लखनऊ: महाकवि डॉ. गोपालदास नीरज जितने साहित्य के मर्मज्ञ थे, उतने ही ज्योतिष शास्त्र में भी पारंगत। गुरुवार को अटलजी के निधन के साथ महाकवि की भविष्यवाणी भी सच साबित हो गई। दरअसल, नीरजजी ने नौ साल पहले 2009 में यह भविष्यवाणी की थी कि मेरे और अटलजी के निधन में 30 दिन से ज्यादा का अंतर न रहेगा, हुआ भी ऐसा ही। नीरजजी 19 जुलाई को दुनिया छोड़ गए और 29 दिन बाद अटलजी निकल पड़े अनंत यात्रा पर।
तब बहुत खुल कर बोले थे नीरज जी
अटल जी को जब भारत रत्न मिला तब नीरज जी से बात करने का अवसर मिला। उस समय बहुत खुल कर बोले थे महाकवि - अटल विहारी वाजपेयी से मेरे संबंध बहुत पुराने हैं। सबसे पहले उन्हें भारत रत्न दिए जाने पर उन्हें शुभकामनाएं देता हूं हालांकि यह सम्मान उन्हें पहले ही मिल जाना चहिए था। फिर वह कुछ याद करने लगे। थोड़ा रुक कर बोले - मैं कानपुर के डीएवी कॉलेज से हिंदी से एमए कर रहा था और वहीं हॉस्टल में रहता था।
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उसी दौरान अटल विहारी वाजपेयी अपने पिताजी के साथ डीएवी कॉलेज में विधि संकाय में एडमिशन लेने आए। वह उसी हॉस्टल में रहने लगे जिसमें मैं रहता था। वह राष्ट्रवाद और वीर रस की कविताएं कहते थे जबकि मैं मूलत: गीत लिखता था। बस यहीं से कविता के मंच साझा होना शुरू हो गए।
अपनी और अटल जी की काव्य यात्रा पर खूब बाते की
अपनी और अटल जी की काव्य यात्रा को लेकर उस दिन उन्होंने खूब बातें की। बोले - 50 के दशक तक मेरे गीत लोकप्रिय होने लगे। इसी बात को ध्यान में रखते हुए अटल जी ने मुझे ग्वालियर में एक कवि सम्मेलन के लिए आमंत्रण दिया। उस कवि सम्मेलन के संयोजक राजनारायण बिसारिया थे। मैंने और अटल जी ने आगरा से ग्वालियर के लिए ट्रेन पकड़ी लेकिन वह बहुत ही लेट हो गई। तांगा पकड़ कर कवि सम्मेलन स्थल तक पहुंचे तो वहां कोई नहीं था।
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आयोजन समाप्त हो चुका था। इत्तफाक से मेरे और अटल जी के पास सारे पैसे खत्म हो चुके थे। इधर उधर तलाश करने पर संयोजक राजनारायण बिसारिया चाट खाते हुए मिल गए। हमें देखकर बोले कवि सम्मेलन का भुगतान (51 रुपये प्रति कवि) तो नहीं दे पाएंगे।
मैंने अटल जी से कहा तुम्हारा तो ये शहर है रात गुजारने का इंतजाम तो करो। इस पर अटल जी ने ठहरने की व्यवस्था करवाई और राजनारायण ने इस बात पर हामी भरी कि अगले दिन एक गोष्ठी कर ली जाएगी जिसका भुगतान कर दिया जाएगा।
उस समय वह विदेश मंत्री थे
फिर थोड़ी देर तक दादा चुप हो गए , जैसे कुछ याद कर रहे हों। कुछ देर रुक कर बोले - इसके बाद अजमेर में एक कवि सम्मेलन में अटल जी से मुलाकात हुई। उस समय वह विदेश मंत्री थे। इसमें पुरानी सभी बातें ताजा हो गईं। जब वह प्रधानमंत्री बने तो उनकी कविता और मेरे गीत पर प्रसिद्ध कथक नृत्यांगना उमा शर्मा ने दिल्ली में प्रस्तुति दी थी।
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इसके अलावा एक बात मैं और कहना चाहूंगा कि मेरी और अटल बिहारी वाजपेयी की जन्म कुंडली में सिर्फ चंद्रमा की स्थिति भिन्न है। बाकी पूरी कुंडली एक समान है। सात दिनों का उनके और मेरे जन्म में अंतर है। यही कारण है कि मैंने और अटल ने कवि के रूप में ही शुरुआत की थी। चंद्रमा की स्थिति ने उन्हें राजनीति में पहचान दिलाई।
इन यात्रियों को हम कुछ और दिन के लिए नहीं रोक सके
आज नीरज जी भी नहीं हैं और अटल जी भी चले गए तो इन महामनीषियों की बातें याद आ गयीं। दोनों ही मनीषी ९३ की उम्र तक धरती पर रहे। यहाँ आये भी थे बहुत काम समय के अंतर पर और गए भी उसी अनुपात से। समय, धरती, काव्य और सन्दर्भ सब धरे रह गए लेकिन इन यात्रियों को हम कुछ और दिन के लिए नहीं रोक सके।