास की कई कहानियां समेटे हुए है।
कई भाषाओं में हैं किताबें
लाइब्रेरी में हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत, उर्दू, बंगला, भाषा में दुर्लभ और ऐतिहासिक महत्व वाली उत्कृष्ट कोटि की लगभग 2 लाख से ज्यादा किताबें हैं। संस्कृत की 371 पांडुलिपि, अरबी की 8, फारसी की 56, उर्दू में 7 पांडुलिपियों के अतिरिक्त ताड़पत्र, भोजपत्र और दूसरी वस्तुओं पर संस्कृत, पाली, बर्मीज, तिब्बती भाषाओं में भी है। जिसमें कुछ तो हस्तलिखित पाण्डुलिपियां तो 400 वर्ष से अधिक पुरानी है।
लाइब्रेरी का बेशकीमती नगीना है 16वीं शताब्दी की किताब
अमिरुद्दौला पब्लिक लाइब्रेरी में यू तो अलग-अलग भाषाओं की सैकड़ों किताबें मौजूद है। लेकिन इस लाइब्रेरी का बेशकीमती नगीना है " टर्किश हिस्ट्री" नाम की किताब। अंग्रेज लेखक राइकट ने अपने विचार इस किताब के जरिए आम किए। इतिहास की कहानी को पन्नों में सजोए हुए यह किताब सन 1687 में नवाबी नगरी पहुंची और यही की हो गई।
भले ही नई पीढ़ी कंप्यूटर और फोन में बिजी हो लेकिन किताबों के शौकीनों को इस पुरानी किताब को देखने और पढ़ने की ललक उन्हें यहां तक खींच लाती है।
क्या कहना है लाइब्रेरी इंचार्ज का?
लाइब्रेरी इंचार्ज शशिकला का कहना है कि भले ही आधुनिकता की दौड़ में युवा पीढ़ी के हाथों में किताबों की जगह मोबाइल ने ले ली हो। लेकिन लोगों का लाइब्रेरी आना इस बात को साबित करता है कि आज भी लोग किताबों के वर्क पलटने के लु्त्फ का मोह नहीं छोड़ पाए।
लाइब्रेरी को हाईटेक बनाने की कवायद शुरू
हवादार विशाल हॉल, खामोशी इतनी की सुई गिरने की आवाज भी साफ सुनाई दे जाए। नई और पुरानी किताबों की सोंधी खुशबू कुछ ऐसा ही माहौल रोज अमीरुद्दौला पब्लिक लाइब्रेरी का रहता है। लेकिन लाइब्रेरी को शिद्दत से युवा पाठको का इंतजार है। जिनकी वजह से लाइब्रेरी गुलजार हो सके। लाइब्रेरी ने युवाओं को लाइब्रेरी तक लाने की कवायद शुरू कर दी है। जिसके तहत लाइब्रेरी की किताबों को ई-बुक में तब्दील करने की पहल की जा रही है।
ई-बुक्स में बदलने की प्रक्रिया होगी जल्द
लाइब्रेरी की लाइब्रेरियन शशिकला की मानें तो लाइब्रेरी के काम को कंप्यूटरीकरण करने और किताबों की ई-बुक्स में तब्दील करने की प्रक्रिया जल्द ही शुरू हो जाएगी। जिससे बाद अमीरुद्दौला पब्लिक लाइब्रेरी का पुराने कलेवर में नया फ्लेवर नजर आएगा जो युवाओ को यकीनन पसंद आने वाला है।
तस्वीरों के ज़रिए बयान होती है खूबसूरती
अमिरुद्दौला पब्लिक लाइब्रेरी में जहां एक तरफ ब्रिटीशर किताबें इतिहास को अंग्रेजों की नजरों से बयान कर रही है। वहीं दूसरी तरफ नवाबों की नगरी लखनऊ की कुछ ऐसी चुनिंदा तस्वीरें मौजूद है जो गुजरे वक्त के आईने से पुराने जमाने के लखनऊ को नवाबी अंदाज से पेश करती है। इन बोसीदा किताबों के वर्क और खूबसूरत तस्वीरों को देख कर साफ पता चलता है कि लखनऊ कितना खूबसूरत हुआ करता था। सच में नवाबों की नगरी हुआ करता था।
हर साल होती है प्रदर्शनी
हर साल अमिरुद्दौला पब्लिक लाइब्रेरी में नई पीढ़ी को किताबों से रूबरू करवाने के लिए खास तौर प्रदर्शनी का आगाज किया जाता है। जिससे नई पीढ़ी इन पुरानी किताबों को पढ़ते हुए किताबों की अहमियत से वाकिफ हो सके। सिर्फ इतना ही नहीं पुरानी तस्वीरों के जरिए पुराने जमाने के नफासत और नजाकत वाले लखनऊ की पहचान कराने की कोशिश की जाती है कि लखनऊ सच में अदब और तहजीब का मरकज था।